अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : गीत नहीं गाता हूं...

बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,


 
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूं।
गीत नहीं गाता हूं।
 
लगी कुछ ऐसी नजर,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं।
गीत नहीं गाता हूं।
 
पीठ में छुरी सा चांद,
राहु गया रेखा फांद,
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंध जाता हूं।
गीत नहीं गाता हूं।
 
 
साभार : मेरी इक्यावन कविताएं 

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