हिन्दी कविता : अब मानव मन के काले हैं

हर नदियों का पानी धूमिल,
हर पवन वेग में छाले हैं। 
हर दिल में लालच बसी है,
अब मानव मन के काले हैं।।
मधुर वचन से डस लेते हैं,
पर कट जाते हैं राही के।
मैं समझ न पाया जीवन लय को,
मन पूछ रहा हमराही से।।
 
ऊंचे सिंहासन जो बैठे हैं, 
वे भी गुंडे पाले हैं। 
अब मानव मन के काले हैं... 

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