हिन्दी कविता : मोदी... मोदी...

पा न सका अब तक कोई ऊंचाई मोदी की। 
छू न सका अब तक कोई परछाईं मोदी की।।1।। 
 
उसकी कार्यशीलता की, उसके तप की, उस निष्ठा की। 
निज उदाहरण से स्थापित श्रम की प्रतिष्ठा की। 
कुछ कर जाने की अंत: प्रेरित उस लगन की। 
अंधेरों से जूझने की उस स्वयं प्रकाश अगन की। 
 
साठी में भी बीसी सी तरुणाई मोदी की ।।2।। 
 
ग्रामवासियों के कष्टों पर संवेदना बेशुमार की। 
शहीद परिवारों के प्रति अंत: वेदना अपार की। 
हर पीड़ित बालिका के प्रति गहन दुलार की। 
निज मां से बढ़कर भारत मां के प्यार की। 
 
पा सका न अब तक कोई वह मन की गहराई मोदी की।।3।। 
 
चौकीदारों के भी आदर्श बने उस कर्मठ चौकीदार की। 
देश के अंदर / बाहर दुश्मनों पर उसके निडर प्रहार की।। 
मन की हर बात देश के सम्मुख रख देने की निष्कपट तत्परता की ,
देश के सेवा-यज्ञ में आहुति की जिसने निज जीवन की, परिवार की। 
 
क्या हक़ है कलंकियों को जो परखें सच्चाई मोदी की।।4।।    

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