हम तुम एक नया जहां बना लें।
आ जाओ न मितवा कभी डगर हमारी,
तुमसे बतियाकर अपना मन बहला लें।
भर ले सांसो में महक खुशियों की,
हर किसी के दामन को खुशियों से सजा लें।
चलो न मितरा सोए को जगा लें,
बुलंदियां हों हिमालय के जैसी हमारी,
पर मानव के मन से रेगिस्तान को हटा दें।