हिन्दी कविता : जीवन-चक्र

गिर‍धर गांधी 

एक लंबा बांस, अकेला-अकेला
सोच रहा था, बनूं चित्रकार
 
बना चित्रकार, खुद ही आसमां का
समेटकर रंग नीला और अपना रंग पीला
बारिश के पानी में घोलकर
तैयार किया रंग हरा

 
 
तैयार किया रंग हरा, असंख्य चित्र-विचित्र
तरह-तरह के वृक्षों से
बनाया जंगल एक गहरा
 
गहरे जंगल का लंबा बांस
आखि‍र खुद का पीला रंग,
होश-हवास खो चुका था
 
अचानक...
क्या हुआ, कैसे हुआ
वह कागज बन गया
 
बना कागज, लिया चित्रकार ने
बनाया फिर से हरे-भरे रंग से
वही गहरा जंगल, और
एक लंबा बांस
अकेला-अकेला

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