रात चांद की बिंदी लिए मुस्काती है।
चीखती पीड़ा जब दिल को चीरकर,
उतरती है ओठों पर।
शब्द अंगार बन,
जला देते हैं अस्तित्व को।
वक्त के पैबंद से झांकती खुशी,
दिल में जाने का रास्ता ढूंढती है।
सपने अपने से हो जाते हैं।
कुछ ख्वाहिशें टूटकर बिखर गई हैं,
हवा में खुशबुओं की मानिंद।