कविता : लड़ाई आज लड़ना है...

जमाकर पैर रखना राह कंकड़ों से संभलना है,
अकेले जिंदगी की इस डगर पर आज बढ़ना है।


 
बड़े ही लाड़ से जो बेटियां पलतीं पिता की जब, 
सिखा देना जमाने से लड़ाई आज लड़ना है।
 
मिले तालीम उनको हर विधा की रोज अपनों से,
किसी भी बात में महिलाओं न अब तुमको झिझकना है।
 
सदा इतिहास यह उनको बताता ही रहा अब तक,
कि मर्यादा कभी भंग हो तभी दुश्मन कुचलना है।
 
हदें जब पार कर जाए कमीने साथ उनके तब,
उठाकर हाथ में शमशीर तब उनको खड़कना है।
 
सुकोमल और नाजुक-सी दिखाई वो हमें देती,
तभी उनको समझ से काम लेकर ही निबटना है।
 
परेशां वो न होंगी अब दरिंदों से कभी भी,
उसे तैयार रहने के लिए नव सोच रखना है।

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