भोली, नासमझ जनता को रखा जाता रहा है वहां,
किसी न किसी भुलावे में।
कभी धर्म के, कभी जिहाद के बहकावे में।
सेना कुतर-कुतरकर करती रही है निरंतर राष्ट्र को खोखला।
परजीवी ऑक्टोपस जैसी, देकर पड़ोसी देश से खतरे का हवाला।
आतंकवादी समूहों का कहर फैला हुआ है वहां हर गांव, हर शहर में।
जैसे हवा में प्रदूषण का जहर फैल जाता है देशभर में।
अर्थव्यवस्था है दिवालिया, भारी कर्जे में देश,
कर-संग्रह नगण्य, जनमानस परेशां है।
उस आत्मघाती देश के लिए कोई सूरत-ए-निजात कहां है।
चीनी अजगर निगल रहा है उसकी धरती, किसी न किसी बहाने से।
अब भारत-चीन की निकटता, उनके लिए अनपेक्षित असमंजस है।
इन उजागर होते धोखों से जन-मन में खलबली है, कशमकश है।
ताजा खबर है कि पहली बार रक्षा बजट बढ़ाए जाने पर जनविरोध की सुगबुगाहट है।
गर यह सच है तो वहां यह जनचेतना की स्वागतयोग्य आहट है।