नौकरी बन गई है
सामाजिक हैसियत का पैमाना,
उसने आज तोड़ दिया
सामाजिक समरसता का ताना-बाना।
नौकरी पर्याय है नौकरशाही की
नौकरी पर्याय है लालफीताशाही की,
तमाम डिग्रियां और उपलब्धियां नौकरी की मुहताज हैं
रोजगार पाने वाला हर व्यक्ति सरताज है।
ऐसे में है प्रभु! एक बेरोजगार क्या करे?
क्या नौकरी खोजने का रोजगार करे?