पहले,
14 फरवरी की आहट मिलते ही
मौसम का मिज़ाज बदलने लगता था...
मन में गुलाब खिल जाते थे,
दिल जोरों से धड़कने लगता था...
अब भी,
बदलता है मौसम हर बार की तरह
रंग भी होता है ज़हन में गुलाबों वाला...
दिल सिर्फ धड़कता नहीं, रुक जाता है
इश्क की हवाएँ भी चलती हैं....
लेकिन,
वह लाल रंग होता है लहू का
हमनें ईंट का जवाब पत्थर से दिया है,
खून के हर कतरे का हिसाब लिया है...
फिर भी पुलवामा का ज़ख़्म हरा है, रहेगा,