'सल्तनत' गई फिर भी अब तक है
'सुल्तान' सी हेकड़ व्यवहार में। ( जयराम रमेश )
बेचारी उस बूढ़ी पार्टी की नाव का
कोई न खेवनहार मझधार में ।।1।।
दिग्विजयसिंह से धुरंधर,
सिंधिया, कमलनाथ से समर्थ अनेक।
मनमोहन, गुलामनबी, एन्थोनी से
माहिर योद्धा एक से एक ।।
परिवारवाद के घुप्प अँधेरे में सब,
अपने भ्रम में दृढ़, आत्ममुग्ध (बिहार में)
वे बैठे रहे आँखे मीचे से।
जब तक उनको समझ पड़ी,
दरी खिंच गई नीचे से।।
ली न सीख यू. पी. से उन्होंने,
माया-अखिलेश की दुर्गत से,
शायद ही कोई बच पाएगा अब
मोदी-शाह पर कीचड़ उलीचे से ।।3।।
और अन्त में -
गुजरात का राज्य सभा चुनाव,