राजनीति पर कविता : अंधों को न कभी दिखा हाथी...
विश्वास करेंगे कैसे वे, जिनको है नहीं विश्वास खुद पर।
जो अब तक निर्णायक घड़ियों में, बस रहे झांकते इधर-उधर।।
जिनको सत्ता ही सुहाती थी, देश के आत्माभिमान से बढ़कर।
जिन्होंने न की सत्ता के शेर की सवारी, कभी मोदी की भांति यों गुर्राकर।।1।।
जो हुए न सेना के जांबाजों पर, कभी अंतरतम से न्यौछावर।
जो खुद ही चढ़े सत्ता के सिंहासन पर, चापलूसों के कांधे चढ़ कर।।
जिन्हें चाहिए सदा सबूत शायद, अपने खुद के भी होने का,
अब जयकारा सुन जन-जन का अपार, जो हतप्रभ हुए होश खो कर।।2।।
सर्जिकल स्ट्राइक हो, या एयर स्ट्राइक, इनके लिए अंधों का हाथी है।
राफेल पर रुदन, या ओछे जुबानी जुमले, इनकी सियासत के लिए काफी है।।
मत देखना ओ ! देशभक्त वीरों तुम इस प्रलाप पर पीछे मुड़कर,
(आतंक से जूझना है तुमको, अब तो और भी कमर कस कर।)
समझ लेना इन प्रलापियों की तो यह मरणासन्न उसांसी है।।3।।
और सच तो यह है ----
आतंक के अमृत कुंडों पर हर प्रहार सफल प्रहार है।
निकम्मे खोट-खोजियों का दल ही बेचैन, बेजार है।।
जो जीते हैं देश के लिए, कुछ कर जाने का अरमां मन में लिए,
उनके लिए तो साहस ही जीत है, और कायरता हार है।।4।।