साहित्य मेरा धर्म है : बालकवि बैरागी

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जाने-माने साहित्यकार और राजनीतिज्ञ बालकवि बैरागी 10 फरवरी 2010 को जीवन के 79 वसंत पूर्ण कर 80वें बरस में प्रवेश कर रहे हैं। हाल ही में उनसे लालबहादुर श्रीवास्तद्वारा की गई बातचीत के कुछ अंश-

आपने एक उच्च कोटि के साहित्यकार होकर राजनीति में जाने का निर्णय कब और क्यों लिया
- मैं एक सामान्य श्रेणी का लिखने वाला साहित्य का विद्यार्थी हूँ। उच्चकोटि का हूँ या कि तुच्छ कोटि का, इस बहस में मैं कभी नहीं पड़ा। ईश्वर ने मुझे सरस्वती माँ के पाँव की पायल का एक घुँघरू बनाया है। हाथ में कलम थमाई है। राजनीति में जाने का निर्णय मेरा अपना नहीं है। यह समय देवता का निर्णय है। मेरी कांग्रेस निष्ठा अकम्प, अविचल, अनवरत और अनंत रही। दल-बदल का कलंक मुझ पर कभी लगा नहीं।

आप 79 वसंत पूर्ण कर चुके हैं, क्या एक साहित्यकार अच्छा राजनीतिज्ञ हो सकता है?
- भारतीय साहित्य का मूल मंत्र है 'सत्यम् शिवम्‌ सुंदरम्‌'। क्या राजनीति असत्यम्‌ अशिवम्‌, असुंदरम्‌ को अच्छा मानती है? यदि आप साहित्य के मूल मंत्र को लेकर अपने जीवन की आयु यात्रा में चल रहे हैं तो फिर जहाँ भी और जिधर भी जाएँगे, लोग और लोक आपको अच्छा ही मानेंगे। जीवन के हर क्षेत्र में अच्छों का स्वागत होता है चाहे वह राजनीति हो या साहित्य।

आज के दौर के कवि सम्मेलनों का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। अर्थ के पीछे कवियों का फूहड़ता से समझौता करना कितना उचित है?
- फूहड़ता का जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिरोध, प्रतिकार और प्रताड़ना होना जरूरी है। जीवन के कौन से क्षेत्र में आपको फूहड़ता स्वागतयोग्य लगती है?

क्या आप राजनीति में रहकर सरस्वती पुत्र का दायित्व बखूबी निभा पाए हैं?
- मेरे जीवन का नीति सूत्र है- 'साहित्य मेरा धर्म है, राजनीति मेरा कर्म।' राजनीति को मैंने कभी कविता का विषय नहीं माना। मेरी सरस्वती से मेरी राजनीतिक आभा को कभी कालिख नहीं लगने दी। मैंने लिखा है-'एक और आशीष मुझे दें माँगी या अन माँगी। राजनीति के राजरोग से मरे नहीं बैरागी॥'

आज महँगाई चरम पर है। महँगाई पर नकेल कसने में केंद्र सरकार क्यों नाकाम हो रही है?
- आप जनता की क्रय शक्ति बढ़ाइए। बाजार से वे अपने आप लड़ लेंगे। पाँवों में साढ़े तीन हजार रुपयों का जूता पहनकर लोग जब महँगाई के खिलाफ सड़क पर उतरते हैं तो सड़क और जूता दोनों हँसते हैं। महँगाई का मुद्दा केवल शहरों तक सिमट गया है।

प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी का हाथ रहता है। आपकी सफलता के पीछे?
-मुझे माँ ने बनाया है, पत्नी ने संभाला है। मित्रों, प्रशंसकों और आशीर्वाददाताओं ने दिशाबोध दिया है। माता-पिता का पुण्य और गुरुजनों का प्रसाद मुझे विनम्रता से जीने का साहस देता है।

आप प्रशंसकों को क्या संदेश देना चाहेंगे।
1. आलोचना की परवाह मत करो। संसार में आलोचकों के स्मारक नहीं बनते।
2. जो तना अपनी कोंपल का स्वागत नहीं करता, वह ठूँठ हो जाता है।

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