हर बच्चे का बचपन माता पिता की गोद में खेलकर ही बीतता है। लेकिन कुछ बच्चे ऐेसे भी होते हैं, जिनके सर पर दोनों में से किसी एक का सांया उठ जाता है, और दूसरा हमेशा एक पालक के तौर पर मां और पिता, दोनों की पूर्ति करता है। ऐसे में यदि पिता न रहे, तब मां नौकरी कर बच्चों का पालन पोषण कर लेती है। लेकिन यदि बच्चे से मां की ममता ही छिन जाए, तो पिता चाह कर भी एक मां की कमी पूरी नहीं कर पाता। लेकिन रिया के पिता कुछ अलग थे...
रिया की मां उसके 3 साल के होते ही चल बसीं। इसके बाद उसके पिता ने ही मां का भी फर्ज निभाया और रिया को कभी कमी का एहसास नहीं होने दिया। रिया ठीक से जानती भी कहां थी, कि मां होती क्या है। लेकिन पिता ने जिस तरह से उसे पाला, उसके दिमाग में कभी सवाल ही नही आया, कि मां क्या होती है।
बचपन में उसके गंदे कपड़े बदलने से लेकर, स्कूल के लिए तैयार करने तक...और कपड़ों का सलीका सिखाने से लेकर, माहवारी की जानकारी देने तक... मां का हर कर्तव्य पिता ने ही निभाया। यहां तक कि खाना बनाना और किचन की बारीकियां तक, सब कुछ उसे पिता ने ही तो सिखाई थी।
मां के यूं अचानक चले जाने के बाद, वे खुद भले ही अकेलापन महसूस करते थे, लेकिन इस बात का एहसास उन्होंने रिया को कभी नहीं होने दिया, बल्कि रिया के साथ हमेशा एक मां, एक साथी और फिर पिता के रूप में खड़े रहे। रिया भी अपने पिता से जितनी सहज हो गई थी, शायद अपनी किसी सहेली से भी नहीं थी।
दुनियाभर की बातें वह अपने पिता से किया करती ... कभी कभी ढेरों सवाल करती, जिनका जवाब उसके पिता बड़े से शांत तरीके से दिया करते थे। वे कभी रिया की किसी बात पर भड़के नहीं, कभी बेमतलब गुस्सा नहीं किया। उसके व्यक्तित्व को स्नेह के साथ निखारते रहे ..उसके दिल और दिमाग को पोषित करते रहे, ताकि वह जीवन की किसी भी परिस्थिति में हार न मान पाए... उसके कदम कहीं डगमगा न जाएं ।
उम्र के 22 साल पीछे छोड़ते हुए रिया ने भी घर की और पिता की जिम्मेदारी संभाल ली। और फिर एक दिन उसके जीवन में सपनों के शहजादे ने दस्तक दी। किसी सहेली की शादी में उसने रिया को देखा था, और वहीं से उसे पसंद भी कर लिया था।
आखिरकार रिया के बारे में सारी जानकारियां जुटा कर उसने अपने माता पिता को रिश्ते के लिए रिया के घर भेजा। रिया के पिता को लड़का तो पसंद था, लेकिन आज उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उनकी रिया अब बड़ी हो गई है। और उसे विदा करना भी उनकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
पिता ने रिया का रिश्ता तय कर और उसकी विदाई भी कर दी, लेकिन उसके जाने के बाद पिता बिल्कुल अकेले हो गए थे। रिया के सिवा उनकी जिंदगी में था भी क्या ।
देखते ही देखते साल भर बीत गया और रिया ने एक प्यारी बेटी को जन्म दिया...सुंदर, कोमल, गौरवर्ण। अब जब जब नन्हीं बेटी छोटी छोटी चीजों के लिए रोती...तब रिया को ये एहसास होता कि मां कितनी जरूरी होती है बच्चे के लिए....और जब भी वी बच्चे की व्याकुलता को महसूस करती, तो उसमें खुद को, और खुद में अपने पिता को महसूस करती। उसे पिता के त्याग का महत्व समझ आ गया था...