गौतम बुद्ध के पास एक नास्तिक पहुंचा- आप बताएं कि ईश्वर है या नहीं? बुद्ध ने कहा- नहीं है। उस व्यक्ति ने कहा- देखा, मैं तो पहले से ही कहता था कि ईश्वर नहीं हैं, लेकिन लोग मेरी बात मानते ही नहीं थे।
कुछ देर बाद एक आस्तिक आकर कहने लगा- हे भगवन! मैं मानता हूं कि ईश्वर है, लेकिन मैं आपके मुख से सुनना चाहता हूं कि वह है या नहीं? बुद्ध ने कहा- हां है। उस व्यक्ति ने कहा- देखा, मैं तो पहले से ही कहता था कि ईश्वर है, लेकिन लोग मेरी बात मानते ही नहीं थे।
यह देख भगवान बुद्ध के पास बैठे आनंद ने पूछा- तथागत! यह क्या आपने तो हमें भी भ्रमित कर दिया। तब भगवान बुद्ध ने कहा- भंते! आस्तिक और नास्तिक दोनों ही मेरे मना करने पर भी वे अपने विचार पर दृढ़ ही रहते। इससे उनके भीतर कोई बदलाव नहीं होता।
कुछ देर बाद बुद्ध के पास एक और व्यक्ति आया और उनके चरणों में झुककर कहने लगा- भगवन! मैं नहीं जानता कि ईश्वर है या नहीं है। कृपया बताएं कि यह किस तरह से जाना जा सकता है।
तब फिर बुद्ध ने आनंद की ओर देखते हुए कहा- भंते! यह व्यक्ति न आस्तिक है और न नास्तिक यह सच्चा धार्मिक व्यक्ति है। दुनिया को ऐसे ही लोगों की जरूरत है।