एक बार एक ईमानदार भिक्षुक रास्ते से कहीं जा रहा था। आगे बढ़ते हुए उसे रोड पर एक चमड़े का बटुआ मिला। उसने बटुए को उठाया और देखा तो उसमें दो कीमती हार थे। वो भिक्षुक सोचने लगा कि जिस किसी व्यक्ति का भी यह बटुआ होगा, वो बड़ा ही परेशान हो रहा होगा। वो सोच ही रहा था कि इतने में भीड़ से एक आदमी चिल्लाया कि मेरा बटुआ खो गया है, किसी ने देखा क्या? जो भी मेरा बटुआ ढूंढकर मुझे लौटा देगा, उसे मैं इनाम दूंगा।
उस आदमी की आवाज सुनकर भिक्षुक दौड़कर उसके पास गया और बोला कि ये लो साहब आपका बटुआ, ये मुझे वहां उस जगह पड़ा मिला। अब आप मुझे क्या इनाम देंगे?
उस आदमी ने कहा कि जरा बटुए के अंदर तो देख लूं कि सब सही-सलामत है या नहीं? आदमी ने बटुए के अंदर देखा और कहा कि इसमें तो चार कीमती हार थे और अभी सिर्फ दो ही हैं, मतलब आधे तुमने चुरा लिए और अब इनाम भी मांगते हो? चल भाग यहां से...!
इतनी ईमानदारी दिखाने के बाद भी व्यर्थ का इल्जाम भिक्षुक से सहन नहीं हुआ। लेकिन अब वो दु:खी होने के सिवाय कर भी क्या सकता था? उसने व्यापारी को कहा कि भगवान सब देखता है कि कौन सही बोल रहा और कौन झूठ? ऐसा बड़बड़ाते हुए भिक्षुक वहां से चला गया।
कुछ दिनों बाद व्यापारी को अपने व्यापार के सिलसिले में किसी दूसरी दुकान वाले को 5 हार के नमूने दिखाने जाना था। व्यापारी ने सोचा कि थैली में कीमती सामान है, ऐसा किसी को शक न हो इसलिए थैली ऐसे पकड़कर चलता हूं, जैसे इसमें कुछ कीमती सामान ही नहीं हो। और वो आराम से बाजार में थैली को हिलाते-डुलाते चला जा रहा था और वहीं से कोई आदमी उसकी थैली छीनकर भाग गया।
व्यापारी जोर से चिल्लाया कि कोई मेरी थैली छीनकर भाग गया है, उसे पकड़ो। किसी ने उसे देखा क्या? जो कोई मेरी थैली मुझे लाकर दे देगा, मैं उसे इनाम दूंगा। लेकिन उसे उसकी थैली नहीं मिली और उसके सारे हार चोरी हो चुके थे। तब व्यापारी को उस ईमानदार भिक्षुक की याद आई जिसने कि उसका बटुआ उसे सही-सलामत लौटा दिया था।
अब उसे समझ में आ गया कि ईमानदारी जैसा गुण हर किसी में नहीं होता। इतने कीमती हार देखकर तो किसी की भी नीयत बदल सकती थी, लेकिन फिर भी तब उस भिक्षुक ने चोरी नहीं की थी। एक ईमानदार भिक्षुक से उसने बेईमानी की जिसकी सजा भगवान ने उसे दे दी और ईमानदारी की कीमत भी समझा दी।