नियति‍ : किस्मत का खूबसूरत लेखा

वो कहते हैं न कि किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले कुछ नहीं मिलता। जब जिस बात का होना (तय) बदा हैं वो तभी होती हैं फिर आप चाहे लाख हाथ-पैर मारें। आज आप सब को एक मजेदार वाक्या सुनाती हूं, नियती ने किस कदर असर डाला।

 
पापा के हमउम्र दोस्त हमारे घर के पास ही रहा करते थे। अंकल-आंटी दोनों मददगार और स्नेहहिल थे। एक दिन मम्मी और आंटी साथ बैठे अपने पुराने दिनों को याद कर रहे थे, उसी दौरान आंटी ने एक मजेदार किस्सा सुनाया।
 
आंटी जब 20-21 बरस की रही होंगी, तब उनके लिए अंकल का रिश्ता आया था। जब देखने-दिखाने का सिलसिला चला, तब आंटी के छोटे कद की वजह से अंकल ने यह रिश्ता ठुकरा दिया।
 
दूसरी बार आंटी की कोई दूर की रिश्तेदार अंकल का ही रिश्ता आंटी के लिए लेकर आईं। चूंकि अंकल की तरफ से पहले इंकार हो चुका था, अतः इस बार आंटी की ओर से रिश्ते के लिए मना हो गई। इस बात को करीब दो साल हो गए थे। अंकल कमाऊ थे, तो लाजमी था कि रिश्तों की कमी न हुई। पर कभी शिक्षा को लेकर तो कभी रंग-रुप की दुहाई दे, रिश्ता जम न पाता। आंटी के साथ भी कुछ यही सिलसिला चलता रहा।
 
आंटी उच्च शिक्षा के लिए अपनी मौसी के यहां चली गईं। साउथ इंडियन होते भी उन्होंने हिदीं और पंजाबी की तालीम हासिल की। तकरीबन चार भाषा आंटी फर्राटेदार बातचीत कर लेती थीं।
 
फिर इत्तेफाक कुछ ऐसा बैठा कि अंकल का किसी काम से पंजाब जाना हुआ। आंटी के मौसाजी उसी फैक्टरी में काम करते थे, जहां अंकल का काम निकला था। कुछ भाषा की दिक्कतों के चलते ही अंकल और मौसाजी का आपस में मिलना हुआ। आंटी के लिए एक अच्छे घराने के कमाऊ लड़के की खोज चल ही रही थी। बस, मौसाजी ने आनन-फानन में अंकल को खाने के बहाने घर बुला लिया।
 
मौसाजी को इस बारे में पता ही नहीं था कि दो बार दोनों तरफ से इस रिश्ते के लिए इंकार किया जा चुका हैं। दोनों एक दूसरे को देख बेतरह चौंके भी, पर बड़ों के लिहाज के कारण दोनों का मुंह नहीं खुला और इस बार न अंकल इंकार कर सके न आंटी। शायद दोनों समझ चुके थे कि नियती ने दोनो को आपस में बांध रखा है और उनको एक दूजे का ही बना कर भेजा हैं।
 
अंकल तो हंसी में यही कहते हैं" मेरे हिस्से ठिगनी लड़की ही बदी (लिखी) थी"। आज दोनो के दो बच्चे अच्छी जगह पहुंच अपनी गृहस्थी बसा चुके हैं। दोनों का साथ आज भी वैसा ही बना हुआ है। जो भी हो ये नियती का खेल उनके लिए तो अनमोल और सुखद रहा।

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