लघुकथा : आत्ममुग्धता

चंद्रेश कुमार छतलानी
एक सेमिनार में विद्यार्थियों के समक्ष एक विशेषज्ञ ने कांच के तीन गिलास लिए। एक गिलास में मोमबत्ती जलाई, दूसरे में थोड़ी शराब डाल कर उसमें पानी और बर्फ के दो टुकड़े डाल दिए और तीसरे में मिट्टी में लगाया हुआ एक छोटा सा पौधा रख दिया।

फिर सभी की तरफ हाथ से इशारा कर पूछा, "आप सभी बताइए, इनमें से सबसे अच्छा क्या है?"
अधिकतर ने एक स्वर में कहा, "पौधा..."
"क्यों?"
"क्योंकि प्रकृति सबसे अच्छी है" विद्यार्थियों में से किसी ने उत्तर दिया
 
उसने फिर पूछा, "और इनमें से सबसे बुरी चीज क्या है?"
 
अधिकतर ने फिर एक साथ कहा, "शराब"
 
"क्यों?"
 
"क्योंकि नशा करती है" कुछ विद्यार्थी खड़े हो गए।
 
"और सबसे अधिक समर्पित?"
 
"मोमबत्ती.." इस बार स्वर अपेक्षाकृत उच्च था।
 
वह दो क्षण चुप रहा, फिर कहा, "सबसे अधिक समर्पित है शराब..."
सुनते ही सभा में निस्तब्धता छा गई, उसने आगे कहा, "क्योंकि यह किसी के आनंद के लिए स्वयं को पूरी तरह नष्ट करने हेतु तैयार है।"
 
फिर दो क्षण चुप रहकर उसने कहा "और सबसे अधिक अच्छी है मोमबत्ती, क्योंकि उसकी रौशनी हमें सभी रंग दिखाने की क्षमता रखती है। पूर्ण समर्पित इसलिए नहीं, क्योंकि इसके नष्ट होने में समाप्ति के बाद अच्छा कहलवाने की आकांक्षा छिपी है।"
 
सभा में विद्यार्थी अगली बात कहने से पूर्व ही समझ कर स्तब्ध हो रहे थे, और आखिर प्रोफेसर ने कह ही दिया, "इन तीनों में से सबसे बुरी चीज है यह पौधा... सभी ने इसकी प्रशंसा की... जबकि यह अधूरा है, पानी नहीं मिलेगा तो सूख जाएगा। "
 
"लेकिन इसमें बुरा क्या है?" एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया
 
"अधूरेपन को भूलकर, केवल प्रशंसा सुनकर स्वयं को पूर्ण समझना।" प्रोफेसर ने पौधे की झूमती पत्तियों को देखकर कहा।

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