श्रुति नेमा 'नूतन'
दोपहर के लगभग 3 बजे थे। रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार से मंजिल की तरफ बढ़ी जा रही थी। यात्रियों का शोर गाड़ी की बोगी में गूंज रहा था। कोई राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप में उलझा था तो कोई परनिंदा करने में व्यस्त था। उन्हीं आवाजों के बीच 10-11 साल का एक बच्चा- 'एक रुपया दे दो बाबूजी।' 'एक रुपया दे दो मांजी।' की रट लगाए हुए था।
अब वो सबके पैर पकड़-पकड़ कर एक रुपया देने की गुहार लगा रहा था। वो कह रहा था- 'बाबूजी भूख लगी है, कुछ खाने ही दे दो।' पर लोग उसे दुत्कार रहे थे। उसके फटे-चिथे कपड़ों पर हंस रहे थे। इसी बीच रेलगाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी। नर्मदा नदी का पुल आ गया था।