एक दिन हरे और भगवे रंग में विवाद छिड़ गया।
हरा रंग गुर्राकर बोला-"देख बे भगवे! तू आजकल मेरी मुख़ालफ़त में अनाप-शनाप बोले जा रहा है और पूरे देश में अपने झंडे गाड़ने की कोशिश कर रहा है।
तभी वहां खादी के रूप में सफेद रंग का प्रवेश हुआ।
उसने दोनों को रोका। फिर हरे को एक ओर ले जाकर समझाया-"देखो भाई! तुम मुझे वोट दो,मैं तुम्हें 'अल्पसंख्यक बनाम दीन-दुःखी' की चिर सहानुभूति दिलवाकर भगवे के ख़िलाफ़ कुछ भी कहने-करने के सर्वाधिकार दूंगा।"
'हरे' और 'भगवे' को 'सफेद' की बात जंच गई और उसकी दिखाई राह पर वे चल पड़े।
परिणामस्वरूप और तो कुछ नहीं हुआ। बस,अब तक गर्व से मस्तक ताने खड़ा तिरंगा लज्जा और अवसाद से तनिक झुक गया,जिस पर तीनों का ध्यान नहीं गया...