मन को 11वीं इन्द्रिय माना जाता है, जो ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के बीच नियामक का काम करता है। ये इन्द्रियां और मन हमारे ज्ञान और कर्म के साधन मात्र न होकर इस संसार को भोगने के भी साधन हैं। संसार का सुख भोगने में मन विचार और कल्पना के द्वारा भी सहायता करता है।
मन का एक प्रमुख काम भाषा और विचार को जन्म देना है। मन और भाषा सदा साथ-साथ रहते हैं। जब तक मनुष्य के मस्तिष्क में मन सक्रिय है, भाषा का जन्म होगा ही। यदि हम चिंतन की भी भाषा को मिलाकर देखें तो पाएंगे कि हमारी भाषा का 99 प्रतिशत से ज्यादा अनावश्यक है। यह अनावश्यक भाषा स्पष्टता लाने के बजाय भ्रांति ही अधिक पैदा करती है।
गीता का कहना है कि मनुष्य को शब्दों के ऊपर उठना है। इनमें धार्मिक ग्रंथों के शब्द भी शामिल हैं। बुद्धि का स्थान मन के ऊपर है। बुद्धि की अवस्था पर भाषा का कार्य समाप्त हो जाता है, क्योंकि उस अवस्था में मनुष्य शब्दों के व्यवधान के बिना सत्य का सीधा साक्षात्कार करता है।