जीने की कला सिखाती कविता : धर्म और विज्ञान

- कैलाश यादव 'सनातन' 
 

 
धर्म का विज्ञान से, भक्त का भगवान से,
क्या रिश्ता, हम जान लें, गीता का कुरान से।
 
धर्म जीने की कला, मजहबों का सार है,
जीवित कैसे हम रहें, विज्ञान पर ये भार है।
 
धर्म से ही मान है, विज्ञान से अभिमान है,
कुदरत से मिली ये दो आंखें, मानवता की शान हैं।
 
धर्म दुःख की है दवा, विज्ञान मरहम दर्द का,
जिसने भी समझी ये हकीकत, समझो गुणों की खान है।
 
धर्म सुख का जन्मदाता, विज्ञान मां आनंद की,
जिसने भी जानी ये पहेली, वही सुखी इंसान है।
 
धर्म मन का है नियंता, विज्ञान तन का दास है,
धर्म निर्मल हास्य तो, दूजा निरा परिहास है।
 
धर्म से जीवन खिला, विज्ञान से संसार ये,
धर्म से पावन धरा, विज्ञान से आकाश ये।
 
धर्म मन की भूख तो, विज्ञान तन की प्यास है,
धर्म में आशा जगत की, विज्ञान तन की आस है।
 
धर्म पढ़ाता, पाठ मर्म का, कर्म धुरी विज्ञान की,
धर्म भरता प्रेम जगत में, रक्षा करता ज्ञान की।
 

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