श्रीमद्भागवत पुराण की 10 रोचक बातें

WD Feature Desk

शनिवार, 2 मार्च 2024 (15:01 IST)
Shrimad Bhagwat Puran: श्रीमद्भागवत पुराण की कथाओं का अधिक प्रचलन है। अधिकतर कथावाचन इसी की कथाओं को सुनाते हैं। कई जगहों पर भागवत पुराण का आयोजन होता है। इस पुराण में श्रीकृष्‍ण की लीलाओं के साथ ही हिंदू धर्म की कई कथाओं और श्रीहरि विष्णु के सभी अवतारों की कहानी को समेटा गया है। आओ जाने हैं इस पुराण की 10 रोचक बातें।
 
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥- भागवत पुराण
अर्थात : श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।
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1. श्रीमद्भागवत पुराण को महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया था। इसे महापुराण कहा जाता है। इस पुराण के 12 स्कंध में 335 अध्याय है जिसमें 18 हजार श्लोक हैं।
 
2. इस पुराण में खासकर भगवान श्रीकृष्‍ण के जीवन की संपूर्ण कहानी के साथ ही श्रीहरि विष्णु के अवतारों की कथा। शिव पार्वती की कथा और कई पौराणिक कथाएं भी हैं।
 
3. भागवत पुराण में कलयुग का वर्णन मिलता है। इसमें बताया गया है कि कलयुग कैसा होगा, इस काल के लोग कैसे होंगे और यह युग कब समाप्त होगा। इसमें कलयुग के वर्ण के साथ ही इस पुराण में हमें कई भविष्यवाणियां भी पढ़ने को मिलती है। जैसे
 
दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥ श्लोक-3
अर्थ- इस युग में पुरुष-स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे। व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे। (लिव इन रिलेशनशिप)....इसी तरह की कई अन्य भविष्यवाणियां और कलयुग के राजवंशों का वर्णन मिलेगा।
 
4. श्रीमद्भागवत पुराण के प्रथम स्कन्ध इसमें भक्तियोग और वैराग्य, द्वितीय स्कन्ध में ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं विराट् पुरुष का स्वरूप, तृतीय स्कन्ध में उद्धव द्वारा भगवान के बालचरित्र का वर्णन, चतुर्थ स्कन्ध में राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि की कहानी, पंचम स्कन्ध में स्वर्ग, नरक, पाताल, समुद्र, पर्वत, नदी का वर्णन मिलता है। इसके बाद षष्ठ स्कन्ध में देवी, देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कहानी है। सप्तम स्कन्ध में हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र बताया गया है। अष्टम स्कन्ध में गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार कथा मिलेगी। नवम स्कन्ध में राजवंशों का विवरण और श्रीराम की कथा है। दशम स्कन्ध में आपको भगवान श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं को वर्णन मिलेगा। एकादश स्कन्ध में यदुवंश का किस तरह संहार हुआ था इसका वर्णन है। द्वादश स्कन्ध में विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि के स्वरूप का विवरण मिलेगा।
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5. श्रीमद्भागवत पुराण पर अनेक विद्वानों ने टीकाएं लिखी हैं- श्रीधर स्वामी (भावार्थ दीपिका; 13वीं शती, भागवत के सबसे प्रख्यात व्याखाकार), सुदर्शन सूरि (14वीं शती शुकपक्षीया व्याख्या विशिष्टाद्वैतमतानुसारिणी है), सन्त एकनाथ (एकनाथी भागवत; 16वीं शती मे मराठी भाषा की उत्तम रचना), विजय ध्वज (पदरत्नावली 16वीं शती; माध्वमतानुयायी), वल्लभाचार्य (सुबोधिनी 16वीं शती, शुद्धाद्वैतवादी), शुदेवाचार्य (सिद्धांतप्रदीप, निबार्कमतानुयायी), सनातन गोस्वामी (बृहद्वैष्णवतोषिणी),
जीव गोस्वामी (क्रमसन्दर्भ)।
 
6. श्लोक :
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।- 7/4/27
 
अर्थात- जो व्यक्ति देवता, वेद, गौ, ब्राह्मण, साधु और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि ब्राह्मण उसे कहते हैं, जो कि वैदिक नियमों का पालन करते हुए 'ब्रह्म ही सत्य है' ऐसा मानता और जानता हो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है।
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7. भागवत पुराण कथा 7 दिन तक ही सुनाई जाती है। इसका कारण है कि श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को यह शाप दिया था कि 7वें दिन आपको सांप काटेगा और तब आपकी मृत्यु हो जाएगी। इस शाप के बाद राजा परीक्षित अपने बड़े पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक कर, मुक्ति के लिए अपने गुरु से आज्ञा लेकर व्यास पुत्र श्री शुकदेव जी के आश्रम में पहुंच जाते हैं। ऋषि श्री शुकदेव जी ने राजा को 7 दिनों तक श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराया जिससे की राजा को मोक्ष प्राप्त हुआ। तभी से भागवत पुराण को 7 दिनों तो सुनाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
 
8. इस पुराण में 10 गुण या लक्षण माने गए हैं। सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वंतर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति,  आश्रय। श्रीमद्भागवत के 12वें स्कंध में पुराणों के जो 10 लक्षण बताए गए हैं, वह इस प्रकार हैं- 1. सर्ग, 2. विसर्ग, 3. वृत्ति, 4. रक्षा, 5. अंतर, 6. वंश, 7. वंशानुचरित, 8. संस्था, 9. हेतु, 10. अपाश्रय।
 
9. श्रीभागवत पुराण में कालगणणा का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह काल गणणा आज की गणना से कहीं ज्यादा सूक्ष्म, विस्तृत और विज्ञानसम्मत है। एक परमाणु से लेकर कल्प तक की अवधारणा है। एक परमाणु सेकंड का भी 100वां हिस्सा होता है, जबकि आधुनिक विज्ञान का समय सेकंड से ही प्रारंभ होता है।
 
10. श्रीभागवत पुराण का मूल विषय भक्ति है परंतु इसमें ज्ञान, बुद्धि, कर्म और योग की चर्चा भी कई गई है। इससे पढ़ने और सुनने से व्यक्ति के मन में भक्ति का अवतरण होता है। इसी के साथ ही जीवन में आ रही समस्याओं का उसे समाधान मिलता है।

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