क्षमा-याचना : आशुतोषी मां नर्मदा...

(एक भक्त की क्षमा-याचना)


आशुतोषी मां नर्मदा अभय का वरदान दो, 
शमित हो सब पाप मेरे ऐसा अंतरज्ञान दो। 
 
विषम अंतरदाह की पीड़ा से मुझे मुक्त करो, 
हे मकरवाहिनी पापों से मन को रिक्त करो। 
 
मैंने निचोड़ा है आपके तट के खजाने को, 
आपको ही नहीं लूटा मैंने लूटा है जमाने को। 
 
मैंने बिगाड़ा आवरण, पर्यावरण इस क्षेत्र का, 
रेत लूटी और काटा जंगल पूरे परिक्षेत्र का।
 
मैंने अमिट अत्याचार कर दुर्गति आपकी बनाई है, 
लूटकर तट संपदा कब्र अपनी सजाई है।
 
सत्ता का सुख मिला मुझे आपके आशीषों से, 
आपको ही लूट डाला मिलकर सत्ताधीशों से।
 
हे धन्य धारा मां नर्मदे अब पड़ा तेरी शरण, 
मां अब अनुकूल होओ मेरा शीश अब तेरे चरण।
 
उमड़ता परिताप पश्चाताप का अब विकल्प है, 
अब न होगा कोई पाप तेरे हितार्थ ये संकल्प है।
 
आशुतोषी मां नर्मदा अभय का वरदान दो, 
शमित हो सब पाप मेरे ऐसा अंतरज्ञान दो। 
 

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