Religion : शीतला अष्टमी कब है, मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
वर्ष 2023 में शीतला अष्टमी तथा कालाष्टमी का पर्व 10 जून, दिन शनिवार को मनाया जा रहा है। आपाढ़ कृष्ण अष्टमी के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व माता शीतला को समर्पित है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र, वैशाख, जेष्ठ और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी पूजन करने का प्रावधान है। इन चारों महीने के चार दिन का व्रत करने से शीतला जनित बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
इस पूजन में शीतल जल और बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है। शीतला अष्टमी के दिन श्रद्धालु व्रत रखकर माता की भक्ति करके अपने परिवार की रक्षा करने के लिए माता से प्रार्थना करते हैं। इस बार मतांतर से 10 और 11 जून को शीतलाष्टमी या बसौरा पर्व मनाया जाएगा।
आइए यहां जानते हैं पूजन के शुभ मुहूर्त, विधि और कथा के बारे में-
शनिवार, 10 जून 2023 पूजन के शुभ मुहूर्त : sheetla mata pujan 2023
आषाढ़ कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 10 जून, शनिवार को 02.01 पी एम से शुरू,
अष्टमी तिथि का समापन- 11 जून, रविवार को 12.05 पी एम पर होगा।
राहुकाल- 08.52 ए एम से 10.36 ए एम
गुलिक काल- 05.23 ए एम से 07.07 ए एम
यमगण्ड- 02.05 पी एम से 03.50 पी एम
अभिजित मुहूर्त-11.53 ए एम से 12.48 पी एम
अमृत काल- 08.54 ए एम से 10.24 ए एम
तिथि- सप्तमी- 02.01 पी एम तक, तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र- शतभिषा- 03.39 पी एम तक
योग- विषकुम्भ- 12.49 पी एम तक
करण- बव- 02.01 पी एम तक
द्वितीय करण बालव- 01.00 ए एम 11 जून तक रहेगा।
पूजा विधि : sheetla mata puja vidh
- शीतला अष्टमी के दिन अलसुबह जल्दी उठकर माता शीतला का ध्यान करें।
- इस दिन व्रती को प्रातः कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए।
- स्नान के पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेना चाहिए-
अर्थात्- मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता/करती हूं।
शीतलाष्टमी कथा : Shitala Mata Katha
शीतला माता की कथा के अनुसार एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला (चेचक) निकली। उसी के राज्य में एक काछी-पुत्र को भी शीतला निकली हुई थी। काछी परिवार बहुत गरीब था, पर भगवती का उपासक था। वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भी भली-भांति निभाता रहा। घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था।
नियम से भगवती की पूजा होती थी। नमक खाने पर पाबंदी थी। सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली जाती थी। गरम वस्तु न वह स्वयं खाता, न शीतला वाले लड़के को देता था। ऐसा करने से उसका पुत्र शीघ्र ही ठीक हो गया। उधर जब से राजा के लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ था, तब से उसने भगवती के मंडप में शतचंडी का पाठ शुरू करवा रखा था। रोज हवन व बलिदान होते थे। राजपुरोहित भी सदा भगवती के पूजन में निमग्न रहते।
राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती, विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते। सब्जी के साथ कई प्रकार के मांस भी पकते थे। इसका परिणाम यह होता कि उन लजीज भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल उठता। वह भोजन के लिए जिद करता। एक तो राजपुत्र और दूसरे इकलौता, इस कारण उसकी अनुचित जिद भी पूरी कर दी जाती। इस पर शीतला का कोप घटने के बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ-साथ उसे बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे, जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी।
शीतला की शांति के लिए राजा जितने भी उपाय करता, शीतला का प्रकोप उतना ही बढ़ता जाता। क्योंकि अज्ञानतावश राजा के यहां सभी कार्य उलटे हो रहे थे। इससे राजा और अधिक परेशान हो उठा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब होने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है। एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है।
यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया। इसी सोच में उसे नींद आ गई। श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा- 'हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से प्रसन्न हूं। इसीलिए आज भी तुम्हारा पुत्र जीवित है।
इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए। नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी का किसी के पास आना-जाना मना है क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। अतः इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।' विधि समझाकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। प्रातः से ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी।
इससे राजकुमार की सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ही ठीक हो गया। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्यकाल में सात्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य ही नहीं मिलता बल्कि समस्त दुखों का भी निवारण होता है। ऐसा सप्तमी-अष्टमी तिथि शीतला माता के पूजन का विधान है।
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