महान संत रविदास की रचनाएं

पूजा कहा चढ़ाऊं... 


 
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊं ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊं ॥टेक॥
 
थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भंवर जल मीन बिगारी ॥1॥
 
मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥2॥
 
मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊं सहज सरूप ॥3॥
 
पूजा अरचा न जानूं तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥4॥ 
 
 
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राम दरसन दीजै... 



 
दरसन दीजै राम दरसन दीजै।
दरसन दीजै हो बिलंब न कीजै।। टेक।।
 
दरसन तोरा जीवनि मोरा, 
बिन दरसन का जीवै हो चकोरा।।1।।
 
माधौ सतगुर सब जग चेला, 
इब कै बिछुरै मिलन दुहेला।।2।।
 
तन धन जोबन झूठी आसा, 
सति सति भाखै जन रैदासा।।3।। 
 
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राम नाम रट लागी... 


 
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
 
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, 
जाकी अंग-अंग बास समानी।
 
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, 
जैसे चितवत चंद चकोरा।
 
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, 
जाकी जोति बरै दिन राती।
 
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, 
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
 
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, 
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
 
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पार गया... 


 
पार गया चाहै सब कोई।
रहि उर वार पार नहीं होई।। टेक।।
 
पार कहैं उर वार सूं पारा, 
बिन पद परचै भ्रमहि गवारा।।1।।
 
पार परंम पद मंझि मुरारी, 
तामैं आप रमैं बनवारी।।2।।
 
पूरन ब्रह्म बसै सब ठाइंर्, 
कहै रैदास मिले सुख सांइंर्।।3।।
 
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मन क्रम वचन कहै रैदासा


 
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवन सूं जोरौं।। टेक।।
 
तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, 
तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।1।।
 
जहां जहां जांऊं तहां तुम्हारी पूजा, 
तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।2।।
 
मैं हरि प्रीति सबनि सूं तोरी, 
सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूं जोरी।।3।।
 
सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, 
मन क्रम वचन कहै रैदासा।।4।। 


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