कैसे बनता है शिवलिंग: बहुत से लोग मानते हैं कि यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। अर्थात गुफा में एक-एक बूंद पानी नीचे सेंटर में गिरता है और वही पानी धीरे-धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है। अकबर के इतिहासकार अबुल फजल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि जिन प्राकृतिक स्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है। यही बात सबसे ज्यादा अचंभित करती है। विज्ञान के अनुसार बर्फ को जमने के लिए करीब शून्य डिग्री तापमान की जरूरी है। किंतु अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई में शुरू होती है। तब इतना कम तापमान संभव नहीं होता। हालांकि कुछ वैज्ञानिक तर्क देते हैं कि इस गुफा में हवा का घुमाव ही कुछ ऐसा है कि यहां हर साल शरद ऋतु में प्राकृतिक रूप से विशाल शिवलिंग बन जाता है। यही कारण है कि यह बाकी स्थानों की बर्फ पिघल जाने पर भी अपना अस्तित्व बनाए रखता है।
अन्य गुफाओं में क्यों नहीं बनता ऐसा शिवलिंग: धर्म में आस्था रखने वालों का मानते हैं कि यदि यही नियम शिवलिंग बनने का है तो संपूर्ण क्षेत्र में और भी गुफाएं हैं जहां बूंद-बूंद पानी टपकता है वहां क्यों नहीं बनता है हिमलिंग? ऐसा होने पर बहुत से शिवलिंग इस प्रकार बनने चाहिए। कई गुफाओं में शिवलिंग बनता भी है तो वह ठोस बर्फ का नहीं बनता है वह थोड़े में ही बिखर जाता है।
आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं, लेकिन वहां उनमें से कुछ में ही शिवलिंग बनता है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि इस गुफा में और शिवलिंग के आस-पास मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ पाई जाती है, जो छूने पर बिखर जाती है लेकिन यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि सिर्फ अमरनाथ के हिम शिवलिंग का निर्माण पक्की बर्फ से होता है। दूसरी सबसे बड़ी बात की इसकी ऊंचाई चंद्रमा की कलाओं के साथ घटती-बढ़ती है।