1. हिन्दू धर्म में स्वास्तिक (The symbol of the Swastika) को धर्म का प्रतीक चिह्न माना गया है। इसे कुशलक्षेम, शुभकामना, आशीर्वाद, पुण्य, शुभभावना, पाप-प्रक्षालन तथा दान स्वीकार करने के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। स्वास्तिक कई चीजों से बनाए जाते हैं, जैसे कुंमकुंम, हल्दी, सिंदूर, रोली, गोबर, रंगोली तथा अक्षत का स्वास्तिक।
3. स्वास्तिक एक शुभ प्रतीक माना जाता है, जो अनादि काल से विद्यमान होकर संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। सभ्यता और संस्कृति के पुरातन लेख केवल हमारे वेद और पुराण ही हैं और हमारे ऋषियों ने उनमें स्वास्तिक का मान प्रस्तुत किया है।
6. यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण धर्मग्रंथ है। यजुर्वेद की इस कल्याणकारी एवं मंगलकारी शुभकामना, स्वस्तिवाचन में स्वस्तिक का निहितार्थ छिपा है। हर मंगल एवं शुभ कार्य में इसका भाव भरा वाचन किया जाता है, जिसे स्वस्तिवाचन कहा जाता है।
ॐ स्वस्ति नऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेद्राः।
स्वस्ति नस्ताक्षर्योऽअरिष्टनेमिः, स्वस्ति तो बृहस्पतिर्दधातु॥
यह चार वेदों में से एक है। इसकी पूर्व दिशा में वृद्धश्रवा इंद्र, दक्षिण में वृहस्पति इंद्र, पश्चिम में पूषा-विश्ववेदा इंद्र तथा उत्तर दिशा में अरिष्टनेमि इंद्र अवस्थित हैं।
7. हिन्दू सनातन धर्म में स्वास्तिक का बहुत महत्व है। स्वास्तिक को सृष्टिचक्र की संज्ञा दी गई है। बिना स्वास्तिक बनाए कोई भी पूजा, विधान और यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत में और त्योहारों पर हर घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक लगाना अतिशुभ फलदायी माना जाता है।