हर माह की तरह ही माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर यह व्रत रखा जाता है, जिसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। और इस एकादशी के व्रत से सभी पापों का नाश होता है। इस बार वर्ष 2025 में 25 जनवरी, शनिवार को षटतिला एकादशी मनाई जा रही है।
धार्मिक मतानुसार षट्तिला का अर्थ छह तिल होता है, और इसी कारण इस एकादशी का नाम षट्तिला एकादशी पड़ा है। इस दिन व्रतधारी छ: तरीकों से तिल का उपयोग करके भगवान श्री विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही इस व्रत-उपवास में तिल का विशेष महत्व होने के कारण भी भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी के पूजन तथा उन्हें तिल के भोग अर्पित करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूरी होती है। और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होकर जीवन में वैभव प्राप्त होता है।
सुहाग की रक्षा हेतु इस दिन सौभाग्यवती महिलाओं को सौभाग्य की चीजें तथा तिल की खाद्य सामग्री दान करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाला बड़े से बड़ा संकट टल जाता है। माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करने से कभी नरक के दर्शन नहीं होते हैं और जीवन के सभी संकट दूर होकर मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त होता है।
इस दिन तिल का उपयोग लाभकारी होने के कारण तिल के तेल की मालिश तथा तिल का उबटन लगाकर स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव का पूजन करने का भी विशेष महत्व है। हिन्दू मान्यतानुसार माघ मास में जितना तिल दान किया जाता हैं, उतना ही हजारों साल तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होता है। तथा इस व्रत से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है।
इसके साथ ही इस एकादशी के दिन स्नान के पश्चात तुलसी जी का विधिवत पूजन करके उन्हें श्रृंगार सामग्री अर्पित करके कलावा बांधना भी पुण्यकारी रहता है। पद्म पुराण के अनुसार षट्तिला एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने और उन्हें तिल का भोग चढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण कहा गया है। साथ ही इस दिन खाने-पीने की तथा तिल से बनी चीजों का दान करने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।
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