नीम करौली बाबा के 5 चमत्कार, 5 तथ्य

Webdunia
सोमवार, 29 मई 2023 (15:29 IST)
Biography of Neem Karoli Baba : बाबा नीम करोली एक चमत्कारिक बाबा थे। कैंची धाम के आश्रम को उसका प्रमुख स्थान माना जाता है। वे एक सीधे सादे सरल व्यक्ति थे। विश्‍वभर में उनके लाखों भक्त हैं। उनके भक्त उन्हें हनुमानजी का अवतार मानते हैं। आओ जानते हैं उनके संबंध में 5 तथ्य और उनके जीवन से जुड़े 5 चमत्कारी किस्से।
 
नीम करौली बाबा के 5 तथ्य:
1. नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था। बाबा नीम करौली महाराज के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। ज्येष्ठ पुत्र अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, जबकि कनिष्ठ पुत्र धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर रहे थे। हाल ही में उनका निधन हो गया है।
 
2. 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। 1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत में साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे। उस दौरान लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा सहित वे कई नामों से जाने जाते थे। गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारते लगे थे।
 
3. उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। बाबा नीम करौली ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है। नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। यह एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। यहां बाबा का समाधि स्थल भी है। यहां यहां बाबा नीम करौली की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। यहां हनुमानजी की मूर्ति भी है।
 
4. नीम करोली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है। कहा जाता है कि इस धाम की यात्रा करके उनका जीवन बदल गया। बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में सबसे ज्यादा अमेरिकी ही आते हैं। नीम करौली बाबा की मृत्‍यु के पश्‍चात 1974 में स्‍टीव जॉब्‍स भी आत्‍मज्ञान के लिए उनके आश्रम में आए थे और इसके पश्‍चात ही उन्‍होंने आज के दौर की मशहूर कं‍पनी 'एप्‍पल' की स्‍थापना की थी। मार्क जुकरबर्ग जब उनके आश्रम में आए थे तब फेसबुक का प्रारंभिक दौर चल रहा था और यहां पर उनके मन में कुछ नए विचार उपजे जिससे फेसबुक आज की अपनी स्थिति प्राप्‍त कर पाया है।
 
5. 15 जून को देवभूमि कैंची धाम में मेले का आयोजन होता है और यहां पर देश-विदेश से बाबा नीम करौली के भक्त आते हैं। इस धाम में बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। देश-विदेश से हजारों भक्त यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे।
 
नीम करौली बाबा ने अपने जीवन के आखिरी पड़ाव तक सं‍पूर्ण भारत एवं अन्य देशों की यात्राएं कीं। बाबा श्री हनुमानजी के भक्‍त थे तथा उन्‍होंने भारत में 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया है। उनके नाम से अमेरिका तथा मैक्सिको में भी हनुमान मंदिर स्‍थापित किए गए हैं। 
नीम करौली बाबा के 5 चमत्कार:
1. एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था। तब बाबा को अगले स्टेशन 'नीब करोली' में ट्रेन से उतार दिया गया। बाबा थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। ऑफिशल्स ने ट्रेन को चलाने का आर्डर दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परंतु ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेड का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें ससम्मान ट्रेन में बैठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया। 
 
2. एक बार उन्‍होंने अपने एक विदेशी अनुयायी को ब्‍लडप्रेशर की दवा का सेवन करते हुए देखा। नीम करौली बाबा ने उससे दवा की शीशी मांगी और उसे खोलकर उसमें रखी दवा की सारी गोलियां खा गए। यह देखकर अनुयायी काफी घबरा गया और जल्‍द ही एम्‍बुलेंस बुलाने की तैयारी में लग गया। परंतु घंटों बीत जाने के पश्‍चात भी बाबा को कुछ नहीं हुआ। वे पहले की तरह ही मुस्‍करा रहे थे और शांत थे।
 
3. एक बार एक विदेशी अनुयायी अपने पति को लेकर नीम करौली बाबा के पास पहुंची थीं। उस विदेशी महिला का पति बाबाओं को नहीं मानता था और न ही उसका धर्म में विश्‍वास था, परंतु पत्नी के कहने पर वह यहां आया था। वह व्यक्ति आश्रम और नीम करौली बाबा को देखकर सोचने लगा कि इन साधारण से व्यक्ति के पीछे मेरी पत्नी पागल है। फिर वह वहां से उठकर चला गया। रात में वह नदी के किनारे खड़ा अपने, पत्नी के और भविष्य के बारे में सोचने लगा। दूसरे दिन सुबह वह पुन: अपने देश जाने से पूर्व औपचारिकतावश पत्नी के कहने पर नीम करौली बाबा के दर्शन करने गया। वहां बाबा ने उसे बुलाकर पूछा कि तुम यहां आकर क्या सोच रहे थे? और तुम नदी के किनारे खड़े हुआ क्या सोच रहे थे? क्या तुम यह सब जानता चाहते हो? तब बाबा ने वह सब बता दिया जो वह सोच रहा था। यह सुनकर उसे बाबा पर विश्‍वास हो गया। 
 
4. रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने 1979 में नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव' नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं। इसी कंबल की एक कहानी है। बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना 1943 की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।
 
दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती।  वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और चादर को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।
 
जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।
 
लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।
 
उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।
 
5. जूलिया रॉबर्ट ने बाबा को कभी नहीं देखा था परंतु उनके सपने में बाबा अक्सर आ जाते थे। एक दिन उन्होंने उनका चित्र कहीं पर देखा और वे तभी से उनकी भक्त बन गई थी। जूलिया रॉबर्ट ने उनके चित्र देखकर और अमेरिका में निवास कर रहे उनके अनुयायियों से उनके किस्‍से सुनकर हिन्‍दू धर्म को अंगीकार कर लिया।

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