1886-87 में इस विद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान विभाग खोला गया और उसके लिए आवश्यक सामग्री क्रय करने हेतु राज्य की ओर से विशेष अनुदान दिया गया। 1894 में इस मदरसे को इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने 'इटरमीडिएट' परीक्षा के केंद्र के रूप में स्वीकृति प्रदान कर दी। प्रारंभ में ये परीक्षाएं डेली कॉलेज में हुईं तत्पश्चात् इनका संचालन केनेडियन मिशन महाविद्यालय (इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज) के प्राचार्य की देखरेख में होने लगा।
1911 ई. तक इस विद्यालय की छात्र संख्या में काफी वृद्धि हो चुकी थी। विद्यार्थियों के खेलकूद के लिए चिमनबाग मैदान को विद्यालय के अधिकार में लेकर उसका विकास किया गया। विद्यालय के छात्रावास (जहां अब शिक्षा विभाग का ऑफिस है) के समीप ही नई व्यायामशाला भी बनाई गई। 1911 में इस विद्यालय में 761 विद्यार्थी पढ़ रहे थे। इतनी संख्या को पुराने भवन में समायोजित करना कठिन हो रहा था। 1912 में अनाथालय भवन को भी विद्यालय ने ले लिया और वहां हिन्दी कक्षाएं लगाई गईं। लेकिन इस परिवर्तन से भी व्यवस्था में कोई सुधार नहीं आया।