चुंगीकर से मुक्ति

इंदौर नगर व्यापार व उद्योगों का केंद्र बना, इसमें यहां के शासकों का बहुमूल्य योगदान रहा है। इंदौर व संपूर्ण राज्य में व्यापार वृद्धि के लिए महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) ने 1856 में लगभग 20-21 वस्तुओं पर से चुंगीकर पूरी तरह समाप्त कर दिया था। राजकीय आदेश को स्थाई करने के पूर्व यह व्यवस्था एक वर्ष के लिए प्रयोग के बतौर लागू की गई थी। इस अवधि में इसके गुण-दोषों का पता चल जाने वाला था। राज्य ने इस व्यवस्था में व्यापारियों को भी सहभागी बनाया और उनके सुझाव या उन्हें होने वाली कठिनाइयों को आमंत्रित किया गया था। इन सब बातों पर विचार करने के बाद ही इस व्यवस्था को स्थाई किया जाना था। राज्य द्वारा जो सूचना पत्र जारी किया गया था, उसे उद्धृत करना रोचक होगा-
 
'इस्तिहार अहलीयान दरबार सरकार बहादुर शुरू सं. 1265 फसली (1856 ई.) सारे बेपारियों और महाजनों और साहूकारों वगैरा लोगों इलाके दरबार और गैर इलाके को मालूम हो कि सारे लोगों के फायदे और रैय्यत के आराम और बढ़ाने व्यापार के वास्ते सरकार ने बाजी चीजों पर से सायर (चुंगी) का महसूल माफ करके और नया सिरिस्ता महसूल का बांध के सारे लोगों को जाहिर होने वास्ते यह इस्तिहार जारी किया है।

यह नई सिरस्ता महसूल का पहिले आजमाइश के लिए एक बरस के वास्ते सारे इलाकों व महालों में दरबार से जारी किया जाता है। इस बरस दिन के अंदर बंदोबस्त की ललाई जाहिर हो जाएगी। बरस दिन उसका वहीवाट का हाल देखकर सरकार को जैसा मुनासिब मालूम होगा, वैसा हुकुम वास्ते कायम रखने इस बंदोबस्त या उसके बदलने के जारी फरमावेंगे। जो कुछ उजर व्यापारी लोगों का दरबार हांसल व महसूल इस बंदोबस्त के करना हो, इसके एक बरस के अंदर दरबार में करें।'
 
इस हुक्मनामे द्वारा जिन वस्तुओं पर चुंगीकर समाप्त कर दिया गया था, उनमें प्रमुख- आटा चक्कियां, चारकोल, पान, अफीम की पत्तियां, घोड़े व टट्टू, घास व जलाऊ लकड़ी, हरी पत्तियां, मिट्टी के बर्तन, जूते, भेड़ें, अन्य पशु, चूड़ियां, कागज, तलवारें, कंबल आदि महत्वपूर्ण थीं।
 
1 जनवरी 1857 से बंबई-आगरा मार्ग से होकर गुजरने वाली वस्तुओं पर से भी 'ट्रांजिट ड्यूटी' समाप्त कर दी गई। इस कार्य के लिए भारत के गवर्नर जनरल ने महाराजा को पत्र लिखकर बधाई प्रेषित की थी। उस बधाई पत्र का उत्तर देते हुए महाराजा ने भारत के गवर्नर जनरल को लिखा-
 
'व्यापार को बढ़ावा देना, जनता के कल्याणार्थ कार्य करना तथा यात्रियों के लिए सुख-सुविधाएं जुटाना, जैसा कि आप जानते हैं, मेरी नीतियों के प्रमुख अंग रहे हैं।' महाराजा होलकर की इस उदार नीति का अनुसरण बाद में मध्यभारत की अन्य रियासतों द्वारा भी किया गया।
 
ऑक्ट्राय के बदले नगर पालिका को अनुदान
 
नगर पालिका की प्रारंभिक आर्थिक दशा बहुत अच्छी न थी। 1886 में महाराजा शिवाजीराव होलकर के सिंहासनारूढ़ होने के बाद नगर पालिका की आर्थिक दशा सुधारने के लिए विशेष ध्यान दिया गया। 1891 में नगर पालिका के आय स्रोतों में वृद्धि करने के लिए प्रथम नगर पालिका अधिनियम होलकर दरबार द्वारा पारित किया गया। इससे पालिका की आय में संतोषजनक वृद्धि हुई किंतु साथ ही नगर पालिका के दायित्वों की सूची भी बढ़ा दी गई। नगर में सड़कों व पुलों के निर्माण का दायित्व भी नगर पालिका को सौंप दिया गया। इनके लिए पालिका के पास पर्याप्त धन न था। उसी वर्ष और अधिक कर लगाने से नागरिकों में असंतोष बढ़ सकता था।

अत: 1906 ई. में इस असुविधा को समाप्त करने के लिए दरबार ने गहन विचार-विमर्श किया। उन दिनों नगर पालिका की आय के प्रमुख स्रोतों में ऑक्ट्राय (सयार) तथा अफीम गोदाम से होने वाली आय थी। मंदसौर व उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में उत्पादित अफीम ट्रेन द्वारा इंदौर आती थी और रेलवे स्टेशन से अफीम गोदाम ले जाई जाती थी। किबे कंपाउंड के सामने स्थित वर्तमान विक्रय कर कार्यालय जिस भवन में लगता है, वह अफीम गोदाम था। अफीम के आने पर टैक्स वसूला जाता था। इंदौर स्थित रेजीडेंट ने यद्यपि भारत के गवर्नर जनरल से महाराजा पर इस बात के लिए दबाव डलवाया था कि अफीम कर समाप्त कर दिया जाए किंतु महाराजा ने कर समाप्त करने से इंकार कर दिया।
 
उक्त दोनों करों की वसूली में नगर पालिका कर्मचारियों को भारी परेशानियों का सामना करना होता था। महू की फौजी छावनी व इंदौर रेसीडेंसी क्षेत्र में जाने वाली कुछ वस्तुओं पर होलकर दरबार द्वारा कर में रियायत दी गई थी, रेसीडेंसी कर्मचारियों द्वारा प्राय: सभी वस्तुओं को करमुक्त कराने के प्रयासों में विवाद खड़े हो जाया करते थे। रेलवे स्टेशन से आने वाली समस्त वस्तुएं होलकर सीमा से गुजरती थीं। स्टेशन के बाहर ही पालिका की चुंगी चौकी थी अत: विवाद वहीं अधिक खड़े होते थे।
 
इन विवादों को समाप्त करने व पालिका कर्मचारियों की परेशानियों को दूर करने के लिए 1906 से ऑक्ट्राय तथा अफीम गोदाम से होने वाली आय के बदले 40,000 रु. वार्षिक की सहायता राज्य द्वारा स्वीकृत कर दी गई, जो राजकीय कोषालय से सीधे नगर पालिका को प्राप्त होने लगी।

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