काशी, मथुरा, अयोध्या, मक्का, गांधार, पेशावर, नालंदा, तक्षशिला, तेहरान, मदीना, बगदाद, मोसुल, रोम, ईजिप्ट, लोनान, एथेंस, उज्जैन, रामेश्वरम और जगन्नाथ की तरह यरुशलम भी प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। यह शहर मूल रूप से यहूदियों का शहर है लेकिन बाद में यह शहर ईसाई और मुस्लिमों के लिए भी पवित्र स्थल बन गया। यहां एक सुलेमानी मंदिर (सिनेगॉग) था जिसके परिसर में अब मस्जिद, चर्च और सिनेगॉग है।
यहां पर मुस्लिमों की मस्जिद अल-हरम है जिसे गोल्डन टेम्पल या डोम ऑफ द रॉक कहते हैं। यहीं पास में अल अक्सा मस्जिद है। इसी के पीछे है पश्चिमी दीवार जो यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है। इससे एक किलोमीटर की दूरी पर है ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चर्च। यहूदियां का यहां सबसे पवित्र मंदिर था जिसे 72वीं सदी में रोमनों ने तोड़ दिया था। अब इस मंदिर की एक दीवार ही बची है।
कहते हैं कि 937 ईपू बना यह सिनेगॉग इतना विशाल था कि इसे देखने में पूरा एक दिन लगता था, लेकिन लड़ाइयों ने इसे ध्वस्त कर दिया। अब इस स्थल को 'पवित्र परिसर' कहा जाता है। माना जाता है कि इसे राजा सुलेमान ने बनवाया था। किलेनुमा चहारदीवारी से घिरे पवित्र परिसर में यहूदी प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते हैं। इस परिसर की दीवार बहुत ही प्राचीन और भव्य है। यह पवित्र परिसर यरुशलम की ओल्ड सिटी का हिस्सा है।
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यरुशल का इतिहास
मध्यपूर्व का यह प्राचीन नगर यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्मों के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। फिलिस्तीन इसे अपनी राजधानी बनाना चाहता है जबकि इसराइल अपनी। इसराइल का एक हिस्सा है गाजा पट्टी और रामल्लाह, जहां फिलीस्तीनी मुस्लिम लोग रहते हैं और उन्होंने इसराइल से अलग होने के लिए विद्रोह छेड़ रखा है। ये लोग यरुशलम को इसराइल के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं।
पिछले सैकड़ों सालों से यह स्थान विवाद का केंद्र रहा है। शुरुआत से ही यहूदियों के प्राचीन राज्य इसराइल में यहूदियों के 10 कबीले रहा करते थे। हजरत मूसा ईजिप्ट से जाकर अपने कबीलों के साथ यरुशलम में बस गए थे, क्योंकि यही उनका प्राचीन शहर था। यहूदियों के पवित्र राजा दाऊद और सुलेमान के बाद इस स्थान पर बेबीलोनियों तथा ईरानियों का कब्जा रहा फिर इस्लाम के उदय के बाद बहुत काल तक मुसलमानों ने यहां पर राज्य किया। इस दौरान यहूदियों को इस क्षेत्र से कई दफे खदेड़ दिया गया।
क्रूसेड : क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ख्रिस्त धर्म की रक्षा के लिए युद्ध। ख्रिस्त धर्म अर्थात ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए युद्ध। अधिकतर लोग इसका इसी तरह अर्थ निकालते हैं लेकिन सच क्या है यह शोध का विषय हो सकता है। जेहाद और क्रूसेड के दौर में सलाउद्दीन और रिचर्ड ने इस शहर पर कब्जे के लिए बहुत सारी लड़ाइयां लड़ीं। ईसाई तीर्थयात्रियों की रक्षा के लिए इसी दौरान नाइट टेम्पलर्स का गठन भी किया गया था।
ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच सात बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध सात बार हुआ था इसलिए इसे सात क्रूश युद्ध भी कहते हैं। उस काल में इस भूमि पर इस्लाम की सेना ने अपना आधिपत्य जमा रखा था।
पहला क्रूसेड : अगर 1096-99 में ईसाई फौज यरुशलम को तबाह कर ईसाई साम्राज्य की स्थापना नहीं करती तो शायद इसे प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) नहीं कहा जाता। जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे। इस कत्लेआम ने मुसलमानों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में एकजुट हुए और पहली दफा अरबी भाषा के शब्द 'जिहाद' का इस्तेमाल किया गया। जबकि उस दौर में इसका अर्थ संघर्ष हुआ करता था। इस्लाम के लिए संघर्ष नहीं, लेकिन इस शब्द को इस्लाम के लिए संघर्ष बना दिया गया।
दूसरा क्रूसेड : 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। 1191 में तीसरे धर्मयुद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े। इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-बदर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी।
लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा जबकि उनका साथ देने के लिए कोई दूसरा नहीं था। वह या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में रह रहे थे।
इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिए जंग करते रहे। इस दौर में इस्लाम ने अपनी पूरी ताकत भारत में झोंक दी।
लगभग 600 साल के इस्लामिक शासन में इसराइल, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अफ्रीका आदि मुल्कों में इस्लाम स्थापित हो चुका था। लगातार जंग और दमन के चलते विश्व में इस्लाम एक बड़ी ताकत बन गया था। इस जंग में कई संस्कृतियों और दूसरे धर्म का अस्तित्व मिट चुका था।
17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ जहां इस्लाम थोपा जा रहा था। यह था अंग्रेजों का वह काल जब मुसलमानों से सत्ता छीनी जा रही थी। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। उसी दौरान अरब राष्ट्रों में पश्चिम के खिलाफ असंतोष पनपा और वह ईरान तथा सऊदी अरब के नेतृत्व में एक जुट होने लगे।
बहुत काल तक दुनिया चार भागों में बंटी रही, इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य। फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। कम्यूनिस्ट आंदोलन, आजादी के आंदोलन चले और सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा। इसके चलते ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया तो कई नए मुल्कों का जन्म हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली। यहां दुनिया भर से यहूदी फिर से इकट्ठे होने लगे। इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया जिसके विरोध में फिलिस्तीन इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ। फिर से एक नई जंग की शुरुआत हुई। इसे नाम दिया गया फसाद और आतंक।
यहूदियों को फिर से मिला इसराइल : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसराइल फिर से यहूदी राष्ट्र बन गया तो यरुशलम भी उसके कब्जे में ले लिया गया और दुनियाभर के यहूदियों को पुन: इसराइल में बसाया गया। इस तरह इस भूमि पर यहूदी भी अपना अधिकार चाहते थे। ईसाई, यहूदी और मुसलमान तीनों ही धर्म के लोग आज भी उस भूमि के लिए युद्ध जारी रखे हुए हैं।
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यरुशलम का परिचय
यरुशलम को इब्रानी में येरुशलयिम और अरबी में अल-कुद्स कहा जाता है। इसे जेरूसलम भी कहते हैं। इसराइल के 4 प्रमुख क्षेत्र हैं- तेल अवीव, यरुशलम, हैफा और बीयर शेव। यरुशलम इसराइल का सबसे बड़ा शहर है। इसे इसराइल की राजधानी बनाए जाने का विवाद चल रहा है। वर्तमान में इसराइल की राजधानी तेल अवीव है। यरुशलम के पास से जॉर्डन सीमा प्रारंभ होती है। इसराइल के तेल अवीव की सीमा भी इससे लगी हुई है।
भूमध्य सागर और मृत सागर के बीच इसराइल की सीमा पर बसा यरुशलम एक शानदार शहर है। शहर की सीमा के पास दुनिया का सबसे ज्यादा नमक वाला डेड सी यानी मृत सागर है। कहते हैं यहां के पानी में इतना नमक है कि इसमें किसी भी प्रकार का जीवन नहीं पनप सकता और इसके पानी में मौजूद नमक के कारण इसमें कोई डूबता भी नहीं है।
यरुशलम में लगभग 1204 सिनेगॉग, 158 गिरजें, 73 मस्जिदें, बहुत-सी प्राचीन कब्रें, 2 म्यूजियम और एक अभयारण्य हैं। इसके अलावा भी पुराने और नए शहर में देखने के लिए बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। यरुशल में जो भी धार्मिक स्थल हैं, वे सभी एक बहुत बड़ी-सी चौकोर दीवार के आसपास और पहाड़ पर स्थित हैं।
माउंट ऑफ ओलिव्स पर खड़े होकर आप अपने सामने यरुशलम के प्राचीन शहर को देखते हैं तो उसके मनोरम और भव्य दृश्य का नजारा देख आप मंत्रमुग्ध होकर सोचना बंद कर देते हैं। ओलिव्स पहाड़ी से सुंदर गुंबद और गुंबदों के पीछे दीवार नजर आती है। एक वर्ग किलोमीटर की पहाड़ी दीवारों से घिरा हजारों सालों का इतिहास लिए यह शहर दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी की आस्था का केंद्र है।
यरुशलम सहित इसराइल के बाशिंदे लगभग 75 प्रतिशत यहूदी, 15 प्रतिशत मुस्लिम और 10 प्रतिशत अन्य धर्म को मानते हैं। इसमें ईसाई और आर्मेनियाई है। यहां की आधिकारिक भाषा हिब्रू है, लेकिन अरबी और अंग्रेजी अब ज्यादा बोली जाती है। हिब्रू में लिखी बाइबिल में इस शहर का नाम 700 बार आता है। यहूदी और ईसाई मानते हैं कि यही धरती का केंद्र है।
सुंदर और नक्काशीदार खास चीजों की छोटी दुकान, रोमांचक जायकों की खुशबू फैलाते रेस्तरां, रंग-बिरंगे परिधानों में लोग, नजारों, ध्वनियों और सुगंधों का मिश्रण किसी को भी इस शहर का दीवाना बना सकता है। यरुशलम के 2 हिस्से हैं- ओल्ड सिटी और द न्यू सिटी।
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प्राचीन और नया शहर :
प्राचीन शहर या ओल्ड सिटी : ओल्ड सिटी में प्रवेश करते ही लगता है कि मानो हम पहली सदी में रह रहे हैं। ओल्ड सिटी में प्रवेश के लिए 8 प्राचीन गेट हैं। जफा गेट (Jaffa), जिओन गेट (Zion), डंग गेट (Dung), गोल्डन गेट (Golden), लायन गेट (Lions), हेरोड्स गेट (Herods), दमश्क गेट (Damascus) और न्यू गेट (New gat)।
ओल्ड सिटी में स्थित 4 क्वार्टर सभी की निगाहों में आते हैं, जहां यहूदी, ईसाई, आर्मेनियाई और मुसलमान रहते हैं। चहारदीवारी से घिरे शहर के भीतर 3 धर्मों की सबसे पवित्र जगहें हैं- द वेस्टर्न वॉल, अल अक्सा मस्जिद और चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर। इसके अलावा यहां और भी बहुत कुछ है, जैसे यरुशलम के राजा दाऊद का टॉवर और असंख्य प्राचीन कब्रें और चर्च। दरअसल, पुराना शहर ही सच्चा यरुशलम माना जाता है। ईसाई और यहूदी मानते हैं इसे दुनिया का केंद्र।
ओल्ड सिटी के चार क्वार्टर : पश्चिमी दीवार के सामने वाले हिस्से में परिसर के बाद पथ पार करके यहूदियों के क्वार्टर का क्षेत्र शुरू हो जाता है। ओल्ड सिटी से बाहर निकलने के लिए यहीं पास में डंग गेट है, जहां से निकलकर आप क्वार्डन घाटी में जा सकते हैं। यहूदी क्वार्टर की सीमा जहां समाप्त होती है, वहीं से मुस्लिम क्वार्टर की सीमा शुरू होकर हिरोड्स और लॉयन गेट पर खत्म होती है। मुस्लिम क्वार्टर का क्षेत्र भी बहुत बड़ा है। मुस्लिम क्वार्टर के पीछे ईसाई क्वार्टर है और यहूदियों के क्वार्टर के पीछे आर्मेनियाई क्वार्टर है।
ईसाई क्वार्टर के लिए न्यू गेट और आर्मेनियाई क्वार्टर के लिए जफा और जियोन गेट नजदीक पड़ता है। जियोन गेट पर ही बना है चर्च ऑफ डर्मिशन। यहां से जियोन पहाड़ी पर सिटी ऑफ डेविड देखने जा सकते हैं। मुस्लिम और ईसाई क्वार्टर की विभाजक रेखा पर स्थित है दमश्क गेट।
नया शहर या द न्यू सिटी : दूसरी तरफ ओल्ड सिटी से बाहर निकलते ही आप 21वीं सदी में प्रवेश कर जाते हैं, जहां है आधुनिक होटल व इमारतें, आधुनिक यातायात और आधुनिक जीवनशैली। पर्यटकों के ठहरने के लिए उत्तम स्थान और यातायात व्यवस्था। पश्चिमी यरुशलम का डाउनटाउन इलाका (द न्यू सिटी) अपने केंद्रीय त्रिकोण जाफा रोड, किंग जॉर्ज रोड और बेन यहुदा स्ट्रीट के साथ शुक्रवार और शनिवार को चहल-पहल वाला इलाका होता है। द न्यू सिटी में भी देखने के लिए बहुत सारे प्राचीन चर्च, मस्जिद और सिनेगॉग हैं।
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यरुशल के ऐतिहासिक स्थल....
टॉवर ऑफ डेविड : जियोन के नजदीक प्राचीन जाफा गेट पर बना हुआ है प्राचीन 'टॉवर ऑफ डेविड' जिसे बुर्ज दाऊद या दाऊद का गुम्बद भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां राजा सुलेमान (सोलोमन) की कब्र है। यहीं से पुराने शहर में प्रवेश किया जाता है। इस गेट के आसपास किलेनुमा परकोटा है और गेट के अंदर घुसते ही एक ओर आर्मेनियाई क्वार्टर तो दूसरी और ईसाई क्वार्टर है। गेट से बाहर जियोन पहाड़ी पर 'सिटी ऑफ डेविड' को देखने के लिए भी लोगों की भीड़ जमा होती है।
सोलोमन टेम्पल : दाऊद के बेटे ही सुलेमान थे जिन्हें इसराइल का सम्राट माना जाता था। माना जाता है कि सोलोमन टेम्पल का निर्माण 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। मूलत: यह मंदिर हिब्रू (यहूदी) संप्रदाय से संबंधित है। पवित्र सोलोमन टेम्पल को रोमनों ने नष्ट कर दिया था। उक्त टेम्पल बाइबिल में प्रथम प्रार्थनालय के नाम से दर्ज है। चहारदीवारी से घिरे इस भव्य टेम्पल के स्थल पर ही अब यहूदियों के महत्वपूर्ण स्थल टेम्पल माउंट और पश्चिमी दीवार के अलावा अल अक्सा मस्जिद, डोम ऑफ द रॉक और चर्च हैं। हालांकि यह विवाद का विषय और जगह है।
सिटी ऑफ डेविड : इसराइल के सम्राट दाऊद के नाम पर उनके बेटे सुलेमान ने एक नगर बसाया था जिसे 'सिटी ऑफ डेविड' कहा जाता है। ओल्ड सिटी के जियोन गेट या डंग गेट से निकलकर जियोन पहाड़ी पर इस प्राचीन सिटी के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि यह लगभग 3,000 वर्ष पुराना शहर है। सोलोमन मंदिर के साथ ही इसे बनाया गया था। पर्यटकों के बीच यह सिटी आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। यहीं डर्मिशन चर्च के पास उनकी कब्र है।
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ऐतिहासिक म्यूजियम व स्मारक : धार्मिक स्थलों के अलावा यहां प्राचीन एवं धार्मिक ग्रंथों का 'द इसराइल म्यूजियम' है। इसराइल का होलोकॉस्ट म्यूजियम, जिसे 'याद वशेम' कहा जता है, का खासा महत्व है। यहां पर यरुशलम के इतिहास से संबंधित दस्तावेज और शहीदों के स्मारक व स्मृति चिह्नों आदि के बारे में जानकारी है। दोनों ही म्यूजियमों का इतिहास बहुत पुराना है।
यरुशलम के जंगल : मुस्लिम इलाके में स्थित 35 एकड़ क्षेत्रफल में फैले नोबेल अभयारण्य में ही अल अक्सा मस्जिद, डोम ऑफ द रॉक, फव्वारे, बगीचे, गुम्बद और प्राचीन इमारतें बनी हुई हैं। इसके अलावा छोटे से गार्डन ऑफ गेथेमिन की खूबसूरती भी देखने लायक है। इसके अलावा 'याद वशेम' का इलाका भी यरुशलम के जंगल के नाम से प्रसिद्ध है।
पवित्र परिसर : किलेनुमा चहारदीवारी से घिरे पवित्र परिसर में यहूदी प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते हैं। इस परिसर की दीवार बहुत ही प्राचीन और भव्य है। यह पवित्र परिसर ओल्ड सिटी का हिस्सा है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है।
दीवार के पास तीनों ही धर्मों के स्थल हैं। यहां एक प्राचीन पर्वत है जिसका नाम जैतून है। इस पर्वत से यरुशलम का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। इस पर्वत की ढलानों पर बहुत-सी प्राचीन कब्रें हैं। यरुशलम चारों तरफ से पर्वतों और घाटियों वाला इलाका नजर आता है।
वेलिंग वॉल : वेलिंग वॉल को 'विलाप की दीवार' भी कहते हैं। यह यहुदियों का सबसे पवित्र स्थल है। माना जाता है कि यही प्राचीन प्रार्थनालय सोलोमन टेम्पल का परिसर है। इस दीवार के ऊपरी हिस्से में अल-अक्सा मस्जिद स्थित है। यहीं पास में टेम्पल माउंट अर्थात डोम ऑफ द रॉक है। इस दीवार को पश्चिमी दीवार भी कहते हैं।
माना जाता है कि दीवार के ऊपर बने अपने धार्मिक स्थल के अपने हाथों से निकल जाने के गम में यहूदी दीवार के समक्ष विलाप करते हैं और प्रार्थना भी। अल-अक्सा मस्जिद (अलहरम-अलशरीफ) का एक हिस्सा बन चुका यह स्थल यहूदियों और मुसलमानों दोनों का एक पावन स्थल है।
ये दीवार पवित्र मंदिर की बची हुई निशानी है। यहां मंदिर में अंदर यहूदियों की सबसे पवित्रतम जगह 'होली ऑफ होलीज' है। यहूदी मानते हैं यहीं पर सबसे पहली उस शिला की नींव रखी गई थी, जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ, जहां अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुरबानी दी। पश्चिमी दीवार, 'होली ऑफ होलीज' की वो सबसे करीबी जगह है, जहां से यहूदी प्रार्थना कर सकते हैं। दुनियाभर से लाखों यहूदी यहां आते हैं और खुद को अपनी विरासत से जोड़ते हैं। यहूदी दुनिया में कहीं भी हों, यरुशलम की तरफ मुंह करके ही उपासना करते हैं।
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टेम्पल माउंट : यहूदी इसे 'टेम्पल माउंट' कहते हैं। इस टेम्पल के नजदीक ही गोल्डन गेट है, जहां से ओल्ड सिटी के बाहर जाया जा सकता है। टेम्पल का गुम्बद सोने से जड़ित है। माना जाता है कि ईश्वर ने प्रथम आदमी की यहीं पर उत्पत्ति की थी। यहीं पर मानव के निर्माण के लिए धूल इकट्ठी हुई थी। यह स्थान मुसलमान, ईसाई और यहूदियों के लिए पवित्र स्थान है। सभी इस पर आधिपत्य चाहते हैं।
डोम ऑफ द रॉक : टेम्पल माउंट को ही डोम ऑफ द रॉक कहा जाता है। मुसलमानों की आस्था है कि डोम ऑफ द रॉक ही वह स्थान है, जहां से पैगंबर मुहम्मद साहब को नमाज के लिए पहली बार हिदायत मिली थी। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि डोम ऑद द रॉक टेम्पल माउंट और अल अक्सा मस्जिद के बीच है।
यह कहा जाता है कि प्राफेट मोहम्मद जेरूसलम के एक पत्थर पर खड़े होकर जम्प लगाके स्वर्ग गए थे और अल्लाह से बात करके वापस आ गए थे। तो वह जो पत्थर है उसके चारों तरफ जो स्ट्रक्चर बना है वह हरमल शरीफ है। जब आप हरमल शरीफ की तरफ जाएंगे तो यहां एक गेट है जिसको अंग्रेजी में गेट ऑफ स्केल्स कहते हैं। मुसलमान मानते हैं कि जब दुनिया का खात्मा होगा आखिरत आएगी तब फाइनल जजमेंट होगा तो इसी गेट पर आपके पाप और पुण्य तो तोलने के लिए तराजु लगी होगी। यहीं आपका फाइनल जजमेंट होगा। हरमल शरीफ के ठीक सामने एक मस्जिद है जिसका नाम अल अक्सा है। वेलिंगवादल, अल अक्सा मस्जिद और हरमल शरीफ तीनों को मिलाकर टेम्पल माउंट कहा जाता है।
अल अक्सा मस्जिद : यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद को 'अलहरम-अलशरीफ' के नाम से भी जानते हैं। मुसलमान इसे तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं। उनका विश्वास है कि यहीं से हजरत मुहम्मद जन्नत की तरफ गए थे और अल्लाह का आदेश लेकर पृथ्वी पर लौटे थे। इस मस्जिद के पीछे की दीवार ही पश्चिम की दीवार कहलाती है, जहां नीचे बड़ा-सा परिसर है। इसके अलावा मुसलमानों के और भी पवित्र स्थल हैं, जैसे कुव्वत अल सकारा, मुसाला मरवान तथा गुम्बदे सखरा भी प्राचीन मस्जिदों में शामिल है।
चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर
ईसाइयों के लिए भी यह शहर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह शहर ईसा मसीह के जीवन के अंतिम भाग का गवाह है। पुराने शहर की दीवारों से सटा एक प्राचीन पवित्र चर्च है जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं पर प्रभु यीशु पुन: जी उठे थे। जिस जगह पर ईसा मसीह फिर से जिंदा होकर देखा गए थे उसी जगह पर यह चर्च बना है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा एक बार फिर यरुशलम आएंगे। माना यह भी जाता है कि यही ईसा के अंतिम भोज का स्थल है। यहीं वह मकबरा है जहां ईसा मसीह को दफनाया गया था। यहां पर पत्थर के तीन स्लेब्स है। एक वह जहां पर पहले दफनाया गया दूसरा वह जहां पर जीवित पाए गए और तीसरा वह जहां उन्हें पुन: दफनाया गया था।।
चर्च ऑफ डर्मिशन : जियोन गेट के पास स्थित चर्च ऑफ डर्मिशन का महत्व भी कम नहीं है। माना जाता है कि इसका पहले नाम वर्जिन मेरी था। यह स्थान मदर मेरी के स्थान के नाम से जाना जाता है। यहां उनकी सुंदर मूर्ति और यहां एक प्राचीन शिलालेख है जिस पर हिब्रू भाषा में चर्च के बारे में लिखा है। यहीं आगे राजा डेविड की कब्र है। एक चर्च लॉयन गेट के सामने ही भी है, जहां वर्जिन मेरी की कब्र है।
विवा डोलोरोसा : विवा डोलोरोसा वह क्षेत्र है, जहां से यीशु को क्रॉस के साथ ले जाया गया था। इसे दुख या पीड़ा का मार्ग माना जाता है। होली स्कल्प्चर से फ्लेगलेशन तक का मार्ग। इस मार्ग के बाद ओल्ड सिटी के पूर्वी भाग में चर्च ऑफ फ्लेगलेशन को वह स्थान माना जाता है, जहां सार्वजनिक रूप से यीशु की निंदा हुई और उन्हें क्रॉस पर चढ़ा दिया। यह एक रोमन कैथोलिक चर्च है, जो संत स्टीफन गेट के पास है। इस चर्च के पास ही संत एन्ना का चर्च भी है, जो 12वीं सदी में निर्मित हुआ था।
अन्य चर्च : मेरी मेग्दलीन यीशु की शिष्या थी या पत्नी, इस संबंध में विवाद है। ओल्ड सिटी की दीवारों के बाहर लॉयन गेट के आगे इनके नाम का एक प्राचीन चर्च है। इसके अलावा ईसाइयों के ऐतिहासिक महत्व के बहुत सारे चर्च ओल्ड और न्यू सिटी में हैं।