आखिर क्यों लड़ रहे हैं रूस और यूक्रेन, क्या है 1 हजार साल पुराना इतिहास, जरूर जानिए

Webdunia
शुक्रवार, 4 मार्च 2022 (12:18 IST)
Russia Ukraine War
Russia Ukraine War And History: रशिया और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है और यह जंग अब भयानक रूप लेती जा रही है। यूक्रेन के कई शहरों को रूस ने लगभग खंडहर में बदल दिया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर क्यों लड़ रहे हैं रशिया और यूक्रेन और क्या है इनका प्राचीन इतिहास।
 
 
आखिर क्यों लड़ रहे हैं रूस और यूक्रेन : 
1. नेटो संगठन बना सबसे बड़ा कारण : रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कई कारण हैं, परंतु इसमें सबसे बड़ा कारण नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) को माना जा रहा है। 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निपटने के लिए नाटो नामक संगठन बना। अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं। सभी ने मिलकर सोवियत संघ को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया। 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। सोवियत संघ के टूटने से 15 देश अस्तित्व में आए- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान।
 
 
2. नेटो का विस्तार बना रशिया के लिए चुनौती : सोवियत संघ टूटने के बाद अमेरिका के नेतृत्व में नेटो (NATO) का विस्तार हुआ। सोवियत संघ से अलग हुए देशों में 2004 में इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया नेटो में शामिल हो गए। इससे रूस की सीमा पर खतरा बढ़ गया और रूस खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा। 
 
 
3. जॉजिया के कारण बड़ा टेंशन : फिर 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी नेटो में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन दोनों देश सदस्य नहीं बन सके। रशियन राष्ट्रपति पुतिन ने इसको लेकर अपनी चिंता जाहिर की और आपत्ति दर्ज कराई थी। लेकिन पुतिन की आपत्ति की परवाह किए बिना नेटो देशों के संघठन ने जॉजिया के नेटो संगठन में शामिल होने के रास्ते खोल दिए। इससे क्रोधित होकर 2008 में रूस ने जॉर्जिया के अबकाजिया और दक्ष‍िण ओसेशिया को स्‍वतंत्र देश की मान्‍यता दे दी।
 
 
4. रूस का क्रिमिया पर कब्जा : रूस और यूक्रेन के बीच तनाव नवंबर 2013 में शुरू हुआ, जबकि रूस के समर्थक यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानूकोविच का कीव में विरोध शुरू हुआ। यानुकोविच को अमेरिका-ब्रिटेन समर्थित प्रदर्शनाकारियों के विरोध के कारण फरवरी 2014 में देश छोड़कर भागना पड़ा। इसके कारण रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया। 2014 के बाद से रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच डोनबास प्रांत में संघर्ष चल रहा था। क्रीमिया में ज्यादातर लोग रसियन बोलने वाले हैं, जो रूस से अधिक लगाव रखते हैं। 
 
5. यूक्रेन को हथियारों की मदद : इसके बाद यूक्रेन को मजबूत करने के लिए उसे नेटो द्वारा आधुनिक हथियारों से लैस किया जाने लाग। इसके चलते रशिया को यह स्पष्ट हो गया कि आने वाले समय में नेटो की सेना और उनकी मिसाइलें रशिया की सीमा पर खड़ी होगी। इसके बाद जेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन के नोटे देशों का सदस्य देश बनने के 2 प्रयास हुए लेकिन रशिया की कड़ी आपत्ति के बाद यह प्रयास रुक गए। पिछले साल दिसंबर में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था, 'हमने साफ कह दिया है कि पूरब में नेटो का विस्तार हमें मंजूर नहीं है। अमेरिका हमारे दरवाजे पर मिसाइलों के साथ खड़ा है। अगर कनाडा या मैक्सिको की सीमा पर मिसाइलें तैनात कर दी जाएं तो अमेरिका को कैसा लगेगा?'
 
 
6. यूक्रेन पर हमला : अमेरिका सहित नेटो के किसी भी देश ने रशिया की चिंता को समझा नहीं और यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति के साथ ही उसे नोटो में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसे देखते हुए रशिया ने यूक्रेन पर हमले की योजना बना ली और अब उसने वही किया जो वह 2008 में जॉजिया के साथ कर ‍चुका है। आखिरकार रूस ने अमेरिका व अन्य देशों की पाबंदियों की परवाह किए बगैर 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला करते हुए उसके दो क्षेत्रों दोनेत्‍स्‍क और लुहान्‍स्‍क को अलग देश की मान्यता दे दी।
रशिया और यूक्रेन का इतिहास :
 
1. कीएवियन रूस : 1991 के पहले यूक्रेन रशिया का सीमावर्ती प्रांत कहलाता था। यूक्रेन का रशियन भाषा में अर्थ होता है बॉर्डर। दोनों देशों की संस्कृति और धर्म लगभग एक समान ही है। 9वीं सदी में यह दोनों ही देश स्लाविक साम्राज्य के अंग थे। कीएव प्रथम स्लाविक साम्राज्य की राजधानी थी। इस राज्य का गठन स्कैंडिनेवियन समुदाय के लोगों ने किया था। यही साम्राज्य कालांतर में कीएवियन रूस कहलाया।
 
 
2. ओर्थोडॉक्स क्रिश्चियन : 988 में कीएव सम्राट सेंट व्लादिमीर स्वयातोस्लाविच द ग्रेट ने ओर्थोडॉक्स क्रिश्चियन मत को अपनाया और तभी से कीएवियन रूस में ओर्थोडॉक्स क्रिश्चियन धर्म का बोलबाला रहा है। व्लादिमीर ने वर्तमान में मौजूदा बेलारूस, रूस और यूक्रेन से लेकर बालटिक सागर तक मध्यकालीन रूस राज्य का विस्तार किया था। इस सारे क्षेत्र में बोली जाने वाली कई भाषा में बेलारूसी, यूक्रेनी और रूसी भाषा प्रमुख हैं। इस सारे क्षेत्र में बोली जाने वाली कई भाषा में बेलारूसी, यूक्रेनी और रूसी भाषा प्रमुख हैं।
 
 
3. दो भागों में बंट गया रूस :12वीं सदी में मॉस्को की स्थापना होने के बाद राजधानी कीएव से हटकर मॉस्को हो गई। 13वीं सदी में कीएवियन रूस साम्राज्य के कई प्रांतों पर मंगोलों का जबरदस्त हुआ और उन्होंने यहां पर अपना कब्जा जमा लिया। हालांकि 14वीं सदी में जब मंगोल कमजोर हुए तो मॉस्को और लिथुएनिया नाम के दो क्षेत्रों ने रूस को आपस में बांट लिया। कीएव और इसके आसपास के क्षेत्रों पर लिथुएनिया प्रांत का कब्जा था जहां पर रेनेसां और सुधारवादी विचारधारा का प्रभाव पड़ा। 
 
4. सांझा संस्कृति का स्थान यूक्रेन : उस काल में यह तय नहीं था कि यूक्रेन प्रांत की सीमा क्या है। तब पश्चिमी यूक्रेन में कई लोग रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च को मानते थे जो ईस्टर्न कैथोलिक चर्च को मानने वाले हैं। दूसरी ओर यूक्रेन के क्राइमिया क्षेत्र का संबंध कालांतर में ग्रीक और तातार लोगों से रहा है और मध्यकाल में यह रशिया एवं ऑटोमन साम्राज्य के अधीन भी रहा था। दूसरी ओर दोनेत्‍स्‍क और लुहान्‍स्‍क में रशियन भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या अधिक थी।
 
 
5. साम्राज्ञी कैथरीन द ग्रेट: 17वीं सदी में लिथुएनिया और पोलैंड रूस के नियंत्रण में चले गए जिसे यूक्रेन अपना बायां किनारा मानता था। वर्तमान यूक्रेन जहां हैं, उसके मध्य और उत्तर पश्चिमी इलाके में 17वीं शताब्दी में एक राज्य था, जिसे साल 1764 में रूस की साम्राज्ञी कैथरीन द ग्रेट ने रूस में विलय कर लिया। उन्होंने पोलैंड के अधिकार वाले यूक्रेन के इलाके पर भी अधिकार हासिल कर लिया था।
 
 
6. सोवियंत संघ का गठन : 20वीं सदी में रूस क्रांति हुई और सोवियत संघ का गठन हुआ, जिसमें सोवियत संघ से अलग हुए संपूर्ण हिस्से शामिल थे। 1950 के दशक में सोवियत संघ ने क्राइमिया को यूक्रेन का हिस्सा बना दिया। साल 1991 में सोवियत संघ बिखर गया और साल 1997 में रूस और यूक्रेन के बीच संधि हुई‍ कि एक-दूसरे की संप्रभुता की रक्षा करेंगे, लेकिन यूक्रेन धीरे-धीरे नाटो और पश्‍चिमी देशों के खेमे में जाने लगा जिसके चलते आज युद्ध की नौबत आ गई।
 
रशिया और यूक्रेन का धर्म : आमतौर से यह माना जाता है कि ईसाई धर्म करीब 1,000 वर्ष पहले रूस के मौजूदा इलाके में फैला। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से मूर्ति पूजकों का धर्म था और पुजारियों का बोलबाला था। यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कीएव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें।
 
 
उस समय व्लादीमिर के सामने दो नए धर्म थे। एक ईसाई और दूसरा इस्लाम, क्योंकि रूस के आस-पड़ोस के देश में भी कहीं इस्लाम तो कहीं ईसाइयत का परचम लहरा चुका था। राजा के समक्ष दोनों धर्मों में से किसी एक धर्म का चुनाव करना था, तब उसने दोनों ही धर्मों की जानकारी हासिल करना शुरू कर दी।
 
उसने जाना कि इस्लाम की स्वर्ग की कल्पना और वहां हूरों के साथ मौज-मस्ती की बातें तो ठीक हैं लेकिन स्त्री स्वतंत्रता पर पाबंदी, शराब पर पाबंदी और खतने की प्रथा ठीक नहीं है। इस तरह की पाबंदी के बारे में जानकर वह डर गया। खासकर उसे खतना और शराब वाली बात अच्छी नहीं लगी। ऐसे में उसने इस्लाम कबूल करना रद्द कर दिया।
 
 
इसके बाद रूसी राजा व्लादीमिर ने यह तय कर लिया कि वह और उसकी कियेव रियासत की जनता ईसाई धर्म को ही अपनाएंगे। ईसाई धर्म में किसी भी तरह की पाबंदी की चर्चा नहीं थी। लोगों को स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार था और उनमें किसी भी प्रकार का सामाजिक भय भी नहीं था। उसने ईसाई धर्म अपनाने के लिए यूनानी वेजेन्टाइन चर्च से बातचीत करनी शुरू कर दी। वेजेन्टाइन चर्च कैथोलिक ईसाई धर्म से थोड़ा अलग है और उसे मूल ईसाई धर्म या आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म कहा जाता है। इस तरह रूस के एक बहुत बड़े भू-भाग पर ईसाई धर्म की शुरुआत हुई। 
 
रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे। बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया।
 
प्राचीनकाल के रूस में लोग अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु या पवित्र पेड़ों की पूजा किया करते थे। सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। कोई भी संधि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। प्राचीनकाल में रूस के दो और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग। सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। 

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