मध्यप्रदेश बनने के बाद इंदौर नगर निगम के पहले चुनाव फरवरी 1958 में संपन्न हुए। तत्कालीन इंदौर 35 वार्डों में बंटा हुआ था, इनमें से 5 वार्डों को (वार्ड 1, 3, 8, 12 एवं 16) सामान्य एवं सुरक्षित 2 पार्षद भेजने का अधिकार था, अत: निगम में पार्षदों की संख्या कुल 40 थी। निर्वाचन के पश्चात कांग्रेस के 16 तथा नागरिक समिति के 22 पार्षद चुने गए थे, जबकि 2 प्रत्याशी निर्दलीय चुन कर आए थे। नगर निगम में कांग्रेस को अपदस्थ करते हुए नागरिक मोर्चे (समिति) की परिषद बनी। निर्दलीय पार्षदों ने भी मोर्चे का ही साथ दिया।
तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियां : निर्वाचन के पूर्व होमी एफ. दाजी के नेतृत्व में कांग्रेस विरोधी एक मोर्चे का जन्म हो चुका था, जिसका नाम 'नागरिक मोर्चा' था। 1957 के विधानसभा निर्वाचन में होमी दाजी इंदौर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से श्रमिक नेता गंगाराम तिवारी को हरा चुके थे। इस सफलता ने उन्हें तथा उनके साथियों को मोर्चे के गठन की प्रेरणा दी थी। दाजी के साथ उस समय इंदौर समाचार के संपादक पुरुषोत्तम विजय, बालाराव इंगले, अनंत लागू, सरदार शेरसिंह, के.एस. मेहरूणकर, प्रभाकर अड़सुले, यज्ञदत्त शर्मा, नारायण प्रसाद शुक्ला, अब्दुल कुद्दूस, नरेंद्र पाटौदी, बालकृष्ण गौहर, कामरेडहरिसिंह, रणछोड़ रंजन तथा मिल क्षेत्र के अनेक जुझारू श्रमिक नेता थे। और दाजी की इसी टीम ने नगर निगम निर्वाचन में न केवल जीत हासिल की, बल्कि लगातार अपने मेयर भी दिए। सामान्य-सुरक्षित वाले 4 वार्डों में समिति के प्रत्याशी चुनकर आए- मन्नूलाल - किशनलाल (वार्ड 1), पुरुषोत्तम विजय - सुखराम (वार्ड 8), अब्दुल कुद्दूस - रामप्रसाद नेताजी (वार्ड 12), तथा प्रभाकर अड़सुले - बालकृष्ण गौहर (वार्ड 16)। ऐसे 5वें वार्ड में कांग्रेस प्रत्याशी श्यामनारायण नाथू - मोरूलाल यादव (वार्ड 3) चुनाव जीते।
नागरिक समिति के अन्य विजयी प्रत्याशी : कामरेड हरिसिंह, सुरेंद्रनाथ गुप्ता, रणछोड़ रंजन, बालाराव इंगले, नारायणप्रसाद शुक्ला, वासुदेवराव लोखंडे, के.एस. मेहरूणकर, राजेंद्र धारकर, खेमराज जोशी, रामलाल, नरेंद्र पाटौदी, यज्ञदत्त शर्मा और पुरुषोत्तम विजय (विजय वार्ड 8 एवं 35 2 स्थानों से विजयी रहे)। दाजी के कुछ प्रमुख साथी हारे भी- कामरेड अनंत लागू, सरदार शेरसिंह, सदाशिवराव जोशी, नारायणसिंह अलबेला, राणा रामप्रसाद एवं श्री वल्लभ शर्मा चुनाव हारे। 1958 के निर्वाचन की एक प्रमुख बात यह थी कि दाजी के मोर्चे को भारतीय जनसंघ ने भी अपना समर्थन दिया था। वार्ड 13 से चुनाव जीते डॉ. बी.बी. पुरोहित व वार्ड 33 से जीते जगन्नाथ सेठिया भी परिषद में 'मोर्चे' के साथ ही थे हालांकि ये निर्दलीय होकर चुनाव लड़े थे।
कांग्रेस के सफल प्रत्याशी : हीरालाल दीक्षित, डॉ. सूरजकिशन कौल, वी.वी. सरवटे, माधवराव खुटाल, रामगोपाल अग्रवाल, प्रो. सी.डब्ल्यू. डेविड, राजदुलारी निगम, मोरूलाल यादव, चांदमल गुप्ता, खुर्शीद हसन खां, देवीलाल यादव, विजयसिंह यादव, शंकरलाल जोशी, रामचंद्र वर्मा, बाबूलाल मित्तल, श्यामनारायण और सुरेश सेठ जैसे अनुभवी व युवा कांग्रेस प्रत्याशी निगम में पहुंचे। पर कांग्रेस के कुछ दिग्गज भी चुनाव में पराजित हुए। इनमें प्रमुख थे- कांतिभाई पटेल, लक्ष्मणसिंह चौहान, मदनलाल रावल, सावित्री देवी भार्गव, भालचंद गोखले, कैलाश चौधरी, ईश्वर दत्त मिश्रा, नारायणदास वाधवानी, गंगाराम मास्टर, ज्ञानदेव वाघमारे, जगन्नाथ मिस्त्री और रतनलाल अजमेरा।
नागरिक मोर्चे के महापौर : 1958 में बनी निगम परिषद 1965 तक चली और मोर्चे ने अपने 8 पार्षदों को महापौर बनाया। ये महापौर थे सर्वश्री पुरुषोत्तम विजय, प्रभाकर अड़सुले, बालकृष्ण गौहर, सरदार शेरसिंह, बी.बी. पुरोहित, आर.एन. जुत्शी, नारायणप्रसाद शुक्ला और भंवरसिंह भंडारी। दाजी औरमोर्चे (समिति) के उनके साथियों ने शहर की जनता से यह वादा किया था कि यदि उनका मोर्चा निगम परिषद में बहुमत प्राप्त करेगा तो साइकल पर लगने वाला कर समाप्त कर दिया जाएगा। उस दौर के इंदौर में साइकलों की संख्या तीस हजार से अधिक थी और यह गरीब-अमीर दोनों का वाहन था। वर्ष में 1 या 2 रुपया लगने वाला यह साइकल टैक्स भी भारी पड़ता था। पेट्रोल चलित वाहनों की संख्या नगण्य थी। साइकल के अलावा बैलगाड़ियां, तांगे थे या रोडवेज की बसें। साइकल अधिकतम का संबल थीं और मोर्चे की परिषद ने इस टैक्स को खत्म कर दिया।
1965 : कांग्रेस को मिली सफलता
कामरेड होमी एफ दाजी के नागरिक मोर्चे की ताकत ने 1958 के नगर निगम निर्वाचन में कांग्रेस को अपदस्थ करके मोर्चे की परिषद बनाई थी, पर 1965 के निर्वाचन में दाजी द्वारा गठित 'नागरिक समिति' ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर सकी। ऐसा इसलिए हुआ कि 1958 के मोर्चे से भारतीय जनसंघ और संसोपा ने अपना नाता तोड़ लिया था तथा कांग्रेस एवं समिति के साथ-साथ इन दोनों दलों ने भी अपने प्रत्याशी उतारे थे। एक ओर जहां मतों के विभाजन का कांग्रेस को लाभ मिला, वहीं कांग्रेस नेप्रत्याशी चुनने में नए चेहरों विशेष रूप से विद्यार्थी वर्ग को अधिक तरजीह दी। परिणाम कांग्रेस की जीत से निकला। कांग्रेस को जहां निगम परिषद की 48 में से 27 सीट मिलीं, वहीं समिति के 13 पार्षद चुन कर आए। 2 संसोपा, 3 जनसंघ एवं 3 निर्दलीय प्रत्याशी भी जीत गए। यदि मतों का यह विभाजन न हुआ होता तो कांग्रेस की परिषद निगम में नहीं बनी होती। कांग्रेस को जहां लगभग 36.2 प्रतिशत वैध मत मिले थे, वहीं समिति-जनसंघ-संसोपा प्रत्याशियों को 46.1 प्रतिशत मत मिले थे।
कांग्रेस के कुछ सफल प्रत्याशी : सर्वश्री हीरालाल दीक्षित, चांदमल गुप्ता, अमरसिंह पहलवान, कंचनलाल ध्रुव, विजयसिंह चौहान, खुर्शीद हसन खां, अब्दुल हफीज खान, माधवराव खुटाल, गयादीन यादव, बोलूमल गेरा, प्रभुदास बदलानी, महेश जोशी, सुरेश सेठ, चंद्रप्रभाष शेखर, शिवदत्त सूद, चिरोंजीलाल गुप्ता, पं. कृपाशंकर शुक्ला, वासुदेव चौखंडे। समिति की ओर से सर्वश्री गंधर्व गुरु, अब्दुल कुद्दूस एवं सरदार उजागरसिंह, जनसंघ के राजेंद्र धारकर, वासुदेवराव लोखंडे, एस. केलकर, संसोपा के कल्याण जैन, बशीर मोहम्मद तथा निर्दलीय नारायणप्रसाद शुक्ला व अविनाश जमींदार चुनाव जीतने वालों में शामिल रहे। कुछ चर्चित चेहरेजो परिषद में पहुंचने में कामयाब नहीं रहे- कामरेड अनंत लागू, पत्रकार नगेंद्र आजाद, शिक्षाविद हरिहर लहरी, बद्दूजी पहलवान, गुलाम हैदर पहलवान, ऋषिकुमार शुक्ला, डॉ. दशरथसिंह, कृष्णकांत रंगशाही, रामचंद्र सलवाड़िया, गजानंद त्रिवेदी, श्री वल्लभ शर्मा, खेमराज जोशी, सरदार शेरसिंह, नारायणसिंह अलबेला, गोकुलदास भूतड़ा, राणा रामप्रसाद यादव, बालकृष्ण गौहर, मुकुंद कुलकर्णी, शीलकुमार निगम, नवनीत पटेल, यशवंत रघुवंशी एवं देववृत्त शर्मा।
1983 के निर्वाचन : भाजपा की पहली परिषद
1983 के नगर निगम निर्वाचन कुछ एक बातों के लिए उल्लेखनीय रहे। पहली बात तो इस निर्वाचन ने 18 वर्ष ले लिए (1965-83), एक पूरी पीढ़ी जवान हो गई, नगर निगम इन वर्षों में 29 बार प्रशासकों द्वारा शासित रही। 1980 में भाजपा का गठन हुआ और 3 वर्षों में कम से कम इंदौर में तो उसने अपने आपको इतना सक्षम बना लिया कि निगम पर कब्जा कर लिया। 1983 के ये निर्वाचन वास्तविक छात्र नेताओं की अंतिम सीमा रेखा बन गए। वर्तमान के (2016) कई बड़े नेता फिर चाहे वे कांग्रेस के हो अथवा भाजपा के, उस समय के सक्षम छात्र नेता थे और वे नगर निगम में पार्टी प्रत्याशी थे। वर्तमान के निगमनिर्वाचनों में प्रत्येक पार्टी युवाओं को प्रत्याशी तो बना रही है, पर वे छात्र नेता के रूप में उभरे हुए चेहरे नहीं हैं। रही सही कसर वार्डों के आरक्षण ने पूरी कर दी है। अत: 1983 के निगम निर्वाचन स्वयं में उल्लेखनीय थे।
1965 के निर्वाचन में शहर 48 वार्डों में विभक्त था, पर 1983 में वार्डों की संख्या 60 हो गई। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने सभी वार्डों में अपने प्रत्याशी खड़े किए। होमी दाजी का जनमोर्चा, कल्याण जैन का नागरिक मोर्चा, संजय विचार मंच के साथ-साथ अनेक निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में थे। इंदौर के मतदाताओं ने भाजपा को 32 तथा कांग्रेस को 27 वार्डों में विजयश्री दिलाई, जबकि 1 वार्ड लालचंद बागी के जरिए जनमोर्चा के साथ गया। मोर्चा एवं मंच के साथ-साथ निर्दलीय प्रत्याशी भी मतदाताओं की पसंद नहीं बन सके।
जीते हुए कुछ प्रमुख प्रत्याशी एवं छात्र नेता : भाजपा- रमेश चौकसे, कैलाश विजयवर्गीय, पंकज संघवी, ललित पोरवाल, गुरुवचनसिंह छाबड़ा, गोपीकृष्ण नेमा, देवीसिंह राठौर, महेश गर्ग, निर्मल नीमा, महेंद्र हार्डिया, मधु वर्मा एवं सज्जनकुमार गर्ग। कांग्रेस- गुलाब पटेल, रमेश यादव 'उस्ताद', ललित जैन, विजय यादव, केवल यादव, राकेश शर्मा, अजय राठौर, मो. आलम, अब्दुल रऊफ, यशवंत रघुवंशी, भालचंद्र वाघमारे, सज्जनसिंह वर्मा, तुलसी सिलावट और कृष्णकांत रंगशाही। इन नेताओं में से अधिकांशत: वर्तमान राजनैतिक दौर में भी अपने-अपने दल की ओर से सक्रिय हैं। विधायक, सांसद एवं मंत्री पद तक इनमें से कुछ पहुंचे हैं तथा अपना व्यक्तित्व निखारा है।
भाजपा के अन्य सफल प्रत्याशी- गणेशप्रसाद यादव, अरुण किबे, गजानंद त्रिवेदी, अशोक ईश्वर पवार, मांगीलाल गोमे, रमेश शर्मा, नाहरसिंह नाहर, रमेश राठवाल, मदनलाल वर्मा, रामप्रसाद शर्मा, देवकृष्ण सांखला, श्याम राजदेव, गोपाल शुक्ला, हेमंत काबरा, चंपालाल यादव, रामप्रकाश बंसल, हारुमल रिझवानी, बलवंतसिंह चौहान, सेवाराम गलानी एवं लीलाधर पटवारी। कांग्रेस के अन्य सफल प्रत्याशी- हीरासिंह चौहान, रामअवतार प., नंदलाल, श्रीकृष्ण रामदेव, रामचंद्र सलवाड़िया, बाबूलाल गिरी, नारायणसिंह यादव, लल्लूप्रसाद मुखिया, रामगोपाल अग्रवाल, खूबचंद वर्मा, पं. भवानी कश्यप, सौदागरसिंह, भगवतीप्रसाद मिश्र। दोनों पार्टियों के इनमें से अधिकांश चेहरे नई सदी में भी चर्चित रहे, नगर में भी और पार्टी के संगठन स्तर पर भी।
पराजित होने वालों में भी कम चर्चित चेहरे नहीं थे शहर में- पत्रकार जवाहरलाल राठौर, तपन भट्टाचार्य, डॉ. उमाशशि शर्मा, सूर्यप्रसाद शुक्ला, अनिल तिवारी, असगर अली आजाद, कैलाश दिल्लीवाल, मांगीलाल चूरिया, सोहनलाल शिंदे, अशोक धवन, गिरीश शर्मा 'आदित्य', सुरेश शर्मा, होलासराय सोनी, अरविंद जायसवाल, डॉ. रतन जायसवाल, मोहन ढाकोनिया, खान कामिल, बालकृष्ण गायके, अरविंद जोशी, अशोक अहलूवालिया, जगमोहन वर्मा, सरदारमल जैन, उज्ज्वला बारगल एवं पुष्पा जुनेजा।
भाजपा तब (1983) अखिल भारतीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पाई थी, अत: पार्टी को इंदौर जैसे शहर में मजबूत बनाने के लिए पार्टी अध्यक्ष अटलबिहारी बाजपेयी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री जगन्नाथराव जोशी, श्री आरिफ बेग, श्री सुंदरलाल पटवा, श्री कैलाश जोशी एवं राजमाता सिंधिया ने यहां सभाएं लीं। कांग्रेस की ओर से केंद्रीय गृहमंत्री श्री प्रकाशचंद सेठी एवं मुख्यमंत्री श्री अर्जुनसिंह ने चुनाव प्रचार किया। मोर्चे ने भी सर्वश्री सुब्रमण्यम स्वामी, जॉर्ज फर्नांडिस, कामरेड इंद्रजीत गुप्त, लाड़ली मोहन निगम एवं श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा को चुनाव प्रचार में उतारा था।
1994-2015 : नया इंदौर, नए प्रावधान, नए निर्वाचन
नया इंदौर इसलिए नया कि अब कांग्रेस ही इंदौर के लिए जाना-पहचाना राजनैतिक दलनहीं था उसे चुनौती देने वाला एक और राजनैतिक दल भाजपा भी मैदान पकड़ चुका था। न केवल लोकसभा, न केवल विधानसभा, बल्कि नगर निगम निर्वाचनों में भी टकराहट 2 प्रमुख राजनैतिक दलों में थी। अपनी स्थापना के 3 वर्ष बाद अर्थात 1983 के निगम निर्वाचन में भाजपा ने निगम परिषद पर अपना कब्जा करके अपनी शक्ति का परिचय दे दिया था। नगर के पुराने परिचय से आरंभ भाजपा की यह राजनैतिक यात्रा इंदौर के नए रूप के निगम निर्वाचनों (1994-2015) में भी बदस्तूर जारी रही और वैसी ही सफलता के साथ।
इस दौरान संपन्न 5 में से 4 निर्वाचनों में भाजपा की ही परिषद बनी, केवल 1994 में ही उसे अंकों की बाजीगरी में शिकस्त खाना पड़ी थी। यहीं नहीं जबसे निगमों में निर्वाचित महापौर की परंपरा आरंभ हुई है, तबसे इंदौर का मतदाता भाजपा प्रत्याशी को ही समर्थन देकर 'नगर का प्रथम नागरिक' चुनता आया है- कैलाश विजयवर्गीय (1999), डॉ. उमाशशि शर्मा (2004), कृष्णमुरारी मोघे (2009) और श्रीमती मालिनी गौड़ (2015) तक यह समर्थन जारी रहा है।
नगर निगम निर्वाचन में नए दौर में कुछ नए प्रावधान भी सामने आते गए, शहर बढ़ चुका था, आबादी बढ़ चुकी थी, उसी परिमाण मेंमतदाता भी बढ़ गए थे सो 1994 के निगम निर्वाचन से ही नगर के विभिन्न वार्डों में आरक्षण की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी, जो अब तक (2015) जारी है। 1994 की ही बात करें तो नगर के 69 वार्डों में से 23 वार्ड (33 प्रतिशत) महिलाओं (सामान्य महिला, अजा महिला, अजजा महिला, पिछड़ा वर्ग महिला) के लिए आरक्षित थे। महिलाओं के लिए वार्डों का यह आरक्षण आगे चलकर 33 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया।
इसी हिसाब से पुरुष वार्ड भी आरक्षित होने लगे, 27 वार्ड सामान्य वर्ग के पुरुषों के लिए तथा 19 वार्ड पिछड़ा वर्ग, अजा व अजजा पुरुषों के लिए आरक्षित थे। वार्डों के आरक्षण का यह स्वरूप प्रत्येक होने वाले निर्वाचनों में बदलता भी रहा, मसलन यदि वार्ड क्र. 2 1994 में 'पिछड़ा वर्ग पुरुष' था तो 1999 में वह 'सामान्य' हो गया। शहर के प्रथम पुरुष अर्थात महापौर पद के लिए भी ऐसा ही आरक्षण प्रावधान रहा है। एक विशेष बात 1994 के निर्वाचन में महापौर, निगम परिषद के सदस्यों ने ही चुना था अर्थात पार्षदों ने बहुमत के आधार पर कांग्रेस के मधुकर वर्मा को मेयर बनाया था, पर 1999, 2004, 2009 और 2015 में महापौर शहर के मतदाताओं की पसंद पर बना। इंदौर के मतदाता का 1 मत अपने वार्ड के पार्षद प्रत्याशी के लिए और 1 मत महापौर पद के प्रत्याशी के लिए गिरा।
जहां तक बात निगम के निर्वाचनों की है तो 1994 के बाद के 23 वर्षों में 5 निर्वाचन हो चुके हैं, इनमें से केवल एक बार (1994) कांग्रेस की परिषद बनी है और 4 बार भाजपा की। महापौर निर्वाचन में 2015 तक कांग्रेस को एक बार भी कामयाबी नहीं मिली है चारों बार भाजपा के प्रत्याशी ही इंदौर के मतदाताओं की पसंद बने हैं।
1994 : 29 वर्षों बाद कांग्रेस की परिषद बनी
1965 के निर्वाचन में आखरी बार कांग्रेस को सफलता मिली थी, जबकि 1983 में भाजपा को पहली बार जीत हासिल हुई थी और इसके 11 वर्षों बाद 1994 में नगर निगम के निर्वाचन संपन्न हो सके। कांग्रेस अपने अंतर्कलह से बाहर नहीं निकल पाई, निगम चुनावों में जबकि लोकसभा 91 में संसद और विधानसभा 93 में शहर की पांचों विधानसभा सीटें खोने का अनुभव पार्टी के साथ था। फिर भी निगम निर्वाचन 1994 में आखिरी वक्त तक इंका प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की गई, विवादों पर विवाद चलते रहे। फलस्वरूप 1-1 वार्ड से अनेक इंका समर्थित उम्मीदवार प्रचार में जुटे रहे। इंका के अधिकृत प्रत्याशी सामने तोआए पर अन्य इंकाई पीछे नहीं हटे और इंका प्रत्याशियों को 'पंजा' चुनाव चिह्न भी नहीं मिल सका। ये ऐसी बातें थीं जिन्होंने भाजपा को पूरी तरह आश्वस्त कर दिया था कि निर्वाचन में उसे आसानी से बहुमत ही नहीं बल्कि प्रचंड बहुमत मिल जाएगा। भाजपा और उसके प्रत्याशियों का ऐसा सोचना एक सीमा तक सही भी था क्योंकि एकाध अपवादों को छोड़कर उसके प्रत्याशियों की सूची वक्त पर जारी भी हो चुकी थी तथा प्रचार कार्य भी समय रहते प्रारंभ हो चुका था।
भाजपा को 34 और कांग्रेस को 33 सीटें मिलीं : चुनाव परिणामों ने असमंजस में डाल दिया क्योंकि कांग्रेस ने 33 और भाजपा ने 34 वार्ड जीत लिए। वार्ड-16 से कामरेड सोहनलाल शिंदे (1701) भाजपा के सतीश कोठारी (1575) और इंका समर्थित श्रवण शिंदे (1339) को पीछे कर सीट निकाल लाए। पर इस निर्वाचन में सबसे महत्वपूर्ण रहा वार्ड-32 से भाजपा के बागी और पार्टी से निष्कासित रमेश राजाराम गागरे (1618 मत) का जीतना।
गागरे ने इंका समर्थित राजेश चौकसे (1222) और अधिकृत भाजपा प्रत्याशी रमेश शर्मा (1030) को पराजित किया और निगम में भाजपा की परिषद और नगर में भाजपा का महापौर नहीं बन सका क्योंकि गागरे औरशिंदे ने इंका को समर्थन देकर भाजपा से शहर का प्रथम नागरिक का पद छीन लिया। सर्वाधिक मत प्राप्त किए- वार्ड-65 से शेख अलीम (कांग्रेस) ने 6575 और वार्ड-12 से भाजपा के रमेश मेंदोला ने 4593 अपनी पार्टी की ओर से सर्वाधिक मत प्राप्त किए। सर्वाधिक अंतर से जीत- कांग्रेस की ओर से शेख अलीम ने 6575 मत पाकर भाजपा प्रत्याशी बाबू खां पंवार (1242 मत) को 5333 मतों से शिकस्त दी। निगम चुनावों में यह सर्वाधिक अंतर रहा। भाजपा की ओर से शांतादेवी झंवर (वार्ड 52) ने 3613 मत प्राप्त किए और कांग्रेस समर्थित कांता अग्रवाल को 2829 मतों के अंतर से हराया। कांता अग्रवाल को 784 मत ही मिल सके।
सबसे कम अंतर की जीत : कांग्रेस समर्थित लल्लूप्रसाद मुखिया ने वार्ड 42 से सज्जनसिंह भिलवारे पर 64 मतों के अंतर से जीत दर्ज की, यह निर्वाचन में न्यूनतम जीत अंतर रहा। मुखिया को 2046 एवं भिलवारे को 1982 वोट मिले थे। भाजपा की ओर से न्यूनतम मतों की जीत का अंतर रहा 175, वार्ड 48 में भाजपा के भाया कंदोई को 2880 मत मिले थे, जबकि प्रतिपक्षी प्रमोद टंडन (कांग्रेस) ने 2705 मत प्राप्त किए थे। सबसे कम वोट मिले फिर भी जीते- वार्ड 39 में कांग्रेस समर्थित अशोक जारवाल ने 69 वार्डों की टसल में सबसे कम 1355 वोट प्राप्त किए, जारवाल ने त्रिकोणीय संघर्ष में बुद्धासिंह पहलवान (1102) और रतनलाल (1029 मत) को पराजित किया था।
कुछ प्रमुख नेता जिन्हें पराजित होना पड़ा- भाजपा से महेंद्र हार्डिया (कार्यवाहक नगर अध्यक्ष), होलासराय सोनी, अनधा गोरे, उज्ज्वला बारगल और विमल बड़जात्या हारे तो कांग्रेस समर्थित प्रमोद टंडन, देवेंद्रसिंह यादव (टंडन उस समय शहर युवक कांग्रेस अध्यक्ष और यादव भारछासं के शहर अध्यक्ष थे), डॉ. सविता इनामदार, कृष्णकांत रंगशाही, जुगल किशोर चौकसे व भगवतीप्रसाद मिश्रा भी जीत न सके।
कुछ ऐसे चेहरे जिन्होंने स्वयं को स्थापित किया- भाजपा के नगर महामंत्री ललित पोरवाल, मधु वर्मा, रमेश मेंदोला, कल्याण देवांग, कैलाश शर्मा, शंकर लालवानी, अंजु माखीजा, देवकृष्ण सांखला, भाया कंदोई, मालती डागोर, मेघा मुले, राजेश जोशी और महेश नीमा। कांग्रेस समर्थित प्रमुख प्रत्याशी जो जीते थे वे शेख अलीम, डॉ. रेखा गांधी, संजय शुक्ला, सुरेश मिंडा, मोहन ढाकोनिया, प्रेमचंद गुू, रामलाल यादव, सौदागर सिंह, अनिल शुक्ला, विपिन खुजनेरी, उमा अवस्थी और विनय बाकलीवाल। इनमें से अधिकांश वर्तमानमें भी शहर की राजनीति के चर्चित नाम हैं।
नगर पालिक निगम की पिछली परिषद (1983) में 60 सीटों में से 32 पर भाजपा, 27 पर कांग्रेस तथा 1 पर भाकपा विजयी हुई थी। नवीन परिषद (1994) में 69 सीटों पर यह समीकरण 34, 33 व 1 रहा। तुलनात्मक दृष्टि से कांग्रेस ने 6 और भाजपा ने 2 सीटें बढ़ाईं जबकि भाकपा ने यथास्थिति बनाए रखी।
निर्वाचन 1999 : निगम परिषद पर भाजपा दूसरी बार काबिज
कांग्रेस में इस बार भी विवाद जारी रहा, अधिकृत उम्मीदवार थे नहीं, चुनाव चिह्न 'पंजा' आवंटित नहीं किया गया, विभिन्न वार्डों से अनेक प्रत्याशी खड़े हुए कांग्रेस के नाम पर, तो परिणाम भी अच्छा निकलना नहीं था। नहीं निकला, 69 सदस्यों वाली परिषद में भाजपा को मिले 47 पार्षद और निर्दलीय लड़े कांग्रेस के 21 प्रत्याशी ही सफल हो सके। 1 प्रत्याशी भाकपा (आरती शिंदे) का जीता।
सर्वाधिक मत प्राप्त किए : राजेंद्र शुक्ला ने भाजपा की ओर से वार्ड 4 से सर्वाधिक 8118 मत जुटाए, निर्दलीय ज्ञानसिंह चौहान मात्र 480 वोट ही पा सके। निर्दलीय कांग्रेसी के.के. यादव को 5588 मत मिले, उन्होंने वार्ड-5 से लक्ष्मीनारायण साहू (4686 मत) को हराया। सर्वाधिक अंतर से जीत- राजेंद्र शुक्ला (भाजपा) की जीतका अंतर 7638 रहा जो सर्वाधिक था। निर्दलीय शेख अलीम ने वार्ड 65 में 2737 का अंतर रखा, उन्हें 4110 मत मिले और प्रतिपक्षी भाजपा के डॉ. अकील राज को 1373 मत प्राप्त हुए।
सबसे कम अंतर की जीत- भाजपा की कमला सुनहरे (2310 मत) ने 50 मतों के अंतर से शोभा गौहर (2260 मत) को पराजित किया (वार्ड 15)। निर्दलीय भरत मथुरावाला (2620 मत) वार्ड 61 में रामदास गर्ग (भाजपा 2574 मत) को 46 मतों के अंतर से हरा सके।
सबसे कम वोट मिले : मेधा खानविलकर (वार्ड 45) ने 69 वार्डों में सबसे कम मत 1362 प्राप्त किए पर जीत गईं, निर्दलीय प्रत्याशी किरण जिरेती मात्र 569 मत ही पा सकीं। निर्दलीय लालबहादुर वर्मा (वार्ड 33) 1454 मत पाकर जीते।
कुछ प्रमुख नेता जो पराजित हुए- भाजपा से रामदास गर्ग, प्रिंसिपल टोंग्या, मुन्नू इक्का पहलवान, देवीसिंह राठौर, मदनसिंह यादव, सरोज अग्रवाल, माणक सोगानी एवं हरिशंकर पटेल। कांग्रेस (निर्दलीय) से प्रमोद टंडन, रायमुनी भगत, देवेंद्रसिंह यादव, किरण जिरेती, कुलभूषण कुक्की, रमेश गागरे, प्रकाश लालवानी, किशोर मीणा, अशोक जायसवाल, महेश मूंगड़ एवं तरुण साजनानी पराजित प्रत्याशियों में शामिल रहे। कुछ ऐसे चेहरे जिन्होंने स्वयं को स्थापितकिया- भाजपा से डॉ. उमाशशि शर्मा, उस्मान पटेल, मुन्नालाल यादव, राजेंद्र राठौर, सुदर्शन गुप्ता, सूरज कैरो, हरीश डागुर, समीर चिटनीस, चंदू शिंदे, शंकर यादव, अर्चना ठेकेदार एवं जगदीश करोतिया। कांग्रेस के के.के. यादव, केदार पटेल, सरवर खान, छोटू शुक्ला, गणेश एस. चौधरी, छोटे यादव, अयाज बेग एवं अभय वर्मा। वर्तमान की इंदौरी राजनीति में भी उपरोक्त में से अधिकांश चर्चित नाम हैं।
2004 : लगातार दूसरी बार भाजपा की परिषद
इस बार भी वक्त पर अपने प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाना, वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशी बन कांग्रेस के बागियों का उतरना और बड़े नेताओं की दबाव की राजनीति ने निगम परिषद में कांग्रेस को उभरने नहीं दिया। बगावत भाजपा में भी हुई पर कम मात्रा में। और 69 सदस्यीय परिषद पर भाजपा ने अपने 39 पार्षद जिताकर लगातार दूसरी बार कब्जा कर लिया, कांग्रेस के 22 पार्षद जीते और निर्दलीय बन अपने दल के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़े 8 बागी प्रत्याशी भी जीत गए। निश्चित ही ऐसी बगावत का खामियाजा भाजपा की बजाय कांग्रेस को अधिक उठाना पड़ा। राजा अग्निहोत्री, हरिशंकर पटेल, मांगीलाल रेडवाल, जयदीप जैन, नंदकिशोर पहाड़िया,इफ्तिखार मुन्ना अंसारी, अयाज बेग और राधे बोरासी ऐसे ही निर्दलीय सफल प्रत्याशी रहे, जिन्होंने दल के अधिकृत प्रत्याशियों को हराया।
सर्वाधिक मत प्राप्त किए : भाजपा के मुन्नालाल यादव (वार्ड 10) ने सर्वाधिक 16005 वोट लेकर अपने प्रतिद्वंद्वी रमाकांत चौकसे (कांग्रेस) को 10417 मतों के अंतर से हराया। कांग्रेस की ओर से शबाना अयाज गुू (वार्ड 9) ने सर्वाधिक 12159 वोट प्राप्त किए और भाजपा के कमलेश चौहान पर 7574 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। सर्वाधिक अंतर की जीत- भाजपा के मुन्नालाल यादव (10417 मत) और कांग्रेस की शबाना अयाज गुू (7574 मत) की जीत का अंतर सर्वाधिक रहा।
न्यूनतम अंतर की जीत- भाजपा की संध्या अजमेरा ने वार्ड 54 से संगीता जैन (कांग्रेस) को 141 मतों के अंतर से पराजित किया तो वार्ड 68 से कांग्रेस के माखनलाल पटवारी (2781 मत) की भाजपा के ब्रह्मानंद पटवारी (2768 मत) पर जीत महज 13 वोटों की रही।
अपनी जीत में सबसे कम वोट प्राप्त किए- वार्ड 46 से शांता झंवर (भाजपा) को 1933 मत मिले जबकि वार्ड 47 से सुरेश मिंडा (कांग्रेस) को 1648 मत ही मिल सके, इसके बावजूद ये जीत गए। कुछ प्रमुख नेता जो पराजित हुए- भाजपासे लक्ष्मीनारायण साहू, भाया कंदोई, प्रेम संघवी, रमेश चौकसे, राजेश सोनकर और राकेश शुक्ला तथा कांग्रेस से छोटू शुक्ला, राकेश गौहर, अनिल यादव, ताराबाई घाटे, गणेश चौधरी, देवेंद्रसिंह यादव, सुरेंद्र पुरी और भरत मथुरावाला पराजित होने वाले प्रमुख नेता रहे।
कुछ चेहरे जो आगे चलकर चर्चित हुए- भाजपा से देवकृष्ण सांखला, पराग कौशल, सुरेश कुरवाड़े, राजकपूर सुनहरे, मदनसिंह यादव, संदीप शेखावत, राजेंद्र जायसवाल, लोकेंद्र राठौर, पराग लोंढे और बलराम वर्मा और कांग्रेस से संजय शुक्ला, मूलचंद यादव, सुरजीत चड्ढा, चंदू कुरील, अरविंद बागड़ी, दिलीप कौशल और माखनलाल पटवारी आगे चलकर अपनी-अपनी पार्टी की ओर से शहर की राजनीति में सक्रिय रहे एवं चर्चित भी।
निर्वाचन 2009 : भाजपा, विजय की हैट्ट्रिक
1999, 2004 और 2009 के 3 निर्वाचनों में लगातार जीत दर्ज कर भाजपा ने नगर निगम में विजय की हैट्ट्रिक बना डाली तो दूसरी ओर कांग्रेस की दयनीय स्थिति भी लगातार जारी रही। 1999 में निर्दलीय लड़कर जीते कांग्रेसी पार्षद 21 थे, 2004 में यह संख्या 22 हुईं और 2009 में यह संख्या सिमटकर 19 रह गई।
इस निर्वाचन में भाजपा ने 46 वार्डों पर कब्जा किया जबकि कांग्रेस 19 में सफल रही। तनुजा खंडेलवाल (वार्ड 8), अनवर कादरी (वार्ड 15), निशा देवलिया (वार्ड 30) और रुबीना इकबाल (वार्ड 42) के रूप में 4 निर्दलीय पार्षद परिषद में आए। कांग्रेस को एक बार फिर निर्दलीय कांग्रेसियों ने ही हराया। जीते हुए चारों निर्दलीयों की पृष्ठभूमि कांग्रेसी ही थी। इस निर्वाचन तक आते-आते महिला वार्डों का आरक्षण 50 प्रतिशत तक पहुंच चुका था, भाजपा की ओर से 26, कांग्रेस की 7 और 3 निर्दलीय महिलाएं परिषद में पहुंचीं।
सर्वाधिक मत प्राप्त किए- भाजपा की ओर से वार्ड 22 से प्रीति करोसिया ने 8095 तथा कांग्रेस की ओर से वार्ड 34 से चिंटू चौकसे ने 7164 मत प्राप्त किए, जो सर्वाधिक रहे। प्रीति सफल प्रत्याशियों में संभवत: सबसे कम उम्र की पार्षद भी रहीं। प्रीति ने श्रीमती संतोष बोरासी (कांग्रेस) और चौकसे ने कल्याण देवांग (भाजपा) को पराजित किया।
सर्वाधिक अंतर की जीत- प्रीति करोसिया (भाजपा) ने अपनी जीत का अंतर 5032 मतों का रखा तो समरीन बेग (कांग्रेस) ने फारुख राइन (भाजपा) को 4412 मतों के अंतर से पराजित किया।
न्यूनतम अंतर की जीत- भाजपा के अश्विन शुक्ला (वार्ड 18) जहां 127 वोटों से जीतेवहीं कांग्रेस के अंसाफ अंसारी (वार्ड 12) का अंतर 190 मतों का था। अंसाफ को 3737 मत मिले थे, जबकि इफ्तिखार मुन्ना अंसारी को 3547 मत। सबसे कम मत पाए और जीते- निर्वाचन 69 वार्डों में था भाजपा के अश्विन शुक्ला ने अपने वार्ड से (18) 2396 मत प्राप्त कर जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस के प्रीतम माटा (वार्ड 63) ने कांग्रेसी जीत के वार्डों में सबसे कम मत (3459) पाए और जीते।
आने वाले समय में चर्चित हुए- भाजपा से महिला नेत्री के रूप में विनीता धर्म, अर्चना चितले, शीला घुमनर, पद्मा भोजे एवं कविता दाभाड़े चर्चित हुईं, जबकि पुरुषों में गोपाल मालू, संतोष गौर, राजेंद्र मरमट, जितेंद्रसिंह बुंदेला, दिलीप शर्मा, अजयसिंह नरुका, दिनेश पांडे और सुधीर देड़गे ने शोहरत पाई। कांग्रेस की ओर से अंसाफ अंसारी, चिंटू चौकसे, फौजिया शेख, मो. असलम और दिलीप कौशल आज भी सक्रिय हैं। पराजित हुए कुछ प्रमुख नेता- भाजपा से फारुख राइन, राजू जोशी, शिव शर्मा, शिवसिंह गौड़, नंदकिशोर पहाड़िया, कल्याण देवांग और कांग्रेस से अनिल शुक्ला, विनय बाकलीवाल, अशोक जायसवाल एवं अनिल फतेहचंदानी।
निर्वाचन 2015 : कांग्रेस और अधिक सिमटी, भाजपा की प्रचंड विजय
इक्कीसवीं सदी में संपन्न नगर निगम के इस तीसरे निर्वाचन में कांग्रेस पार्टी करीब-करीब तो धरातल पर पहुंच गई। 85 सदस्यों वाली 2015 की निगम परिषद में कांग्रेस के मात्र 15 प्रत्याशी ही जीते, जबकि 69 सदस्यों वाली पिछली परिषद (2009) में पार्टी के 19 और 2004 की परिषद में कांग्रेस के 22 पार्षद थे। दूसरी ओर भाजपा ने अपनी निगम पहुंच संख्या को और अधिक मजबूती दी है। 2009 में भाजपा ने 66.66 प्रतिशत (69 में से 46) और 2004 में 56.52 प्रतिशत (69 में से 39) स्थान हथियाए थे तो 2015 में पार्टी की सफलता का ग्राफ 76.47 प्रतिशत (85 में से 65) तक पहुंच गया। 5 स्थान निर्दलीयों को मिले हैं, वार्ड 2 से मुबारिक मंसूरी, 26 से यशोदा धीमान, 39 से रूबीना खान, 44 से रूपेश देवलिया और वार्ड 62 से जगदीश धनेरिया जीते और इनमें से अधिकांश भाजपा के विद्रोही हैं। इस तरह इंदौर के दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों ने अपने-अपने हिसाब से रिकॉर्ड तो बना ही डाला।
इस बार के निर्वाचन में शहर का विस्तार हो जाने अर्थात नगर निगम सीमा में आसपास के गांवों के आ जाने तथा एक विधानसभा क्षेत्र (राऊ) के बढ़ जाने से वार्डों की संख्या बढ़कर 85 हो गई। पिछले 4 निर्वाचनों में यह संख्या 69 थी। सभी वार्ड आरक्षित थे और महिला आरक्षण पचास प्रतिशत था, भाजपा की 33 महिलाएं जीतीं और कांग्रेस की 9।
सर्वाधिक मत प्राप्त किए- भाजपा की सरिता मंगवानी (वार्ड 65) ने 10858 तथा कांग्रेस की प्रीति अग्निहोत्री (वार्ड 1) ने 9858 मत प्राप्त किए जो अपनी-अपनी पार्टी की ओर से सर्वाधिक रहे। वैसे 10 हजार से अधिक मत वार्ड 5 से राजेश चौहान (10028), वार्ड 13 से श्रीमती चंदा बाजपेयी (10023) और वार्ड 83 से लता लड्ढा (10850) को भी मिले।
सर्वाधिक अंतर की विजय- भाजपा की सरिता मंगवानी ने कांग्रेस की पुष्पा कोडवानी को 8273 तथा कांग्रेस की प्रीति अग्निहोत्री ने भाजपा की अरुणा शर्मा को 5238 मतों का अंतर रख हराया।
न्यूनतम अंतर की विजय- भाजपा की पार्वती कुशवाह (4184) ने वार्ड 17 की निर्दलीय प्रत्याशी विद्या कुशवाह (4108) को मात्र 76 मतों से हराया, जबकि कांग्रेस के भूपेंद्र चौहान (8226) की वार्ड 18 से भाजपा प्रत्याशी अरुण गोयल (8021) पर जीत 205 मतों की रही। न्यूनतम मत प्राप्त कर विजयी रहे- भाजपा की कोमल पंचोली को 1928 मत मिले (वार्ड 36) जबकि कांग्रेस की ओर से अंसाफ अंसारी (वार्ड 60) अपने दल की ओर सेसफल प्रत्याशियों में सबसे कम (5356) वोट लाए। कोमल और अंसाफ दोनों जीते।
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में सीटों का विभाजन : विधानसभा क्षेत्र 1- भाजपा 13, कांग्रेस 4, निर्दलीय 1, क्षेत्र 2- भाजपा 15, कांग्रेस 3, निर्दलीय 1, क्षेत्र 3- भाजपा 5, कांग्रेस 4, निर्दलीय 1, क्षेत्र 4- भाजपा 11, कांग्रेस 2, क्षेत्र 5- भाजपा 15 कांग्रेस 1, निर्दलीय 2 और राऊ में भाजपा 6, कांग्रेस 1 पर सिमटी। इस तरह भाजपा 65, कांग्रेस 15 और निर्दलीय 5 प्रत्याशी विजयी रहे।
भाजपा ने निगम निर्वाचन में 51.20 प्रतिशत वोट प्राप्त किए जबकि कांग्रेस को मिले वोटों का प्रतिशत 35.27 रहा और निर्दलीय 11.55 प्रतिशत वोट ले गए।