ट्रेनों में होली की छटा बिखेरते लोकगीत

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होली आने में अभी कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन पलवल और मथुरा की ओर से आने वाली लोकल ट्रेनों में होली का रंगीन और खुशनुमा एहसास कई दिन बिखरा हुआ है। घरों से डयूटी पर जाने के लिए निकले लोग होली के गीतों पर ठुमकते दिखाई देते हैं।

इन ट्रेनों के जरिए रोजाना हजारों लोग मथुरा-वृंदावन, कोसी, पलवल, बल्लभगढ़ और फरीदाबाद से ड्यूटी करने के लिए दिल्ली आते हैं। लोकल ट्रेनों में चलने वाली कीर्तन मंडलियाँ इन दिनों ब्रज के लोकगीत ‘रसिया’ के जरिए यात्रियों को होली के आनंद से सराबोर करने में लगी हैं। घर और नौकरी की आपाधापी में व्यस्त लोग इस समय का सही सदुपयोग कर रहे हैं और कीर्तन मंडलियों के सुर में सुर मिलाकर गाते हैं या कुछ ज्यादा जोशीले लोग तो नाचने भी लगते हैं।

किसी डिब्बे में ‘आज बिरज में होरी रे रसिया’ गूँजता नजर आता है तो किसी डिब्बे में ‘आ जइयो श्याम बरसाने में..बुला गई राधा प्यारी’ जैसे रसिया की गूँज सुनाई पड़ती है। हरि संकीर्तन मंडली के राघवेंद्र का कहना है कि वैसे तो उनकी मंडली ट्रेन में रोजाना सुबह शाम भजन गायन कर लोगों को अध्यात्म का ज्ञान कराती है लेकिन होली के नजदीक आ जाने से अब होली के ‘रसियाओं’ की ही धूम है। उन्होंने कहा कि उनकी मंडली का प्रमुख रसिया गीत ‘होरी खेली बंसी वारे नै अब घर कैसे जाऊँ..’ है।

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‘प्रभु कीर्तन’ मंडली के राजीव कुमार कहते हैं कि उनकी टोली के लोक गायक जब ‘आज है रही बिरज में होली..’ गाते हैं तो उस समय बहुत से यात्री सभी तरह के तनाव को भूलकर ट्रेन के डिब्बे में ही नाच उठते हैं।

कुमार ने कहा कि होली के एहसास को और जीवंत बनाने के लिए गीत के दौरान यात्रियों पर पिचकारी से पानी की फुहार भी छोड़ी जाती है जिसका कोई भी बुरा नहीं मानता। ट्रेनों में चलने वाली इन कीर्तन मंडलियों में शामिल ज्यादातर लोग दिल्ली में नौकरी करते हैं। इनमें से कोई मथुरा-वृंदावन से आता है तो कोई पलवल, बल्लभगढ़ या फरीदाबाद से। ये लोग ढोल-मंजीरा भी अपने साथ रखते हैं।

इनका कहना है कि सुबह ड्यूटी के लिए घर से जल्दी निकलना होता है और रात को वे देर से घर पहुँचते हैं इसलिए उन्हें भगवान का ध्यान करने के लिए घर में बिल्कुल वक्त नहीं मिल पाता। इसलिए वे ट्रेन के डिब्बे में ही कीर्तन के जरिए भगवान का ध्यान कर लेते हैं।

श्याम कीर्तन मंडली के रवि कुमार ने कहा कि आजकल होली का माहौल है इसलिए वे ब्रज के रसियाओं का गान ही प्रमुखता से कर रहे हैं जिनमें राधा और कृष्ण के प्रेम के साथ-साथ ब्रज मंडल की होली का जिक्र होता है।

उन्होंने कहा ‘काली दह पै खेलन आयौ री..’ और ‘होरी रे रसिया बर जोरी रे रसिया’ जैसे गीत ब्रज की माटी के प्रमुख लोकगीत हैं जो होली की छटा में अद्भुत रंग बिखेरने का काम करते हैं। (भाषा)

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