Holi Celebration in Brij: बृज की होली, यानी रंगों, फूलों, गीतों और उल्लास का वो संगम जो बृज की रज की सुगंध है। बृज की होली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुष्ठान है जो राधा और कृष्ण के प्रेम से पगा है। ये उत्सव दिव्य है। हर साल बृज की इस पावन भूमि पर लाखों की संख्या में रसिक जन दूर-दूर से इस महोत्सव के साक्षी होने आते हैं और प्रीत के इस पर्व में शामिल होकर खुद को धन्य मानते हैं।
कब शुरू होती है बृज में होली
बृज में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है। बृज में बसंत पंचमी पर होली का डंडा गड़ने के बाद से उत्सव शुरू हो जाता है। बृज की होली मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव जैसे स्थानों पर धूमधाम से मनाई जाती है। यहां की होली देश की सबसे प्रसिद्ध और रंगीन होली में से एक है, जिसमें हिस्सा लेने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं।
बृज की होली में पारंपरिक गीतों के साथ कृष्ण की लीलाओं का आयोजन होता है। रंग और गुलाल से सजी होली में गीत-संगीत का विशेष महत्व होता है। यहां की लट्ठमार विश्व भर में अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को डंडी से मारती हैं। इस दौरान श्री कृष्ण और राधा की पूजा होती है।
क्या है बसंत पंचमी और होली का संबंध
बसंत पंचमी को वसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। इस दिन से प्रकृति नए जीवन के साथ जागृत होती है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है जो ज्ञान और कला की देवी हैं। उसी प्रकार, बृज में बसंत पंचमी से होली का उत्सव शुरू हो जाता है, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
• प्रकृति का श्रृंगार : बसंत ऋतु में प्रकृति नए जीवन के साथ जागृत होती है। पेड़-पौधे फूलों से लद जाते हैं और चारों ओर रंग-बिरंगे दृश्य दिखाई देते हैं। यह प्रकृति का उत्सव है और होली भी इसी उत्सव का एक हिस्सा है।
• राधा-कृष्ण के प्रेम का उत्सव : बृज में होली को राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बसंत ऋतु में प्रकृति के रंग-बिरंगे रूप को देखकर राधा और कृष्ण भी प्रेम में डूब जाते थे।
• धार्मिक महत्व: बसंत पंचमी को धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
कैसे मनाई जाती है बृज में होली
बृज में होली का उत्सव 40 दिनों तक चलता है। इस दौरान मंदिरों और कई जगहों पर विभिन्न प्रकार की होलियां खेली जाती हैं जैसे:
• फूलों की होली: इस होली में फूलों से होली खेली जाती है।
• लट्ठमार होली: बरसाना और नंदगांव में महिलाएं पुरुषों पर लाठी से प्रहार करती हैं।
• लड्डू होली: इस होली में लड्डू बरसाए जाते हैं।
बृज की होली का इतिहास
इस उत्सव के लिए बरसाने से होली का आमंत्रण गोकुल पहुंचाया जाता है और इसके बाद गोकुल से होली का त्योहार मनाने के लिए बरसाना गांव जाने की परम्परा है. मान्यता है कि यह परंपरा श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है।
बृज की होली का इतिहास राधा और कृष्ण के प्रेम की कहानियों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि श्री कृष्ण का रंग श्याम वर्ण का था और राधा जी बहुत गौर वर्ण की थीं। श्री कृष्णा अक्सर अपने माता से इसका कारण पूछते तो माता उन्हें होली पर श्री राधा रानी को अलग-अलग रंगों उनके चेहरे पर लगाने के लिए बोलतीं। राधा और कृष्ण होली के दिन एक-दूसरे को रंग लगाते थे।
बृज की होली का भारत के अन्य हिस्सों में मनाई जाने वाली होली से अलग होती है। यहां होली सिर्फ रंग खेलने का त्योहार नहीं है बल्कि यह राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस महोत्सव में देश और दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और बृजभूमि पर श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम की सुगंध के बीच रंगों के इस उत्सव में भक्तिरस से खुद को सराबोर महसूस करते हैं।