कान फिल्म फेस्टिवल को अगर फ़िल्मी दुनिया का सबसे ख़ास माना जाता है तो उसकी वजहें साफ़ हैं। यहां सिर्फ और सिर्फ फिल्म को एक कसौटी पर खरा उतरना होता है। इसके बाद यह फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म किस देश की है या किसने बनाई है। ईरान के फिल्मकार असग़र फ़रहादी, जो एक नहीं दो दो बार ऑस्कर भी जीत चुके हैं, की फिल्म से फेस्टिवल की शुरुआत हुई। लेकिन उसके अगले ही दिन मिस्र के अबू बकर shawky की फिल्म 'योमेदिन' यानी वो दिन जब दुनिया का हिसाब किताब तय किया जाएगा (कयामत का दिन या जजमेंट डे), कम्पीटिशन सेक्शन में दिखाई।
अबु shawky जब न्यू यॉर्क में फिल्म की पढ़ाई कर रहे थे तब ही इस फिल्म का खाका उनके जेहन में था, और पूरे 10 साल लगे इस फिल्म को परदे तक लाने में। अबु कई बरस पहले उस कॉलोनी में गए थे जहां लेप्रॅसी यानी कोढ़ के मरीज और कोढ़ की वजह से शारीरिक तौर से अपंग लोग रहते हैं। उन्होंने इस पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी। योमेदिन का मुख्य किरदार beshay कोढ़ की वजह से न सिर्फ अपने हाथ बल्कि अपना चेहरा भी खो चूका है लेकिन उसके अंदर का इंसान न सिर्फ ज़िंदा है बल्कि अपने होने को साबित भी करना चाहता है। रेडी गमाल इस कोढ़ियों की कॉलोनी के ही बाशिंदे हैं और अबु कहते हैं एक तरह से फिल्म उन्हीं की कहानी है। इसे रोड मूवी कहना नाइंसाफी होगी लेकिन इनके सफर में न सिर्फ मिस्र बल्कि इंसान के भी कई रूप देखने को मिलते हैं।
beshay और ओबामा (जो एक अनाथ बच्चा है) और उनका गधा हर्बी, तीनों मिस्र की सड़कें नापते हुए इस कहानी को इस खूबसूरती से आगे बढ़ाते हैं कि सफर की थकान नहीं होती। कहते हैं न कि कहानी तो गिनी चुनी ही हैं लेकिन उनको कहना किस तरीके से है , अगर यह पता हो तो हर बार कहानी एक नया ही रूप ले लेती है। कयामत के दिन या इन्साफ के दिन तक का सफर ही तो ज़िन्दगी है और योमेदिन इस सफर को बहुत खूबसूरत बना देती है
अनसर्टेन रेगार्ड में केन्या की फिल्म 'रफ़ीकी' देखी, यह केन्या से पहली फिल्म है जो कान फेस्टिवल में शामिल हुई है। और इतना ही नहीं यह फिल्म केन्या में बैन कर दी गई है क्योंकि इसकी कहानी केन्या के कल्चर के खिलाफ है। फिल्म में केना और जिकी की कहानी है , यह दोनों लड़कियां स्कूल की पढ़ाई ख़तम करके अपनी आगे की ज़िन्दगी के बारे में सोच रही हैं और इसी दौर में दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठती हैं। इस मासूम प्यार की कहानी पर केन्या में इसलिए रोक लगा दी गयी है क्योंकि वहां होमोसेक्सुअल संबंधों को गैर कानूनी और धर्म के खिलाफ माना जाता है। और अगर पकड़े जाएं तो 14 साल की सजा भी हो सकती है। .केन्या के फिल्म बोर्ड को इस बात से भी शिकायत है कि यूरोप के लोग आकर ऐसी फिल्मों में पैसा लगा देते है और इस वजह से लोगों के लिए खतरा और बढ़ जाता है... वो अपने बच्चों को ऐसी फिल्में देखने की इज़ाज़त नहीं दे सकते
रफ़ीकी जो स्वाहिली का शब्द है जिसका मतलब है दोस्त, केना और जिकी की दोस्ती जो प्यार के शुरूआती दौर तक तो पहुंचती है लेकिन क्या इसके आगे पहुंचेंगी ?? बस ऐसी ही एक उम्मीद भरे शॉट पर फिल्म ख़तम होती है। एक ऐसे माहौल में जहां ऐसा कोई रिश्ता रखना , अपनी जान की बाज़ी लगा देना है, वहां ऐसी कहानी पर इतनी नर्माहट और भावुक तरीके से फिल्म बनाना wanuri kahiu का कमाल है...
और अब बात करते हैं 'everybody knows' की, असग़र फ़रहादी वो फिल्मकार है जो इंसानी रिश्तों को, उनके साथ जुड़े गड्डमड्ड धागों को और उनको छेड़ने से होने वाली आवाज़ों को परदे पर किस तरह दिखाना है बखूबी जानता है, बिला शक यह इंसान इंसानी भावनाओं से संतूर बजा सकता है। ईरान से निकला यह डायरेक्टर फ्रेंच भाषा को बिना जाने इतनी खूबसूरत फिल्म बना जाता है कि ऑस्कर जीत लेता है, और इस बार उन्होंने स्पैनिश भाषा में फिल्म बनाई हैं। मजाल है कि एहसास भी हो जाए कि इस बन्दे को यह भाषा नहीं आती। स्पेन के परिवार, उनके रिश्तों और उनके किरदारों को इस तरह परदे पर उकेरा है कि बस वाह ही कह सकते हैं।
.. और फिल्म के तीनों मुख्य किरदार (पेनेलोपे क्रूज़, ज़ेवियर बार्डेम, रिकार्डो डारिन) जिन महाबली कलाकारों ने निभाए हैं कि किस किस की तारीफ़ करें। शादी के माहौल में परिवार में एक बुरी घटना हो जाती है, और इस के चलते जो रिश्तों की दरारें हैं सब न सिर्फ सामने आ जाती हैं, बल्कि रिश्ते दरकने भी लगते हैं। फिल्म में रिश्तों का अतीत बार बार सामने आकर खड़ा होता है, लेकिन कहानी की रफ़्तार में कोई फर्क नहीं आता।
ऐसी शुरुआत को सिर्फ सुभानअल्लाह ही कहा जा सकता है। .और ऐसा सिर्फ कान फेस्टिवल में मुमकिन है।