ईशान्नोन्मुख भूखण्ड में भवन बना कर उसमें निवास करने के लिए निम्न वास्तु सिद्धांतों को व्यवहार में लाने से निश्चय ही लाभ प्राप्त होगा।
भवन का मुख्य द्वार उत्तरी या पूर्वी ईशान कोण में ही रखना चाहिए।
यदि दक्षिण या पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार बनाना पड़े तो ये क्रमशः उत्तर या पूर्वी द्वारों की अपेक्षा ऊंचे होने चाहिए।
यदि घर में प्रयोग किया गया जल शौचादि में प्रयुक्त जल के अतिरिक्त अर्थात् घर को धोने के बाद या वर्षा का जल ईशान कोण के रास्ते से बाहर निकले तो वंश वृद्धि के साथ-साथ ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है।
यदि ईशान्नोन्मुख भूखंड में पूर्व की ओर विस्तार हो तो उस भूखण्ड पर भवन बना कर निवास करने वाले व्यक्ति धनी, यशस्वी एवं धर्मात्मा होते हैं।
यदि ईशान्नोन्मुख भूखंड के सामने का स्थान नीचा होता है तो धन सम्पदा की वृद्धि होती है।