आजाद भारत को ब्रिटेन का सलाम

- लॉर्ड माउंटबेटन

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संविधान सभा के आदरणीय अध्‍यक्ष व माननीय सदस्‍यों, आप लोगों के लिए मेरे पास ब्रिटिश हुकूमत का एक संदेश है

‘इस ऐतिहासिक दिन, जब भारत एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के रूप में ब्रिटिश राष्‍ट्रमंडल में अपना स्‍थान लेने जा रहा है, आप सभी को शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई।’

‘विश्‍व में स्‍वतंत्रता से प्रेम करने वाले सभी लोग आपके इस जश्‍न में भागीदार होना चाहेंगे क्‍योंकि सत्‍ता के हस्‍तांतरण पर हमारी आपसी सहमति लोकतंत्र की महान कल्‍पना को समर्पित है। यह प्रेरणास्‍पद है कि सत्‍ता का इतना बड़ा हस्‍तांतरण शांतिपूर्ण ढ़ंग से किया जा रहा है।

आज से महज छ: महीने पहले श्री क्‍लेमेंट एटली ने मुझे बुलाकर भारत के आखिरी वाइसराय का पद स्‍वीकार करने का आग्रह किया। उन्‍होंने यह स्‍पष्‍ट कर दिया था कि यह काम आसान कतई नहीं होगा, क्‍योंकि ब्रिटिश हुकूमत जून, 1948 तक सत्‍ता की बागडोर भारतीयों के हाथों में सौंपने का निर्णय ले चुकी है। उस समय कई लोगों के मन में यह विचार आ रहे थे कि ब्रिटिश सरकार ने शासन की बागडोर भारतीयों के हाथ में सौंपने की तारीख बहुत जल्‍दी तय कर ली हैइतना बड़ा काम केवल 15 महीनों में कैसे संभव हो सकेगा?

बहरहाल, भारत में एक सप्‍ताह बिताने से पहले ही मैंने यह महसूस किया कि जून, 1948 की तारीख बहुत पास नहीं, अपितु बहुत दूर है। सांप्रदायिक तनाव और दंगों के बारे में भारत के लिए इंग्‍लैंड से निकलते वक्‍त मैंने सोचा तक नहीं था। मैंने महसूस किया कि भारतीयों के हाथों में भारत की बागडोर सौंपने का निर्णय जल्‍द-से-जल्‍द लेना चाहिए अन्‍यथा इस भारतीय उपमहाद्वीप में तनाव अधिक बढ़ सकता है।

मैंने सभी दलों के नेताओं से इस विषय पर विमर्श किया। आपसी विचार-विमर्श से 3 जून की तारीख नियत की गई। इसकी स्‍वीकार्यता पूरे विश्‍व के सामने एक कुशल नेतृत्‍व का उदाहरण होती। यह योजना नेताओं के साथ मिलकर चरणबद्ध ढंग से एक खुली रणनीति के तहत विकसित की गई थी। इसकी सफलता का श्रेय भी उन्‍हें ही जाता।

मैं इस बात से अच्‍छी तरह से वाकिफ हूँ कि स्‍वतंत्रता प्राप्ति के उल्‍लास के साथ आपके मन में इस बात की टीस भी होगी कि यह स्‍वतंत्रता विभाजित भारत के रूप में प्राप्‍त होगी। विभाजन के दर्द ने आज के दिन की खुशी को कम कर दिया होगा। यह निर्णय जो आपके नेताओं को लेना ही पड़ा, ऐसे में आप लोगों ने भी उदारता और यथार्थवादी सोच के साथ अपने नेताओं को भरपूर सहयोग दिया

अब मैं भारत की रियासतों पर आता हूँ। 3 जून की तारिख हमें सिर्फ इस समस्‍या के चलते स्‍थगित करनी पड़ी, जिसके तहत ब्रिटिश सल्‍तनत से सत्‍ता हस्‍तांतरण के बाद सभी 565 रियासतों का स्‍वतंत्र अस्तित्‍व होगा। यह एक गंभीर समस्‍या थी, जिसके साथ चौतरफा खतरे जुड़े थे। लेकिन स्‍टेट डिपार्टमेंट (राज्‍य विभाग) के गठन के बाद मेरे लिए इस गंभीर समस्‍या से निपटना आसान हो गया। मैं इसके लिए आपके दूरदर्शी नेता सरदार वल्‍लभभाई पटेल का आभारी हूँ, जिन्‍होंने स्‍टेट डिपार्टमेंट का कार्यभार सँभाला। मेरे समक्ष एक योजना प्रस्‍तुत की गई, जो रियासतों और संप्रभु भारत दोनों के हित में थी

ज्‍यादातर रियासतें भौगोलिक रूप से भारत से जुड़ी हुई थीं, इसलिए बाद में भारत के लिए समस्‍या को सुलझाना और भी कठिन हो जाता। इन रियासतों के शासकों, राज्‍य सरकारों और भारत सरकार के बीच आपसी सहमति हो सके, ऐसी एक योजना तैयार करना वास्‍‍तविकता में सबसे बड़ी जिम्‍मेदारी थी। इन सबसे बढ़कर ऐसी योजना तैयार करना, जो इतनी सहज और सरल हो कि तीन सप्‍ताह के भीतर सभी रियासतें स्‍टैण्‍डहिल समझौते के साथ इस पर हस्‍ताक्षर करने के लिए सहमत हो जाएँ

इस तरह तीस करोड़ जनता वाले एक संप्रभु राष्‍ट्र का गठन हुआ, जो इस उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा भाग है


हैदराबाद ऐसी एकमात्र महत्‍वपूर्ण रियासत है, जिसने अब तक अपनी सहमति प्रकट नहीं की है। आकार, भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक स्रोतों के मामले में हैदराबाद की अपनी विशेषता है और उसकी अपनी समस्‍या भी है। वहाँ के निजाम पाकिस्‍तान में शामिल नहीं होना चाहते हैं और न ही उन्‍हें भारत का हिस्‍सा बनना स्‍वीकार्य है। वहाँ के निजाम ने मुझे विश्‍वास दिलाया है कि विदेशी मामलों, रक्षा और संचार के क्षेत्र में वे उस राष्‍ट्र का साथ देंगे, जिसकी जमीन उनकी रियासत के ईर्द-गिर्द है

उनकी इस मौखिक सम्‍मति के बाद हमें उम्‍मीद है कि सरकार और उनके बीच की बातचीत से जल्‍द ही कोई ऐसा समाधान निकलेगा, जो सर्वस्‍वीकृत होगा।

आज से मैं आपका संवैधानिक गवर्नर जनरल हूँ। मैं आपसे बस यही चाहता हूँ कि आप मुझे अपने में से एक समझें, जो भारत के हितों के लिए पूरी तरह से समर्पित है।

नई दिल्‍ली (14 अगस्‍त, 1947)