पिछले 62 सालों में भारत की उपलब्धियाँ तो बहुत हैं। लिखने बैठें तो कई किताबें लिखी जा सकती हैं। भारत वर्ष-दर-वर्ष विकास के नए आयाम गढ़ रहा है। चंद्रयान और परमाणु पनडुब्बी कुछ ऐसी परियोजनाएँ हैं जिनके कारण पूरा विश्व भारत को उभरती महाशक्ति के रूप में मान्यता देने को मजबूर हुआ है।
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चाँद पर लहराया तिरंगा
अंतरिक्ष के क्षेत्र में दशक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा मानवरहित चंद्रयान-प्रथम। देश के सबसे पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम चंद्रयान-1 के अंतर्गत अंतरिक्षयान को 22 अक्टूबर को प्रक्षेपित किया गया और चार नवंबर को उसे चंद्रमा की ट्रांसफर टैजेक्टरी (स्थानान्तरण कक्ष) में स्थापित किया गया। भारत के पहले मानवरहित चंद्रयान-प्रथम से मून इंपैक्ट प्रोव के चंद्रमा की धरती पर उतरकर भारतीय राष्ट्रध्वज स्थापित करने के साथ ही चंद्रमा पर राष्ट्रध्वज के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाला भारत चौथा देश बन गया है। भारत दुनिया का ऐसा छठा है, जिसने चाँद पर अपना कोई यान भेजा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की इस महत्वपूर्ण परियोजना को तीन चरणों में पूरा किया जाना है। एक अनुमान के अनुसार पहला भारतीय अंतरिक्ष यात्री चाँद की कक्षा में 2015 में पहुँच जाएगा जबकि 2025 तक वह चाँद पर अपने कदम रख सकता है।
चंद्रमा पर चुनौतीपूर्ण अभियान के बाद भारत मंगल पर अपने कदम रखने की तैयारी में भी जुट गया है।
परमाणु पनडुब्बी अरिहंत
भारत की सामरिक क्षमता में एक और शक्ति इस वर्ष जोड़ी गई जिसका नाम है- अरिहंत। भारत इस परियोजना पर करीब दो दशक से काम कर रहा है। भारतीय वैज्ञानिको के अथक प्रयासों से भारत की नौसेना में इस अत्याधुनिक शस्त्र को शामिल किया गया जिसके जरिये आज भारत हर तरह की सामरिक चुनौती का सामना करने में सक्षम है।
भारत के अलावा इस तरह की पनडुब्बी अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने तैयार की है। भारत की इस पहली परमाणु पनडुब्बी का नाम आईएनएस अरिहंत रखा गया है। अरिहंत यानी दुश्मनों का नाश करने वाला।
20 जुलाई 2009 को विशाखापत्तनम में शुष्क गोदी के विशालकाय द्वार खोल दिए गए और छह हजार टन वजन की यह परमाणु पनडुब्बी समुद्री परीक्षणों के दौर में प्रवेश कर लेगी। इस पनडुब्बी का विकास भारत के अत्यंत गोपनीय एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वैसल परियोजना के तहत किया गया है। इस तरह की कुल 4 पनडुब्बियों का विकास किया जाना है और यह परियोजना 2015 तक पूर्ण होगी।
अरिहंत परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी है जो पानी के अंदर असीमित समय तक रह सकती है। परम्परागत पनडुब्बियों को अपनी बैटरियाँ चार्ज करने के लिए हवा लेने की खातिर सतह पर आना पड़ता है, लेकिन इस पनडुब्बी को ऐसी कोई आवश्यकता नहीं होगी। अरिहंत समुद्र के नीचे लंबे समय तक रह सकती है।
इस पनडुब्बी के जरिये सागरिका नामक मिसाइल छोड़ी जा सकेगी। सागरिका का विकास इस समय डीआरडीओ द्वारा किया जा रहा है तथा इसकी रेंज 500 से 700 किलोमीटर की होगी। इसके अलावा इस पनडुब्बी को अग्नि-3 से भी लैस किया जा सकेगा।
इस परियोजना के पूर्ण होने पर भारत के पास आकाश, जमीन और पानी के भीतर से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की ताकत हासिल हो जाएगी।
इस पनडुब्बी को विकसित करने के साथ ही भारत परमाणु पनडुब्बी हासिल करने वाला विश्व का छठा देश बन गया है। अरिहंत से भारतीय सामरिक क्षमता का विस्तार हुआ है।
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'भुवन' दिखाएगा दुनियाभर के नजारे
एक ही समय एक ही स्थान से पूरी दुनिया की सैर कराने वाला भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर 'भुवन' अब आपको दुनियाभर की सैर कराएगा। इस वेबपोर्टल के जरिये कोई भी अपने कम्प्यूटर पर दुनियाभर की सैटेलाइट तस्वीरें देख सकेगा।
भुवन संस्कृत का एक शब्द है, जिसका मतलब हिन्दी में पृथ्वी होता है। इसके जरिये इंटरनेट उपभोक्ता दुनिया के किसी भी स्थान का नजारा देख सकेगा, लेकिन सैन्य व परमाणु प्रतिष्ठान जैसे संवेदनशील स्थान इसमें दिखाई नहीं देंगे। भुवन वेबपोर्टल में दिखाई देने वाली तस्वीरें इसरो के सात रिमोट सेंसिंग सैटेलाइटों से एक वर्ष पूर्व ली गई थीं। इसमें आसमान में काफी ऊपर से दिखने वाली पृथ्वी की तस्वीरें, सड़क पर चलती कार बेहद स्पष्ट दिखाई देगी।
विशेष बात यह है कि भुवन वेबपोर्टल में दिखाई देने वाली तस्वीरें इसी तरह के एक पोर्टल गूगल अर्थ से भी ज्यादा स्पष्ट दिखाई देंगी। इसमें शामिल तस्वीरों के लिए 10 मीटर रिजॉल्यूशन लिया गया है, बल्कि ऐसी सेवा देना वाली अन्य सेवाओं में 200 मीटर का रिजॉल्यूशन लिया गया है।
पिछले कुछ वर्षों में देश में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के बाद इसरो में भुवन जैसी प्रणाली तैयार करने की योजना बनी। यदि अब कोई षड्यंत्रकारी भुवन की सैटेलाइन तस्वीरों से धमाकों की योजना बनाएगा, तो उसे भुवन की टीम आसानी से ढूँढ निकालेगी।