#अधूरीआजादी : एक नजर भारत के विवादित भू-भागों पर...
शुक्रवार, 4 अगस्त 2017 (14:47 IST)
भारत में बहुत से विवादित क्षेत्र या भू-भाग हैं। क्षेत्रीय विवाद से आशय उस क्षेत्र से है जिसके तहत भूमि के नियंत्रण या आधिपत्य को लेकर दो राज्यों, देशों के बीच विवाद हो। यह विवाद दो या अधिक देशों के बीच भी हो सकता है। इस पर किसी नए राज्य या देश का कब्जा हो या इसने किसी और देश से इसे जीत लिया हो। या किसी ऐसे देश से इसे हासिल किया है जोकि इस नए देश, राज्य को मान्यता नहीं देता हो।
भारत ने तीन प्रमुख देशों के साथ भूभाग पर नियंत्रण या आधिपत्य को लेकर विवाद है जिनमें चीन, नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं। जबकि भारत ने बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ अपने भौगोलिक, सीमा संबंधी विवाद निपटा लिए हैं जबकि भूटान के साथ इसकी सीमा भलीभांति चिन्हित नहीं है जिसको लेकर बहुत सारी गड़बडि़यां हैं। जबकि रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) के साथ एक समझौता चल रहा है।
बड़े विवाद:- रिपब्लिक ऑफ चायना (ताइवान), पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन), देसांग मैदान, अक्साई चिन के पास विवादित क्षेत्र का मामला, समूचे कराकोरम का इलाका, अरुणाचल प्रदेश, पाकिस्तान, जम्मू और कश्मीर के दो लाख वर्ग किमी के भूभाग पर विवाद, सियाचिन ग्लेशियर विवाद, साल्तारो रिज (संकरे ऊंचे भाग का विवाद), सर क्रीक का विवाद।
छोटे विवाद- म्यांमार, नेपाल, कालापानी, सुस्ता, पुराने विवाद, श्रीलंका, कच्चातीवू विवाद, बांग्लादेश, दक्षिण तालपट्टी विवाद, भारत बांग्लादेश गलियारा विवाद, अचिन्हित सीमाक्षेत्र और गलत कब्जे को लेकर विवाद।
रिपब्लिक ऑफ चाइना से विवाद
यह ताइवान कहलाता है और इसके चीन से लगी बहुत सी सरकारों के साथ विवाद है। विदित हो कि वन चाइना नीति के कारण इसके दूसरे देशों के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं, न ही सीमा समझौते, संधियां हैं। हालांकि चीन का दावा है कि यह उसका क्षेत्र है लेकिन सभी चीन-भारत सीमा विवाद में ताइवान भी शामिल रहा है जबकि चीन इसे मान्यता ही नहीं देता है।
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना: देपसांग के मैदानी क्षेत्र- ये मैदान भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमा पर स्थित हैं और इसके साथ अक्साई चिन का विवादित क्षेत्र भी शामिल है। विदित हो कि 1962 की लड़ाई में चीनी सेना ने भारत के इस बहुत सारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। बाद में, चीन ने इस क्षेत्र को खाली कर दिया। यह विवाद 2013 में निपट गया था।
अक्साई चिन के पास विवादास्पद क्षेत्र
देमचोक 500 वर्गकिमी, चुमार, कौरिक, शिप्की ला, (हिमाचल प्रदेश में), लेप्था के साथ नेलांग घाटी, पुलाम सुदा और सांग (उत्तराखंड में) ऐसे इलाके हैं जिन पर चीन अधिकार जताता है और कहता है कि यह उसके तिब्बत के जांडा इलाके के एक भूभाग का हिस्सा है। देमचोक का 70 फीसदी हिस्सा चीन के कब्जे में है और भारत के पास मात्र 30 फीसदी, लेकिन चीन का कहना है कि समूचा क्षेत्र ही उसका है। बारहोती नाम का एक और क्षेत्र है जोकि चरने का मैदान है जिसे चीन विवादित क्षेत्र बताता है जो उत्तराखंड में है और इस पर भारत का नियंत्रण है।
ट्रांस-कराकोरम इलाका: चीनी इसे पिनीयिन, कालाकुनलून जोलांग का इलाका कहते हैं जोकि करीब 5800 वर्ग किमी से 5180 वर्ग किमी (2239 बर्ग मील) तक फैला है और जोकि चीन के कब्जे में है। इसका एक हिस्सा जिनजियांग राज्य में है जिसे 1963 तक पाकिस्तान अपना बताता रहा। यह हिस्सा अभी भी जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा बताया जाता है जबकि पाकिस्तान ने इस पर से अपना दावा छोड़ दिया है क्योंकि दोनों देशों, चीन-पाक के बीच 1963 में जमीन को लेकर समझौता हुआ था। जिसमें कहा गया था कि इसका निपटारा कश्मीर के विवादित क्षेत्र के निपटारे के साथ अंतिम रूप से होगा।
अरुणाचल प्रदेश : इसे भारत ने 20 जनवरी, 1972 को अपना प्रदेश बनाया था जोकि पूर्वोत्तर के अंत में है। इसकी सीमा असम और नगालैंड से दक्षिण में मिलती हैं। पूर्व में इसकी सीमा बर्मा (म्यांमार) से मिलती है और इसके पश्चिम में भूटान है। इस भाग पर चीन अपना अधिकार बताता है और कहता है कि यह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। अरुणाचल प्रदेश मैकमोहन लाइन की उत्तरी सीमा है जोकि 1914 में ब्रिटेन और तिब्बत के बीच समझौते के तहत तय हुई थी लेकिन चीन कहता है कि तिब्बत के साथ समझौता का पूरी तरह से पालन नहीं हुआ है और चीन ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया। 1950 तक यह इलाका भारत सरकार के पास था और यह भारत द्वारा प्रशासित है।
पाकिस्तान
जम्मू कश्मीर के दो लाख से अधिक वर्ग किमी के भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है और यह भारत-पाकिस्तान के बीच प्रमुख विवाद का हिस्सा है। इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके हैं। जम्मू और कश्मीर के विवादित अन्य क्षेत्रों को लेकर भी भारत-पाक के बीच विवाद हैं।
सियाचिन ग्लेशियर
हिमालय में करीब 35.5 डिग्री नॉर्थ और 77.0 पूर्व में पूर्वी कराकोरम की पहाडि़यों में स्थित है और भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा के पूर्व में है। सियाचिन ग्लेशियर और इसके अन्य सहायक ग्लेशियरों पर भारत का कब्जा है। यह ग्लेशियर 70 किमी (43 मील) लम्बा है और यह कराकोरम की पहाडि़यों में सबसे लंबा ग्लेशियर है। इसके साथ ही, यह गैर-ध्रुवीय इलाकों में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है।
साल्तारो रिज
साल्तारो पर्वत या साल्तारो मुत्गाह नाम से भी इसे जाना जाता है। कराकोरम की उंचाइयों पर या साल्तारो रिज या संकरे ऊंचे भाग में यह पहाडियों की दूसरी ऊंची श्रंखला है। यह कराकोरम के ठीक बीच में है और इसके दक्षिणपश्चिमी किनारे पर सियाचिन ग्लेशियर है।
भारत का कहना है कि यह जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा है और पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान का हिस्सा है। 1984 में इस पर भारत ने कब्जा कर लिया था और इसके साथ ही भारत ने इसके प्रमुख पर्वत शिखरों और दर्रों के मार्गों को अपने सैन्य नियंत्रण में ले लिया था। इसके पश्चिम में ग्लेशियर की घाटी में पाकिस्तान की सेनाएं कब्जा किए हैं। इसलिए चल रहे सियाचिन संघर्ष के बाद भी सैन्य बलों के अलावा यहां और कोई नहीं आता जाता है।
सर क्रीक
यह पानी की 96 किमी लंबी (60 मील) पट्टी है जिसको लेकर कच्छ के रण के दलदली क्षेत्रों में भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद चल रहा है। इस पर दावेदारी के लिए पाकिस्तान का कहना है कि इसके निर्धारण के लिए समुद्र के चौड़े मुहाने के पूर्वी किनारे को आधार बनाया जाए लेकिन भारत का दावा है कि इसके सही-सही निर्धारण के लिए मुहाने के बीचोंबीच रेखा को आधार बनाया जाए। उल्लेखनीय है कि कच्छ के राव महाराज और तत्कालीन सिंध सरकार के बीच एक बॉम्बे सरकार के एक प्रस्ताव के समझौते पर 1914 में हस्ताक्षर किए गए थे लेकिन प्रस्ताव के पैरा 9 और 10 में जो व्याख्या की गई है, वह परस्पर विरोधी है और भारत-पाकिस्तान समस्या को हल करने के लिए अपनी मनमाफिक व्याख्या पर जोर देते हैं।
इस प्रकार से अरब सागर के जल में समुद्री की सीमा का निर्धारण का मामला सुलझ नहीं सका है। विदित हो कि देश की स्वतंत्रता, 1947 से पहले यह प्रांतीय क्षेत्र बॉम्बे प्रेसीडेंसी ऑफ ब्रिटिश इंडिया का एक हिस्सा था। पर 1947 के बाद सिंध, पाकिस्तान का हिस्सा बन गया था जबकि कच्छ भारत का हिस्सा बना। इसकी दोनों सीमाओं पर एक ओर भारतीय सेना और दूसरी ओर पाक मैरीन्स तैनात रहते हैं।
छोटे-छोटे विवाद
म्यांमार
म्यांमार में होलेनफाई गांव और मोरे (मणिपुर) के पास बहुत सी छोटी-छोटी जमीनों को लेकर विवाद है और ऐसी ही थोड़ा सा भूभाग नामफालोंग, तामू के पास है।
नेपाल
कालापानी करीब 400 वर्ग किमी का क्षेत्र है जोकि नेपाल के धारचूला जिला और भारत के पिथौरागढ़ जिले में है और इसको लेकर दोनों के बीच विवाद भी है। हालांकि नेपाल इस पर अपना दावा करता है लेकिन 1962 में चीन से सीमा युद्ध के बाद इस पर इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस का नियंत्रण है।
विदित हो कि वर्ष 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच सुगौली में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे और इसके अंतर्गत यह तय किया गया था कि विभिन्न स्थानों पर काली नदी पश्चिम में भारत के साथ सीमा निर्धारित करेगी। हालांकि दोनों देश अपने-अपने दावों के समर्थन में नक्शों का उल्लेख करते हैं और इन्हें अपने दावों का आधार बताते हैं। कालापानी नदी एक ऐसे क्षेत्र से निकलती है जिसको लेकर 400 वर्गकिमी के करीब नदी के स्रोत के चारों ओर विवाद है जबकि स्रोत से स्रोत तक विवादास्पद क्षेत्र का सही-सही आकार तय नहीं किया जा सका है।
सुस्ता
सुस्ता एक ऐसा इलाका है जिसके ट्राइ बेनीसुस्ता, नेपाल और उत्तर प्रदेश के नीचलाउल के पास क्षेत्र को लेकर विवाद है। यहां जिस क्षेत्र को लेकर विवाद है, उसका कुल फैलाव 14 हजार हेक्टेयर (140 वर्गकिमी) से अधिक है। कुल मिलाकर भारत-नेपाल सीमा पर 71 स्थान ऐसे हैं जोकि भारत और नेपाल की 1808 किमी की सीमा पर फैले हैं। कहा जाता है कि भारत ने इस क्षेत्र में नेपाल की 60 हजार किमी जमीनी क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है।
पूर्व विवाद
श्रीलंका-भारत का सीमा विवाद सुलझ चुका है।
कच्चातीवु विवाद : कच्चातीवु या कच्छाथीवु विवाद एक निर्जन द्वीप को लेकर था जोकि भारत और श्रीलंका के अनुसार 235 एकड़ में फैला हुआ है। पहले इस पर भारत और श्रीलंका दोनों ही अपना दावा करते थे लेकिन 1974 में दोनों देशों ने इस पर श्रीलंका का दावा स्वीकार कर लिया। विदित हो कि इसमें एक कैथोलिक धर्मस्थल है और श्रीलंका सरकार ने इसे पवित्र स्थल घोषित किया था लेकिन वर्ष 2001 में तमिलनाडु सरकार ने इस द्वीप को वापस मांगा लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने इससे इनकार करते हुए कहा कि इसे स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को सौंपा था।
लेकिन इस मामले पर भारत सरकार का कहना था कि चूंकि यह एक विवादित क्षेत्र था और भारत के किसी भी क्षेत्र का संप्रभुता संबंधी अधिकार नहीं सौंपा गया है। वर्ष 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ कि चूंकि भूमि का निर्धारण किया गया है और दोनों देशों ने एक दूसरे का ऐतिहासिक प्रमाणों और कानूनी पहलुओं को स्वीकार किया।
बांग्लादेश-
दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझा लिया गया है। लेकिन दक्षिणी तालपत्ती को लेकर विवाद अभी भी बना हुआ है। साउथ तालपत्ती (जिसे अंतरराष्ट्रीय तौर पर बंगबंधु द्वीप ( या बांग्ला में अवामी) नाम से जाना जाता था, एक छोटा सा निर्जन समुद्री किनारा है जोकि बंगाल की खाड़ी में बालू के क्षेत्र के तौर पर भी जाना जाता है। यह गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र में समुद्र तट से कुछ दूरी पर है। वर्ष 1970 में भोला तूफान के बाद बंगाल की खाड़ी में दोनों देशों के बीच सीमा बनाई गई थी लेकिन वर्ष 2009 में आए आइला तूफान के कारण यह अस्थायी सीमा भी समुद्र में गायब हो गई।
भारत-बांग्लादेश गलियारों में अनुचित कब्जा और सीमारहित सीमाएं
यह गलियारा या चितामहल, भारत और बांग्लादेश सीमा पर स्थित है जोकि एक लम्बे समय तक दोनों देशों के बीच मुद्दा बना रहा। हालांकि इसे लेकर कूच बिहार के महाराजा और रंगपुर के नवाब के बीच समझौता हुआ था लेकिन स्वतंत्रता के बाद कूच बिहार और रंगपुर राज्य अलग-अलग हो गए। बाद में 1947 के बाद दोनों ही पूर्वी पाकिस्तान में चले गए थे जिसे बाद में बांग्लादेश के नाम से जाना गया।
वर्ष 1971 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच 1974 में भूमि सीमा समझौता किया गया और 41 वर्षों के बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के इलाकों को वापस कर दिया। इस इलाके में भारतीय क्षेत्रों की संख्या 111 थी और ये 17,160.63 एकड़ में फैले थे और इसी तरह 51 बांग्लादेशी गलियारों की 7110.02 एकड़ जमीन उसे वापस मिल गई। इस तरह से जमीन की अदला-बदली में भारत को 2777.038 एकड़ जमीन मिली जबकि बांग्लादेश को 2257.682 एकड़ जमीन वापस की गई और भारत ने इस आशय का एक संवैधानिक सुधार मई 2015 में किया और इस घटनाक्रम की पुष्टि की।
इस समझौते के तहत दोनों देशों के लोगों को यह अधिकार भी दिया गया कि वे अपने वर्तमान स्थान या अपनी पसंद के देश में रहने के लिए स्वतंत्र हैं। बोराईबाड़ी का क्षेत्र बांग्लादेश को मिला और दोनों देशों के बीच को अचिन्हित सीमा थी उसका अंतिम रूप से निर्धारण कर लिया गया।