कैसी आजादी और किसकी आजादी?

हम आजादी का पर्व क्यों मनाते हैं? क्या इस दिन भारत विभाजित नहीं हुआ था? किन लोगों के कारण भारत विभाजित हुआ था? क्यों भारत विभाजित हुआ था? अंग्रेजों ने हमें गुलाम क्यों बना लिया था? 200 साल में अंग्रेजों ने हमारे साथ क्या-क्या किया? और अंत में यह सवाल भी कि कितने भारतीय युवा जानते हैं कि अंग्रेजों ने हमारे साथ क्या-क्या किया और हमें आजादी किन-किन लोगों ने दिलवाई और भारत को विभाजित किन लोगों ने मिलकर किया था? यह कुछ सवाल है जिन्हें जाने बगैर 'आजादी का पर्व' मनाना मात्र एक उत्सव भर होगा। दिल में आग लगाकर आजादी मनाना है तो अंग्रेजों के अत्याचार और शहीदों के बलिदान को दिल से समझना होगा।
इन 68 वर्षों में देश के राजनीतिज्ञों ने देश का सत्यानाश कर दिया है। आज सरहद असुरक्षित है। रोज एक जवान शहीद हो रहा है। कई बच्चे अनाथ हो रहे है और शहीदों की लिस्ट बढ़ती ही जा रही है। किसे चिंता है इसकी? संसद में बैठे नेता चिल्ला रहे हैं किसलिए? आजादी के आंदोलन में शहीद हुए शहीदों के बलिदान को व्यर्थ सिद्ध कर करने के लिए या सत्ता भोग के लिए। आज दुख होता है जब भगतसिंह के घर को तोड़ा जाता है। मंगल पांडे की समाधी पर दीपक जलाने के लिए देश का कोई बड़ा नेता नहीं जाता है...
 
इन 68 वर्षों में देश के लगभग हर हिस्से में अलोकतांत्रिक व्यवहार, धरना, प्रदर्शन और हिंसा के चलते मनमानी तंत्र ही नजर आया आजादी से घुमना अब मुश्किल होता जा रहा है। इस मनमानी के चलते ‍देश में अलगाववादी, आतंकवादी, प्रांतवादी, सांप्रदायिक, भाषावादी और भ्रष्टाचारवादी प्रवृत्तियां पनपती रहीं और देश को विखंडित किए जाने का दुष्चक्र चल रहा जो आज अपने चरम पर है। क्या आजादी का यही मतलब है कि हम नए तरीके से गुलाम होने या विभाजित होने के रास्ते खोजें?
 
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और खंभात से लेकर सिक्किम तक भारतवासी भय, भुखमरी और असुरक्षा की भावना में जी रहे हैं। हमने तरक्की के नाम पर युवाओं के हाथों में मोबाइल, इंटरनेट, शराब की बोतल, धर्म और राजनीति का झंडा दे दिए, लेकिन अपना सुख-चैन, आपसी प्रेम और विश्वास खो दिया।
 
टूटता सामाजिक ताना-बाना : स्वतंत्रता के बाद पहले जयप्रकाश नारायण के जनआंदोलन के कारण इमरजेंसी ने आजादी पर ग्रहण लगाया, फिर मंडल आयोग ने देश के सामाजिक ताने-बाने में सेंध लगाई। बाबरी ढांचे के विध्वंस का तमाशा सबने देखा। फिर मुंबई बम कांड और फिर गोधरा कांड के कारण गुजरात दंगों के दंश को झेला। आरक्षण के नाम पर छात्र आंदोलन की आग बुझी ही नहीं थी कि गुर्जर और मीणाओं की तनातनी भी देखी। फिर अंत में आ गए अन्ना हजारे जिनके आंदोलन को अरविन्द केजरीवाल ने भस्म कर कर दिल्ली के सिंहासन को अपने कब्जे में कर लिया।
 
हर आंदोलन ने देश में असंतोष की आग तो लगाई साथ ही नए राजनेता पैदा कर दिए जिसमें आश्चर्यजनक रूप से वे लोग हमेशा से ही हाशिये पर धकेल दिए गए जिन्होंने आंदोलन की शुरुआत की या तो आंदोलन के पूल थे। मेन स्ट्रीम में आ गए वे नकली लोग जो सत्ता के भूखे और चालक लोग थे। आजादी के आंदोलन के साथ भी यहीं हुआ। असली लोग फांसी पर चढ़ गए और उनके परिवार के लोग हाशिए पर धकेल दिए गए। नकली लोगों ने सत्ता का सुख भोगा और देश में ढेर सारी समस्याओं को जन्म देकर वे भी अंग्रेजों की तरह मजे लुटकर चिता पर जल गए और उनकी समाधियों पर देश विदेश के नेता आकर आज फूल चढ़ाते हैं।
 
राजनीतिज्ञों के कारण देश में बढ़ते असंतोष का खेल चल ही रहा था कि घाटी में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने और फिर वापस लेने को लेकर समूचे देश में कोहराम मचा और घाटी को दो भागों में बांट दिया गया। एक तरफ राम के नाम पर राजनीति की गई तो दूसरी तरफ राम का अपमान किया गया। अलगाववाद और आतंकवाद एक भार भी पनप गया। हमने इन 68 सालों में कई तमाशे देखे, लेकिन कभी इन तमाशों का पुरजोर विरोध नहीं किया।
 
धर्म और भाषा के नाम पर : केंद्र से खिसककर भारतीय राजनीति का क्षेत्रीयकरण बढ़ने के कारण क्षेत्रवाद ने राज ठाकरे जैसे अनेक नेताओं को जन्म दिया। आजादी के बाद तथाकथित राजनीतिज्ञों ने यह ध्यान क्यों नहीं दिया कि भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया जाएगा तो भाषायी झगड़े राज्यों के बीच अशांति और हिंसा का कारण बनेंगे। इसके चलते आज भारत में ही भारतवासी अपनों की चोट के कारण दर-ब-दर हैं।
 
दूसरी ओर सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति के चलते समूचे देश को राजनीतिज्ञों ने बांटकर रख दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज जहां लाखों कश्मीरी पंडितों को खुद के ही देश में शरणार्थी बनकर रहना पड़ रहा है, वहीं उत्तरप्रदेश, उड़ीसा और असम के सामाजिक ताने-बाने को तोड़कर भय का वातावरण निर्मित कर दिया गया है। दूसरी ओर सेवा के नाम पर गरीब दलितों का धर्मांतरण जारी है तो आजादी के 68 वर्ष बाद भी मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी अशिक्षित बनी हुई है।
 
जम्मू और कश्मीर :
1990 के दशक में कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा धर्म के नाम पर प्रायोजित छद्म युद्ध के चलते कश्मीरी पंडितों को विस्थापन के लिए विवश होना पड़ा। इस पलायन के बाद आज भी वहां आतंकवाद और अलगाववाद की आग में समय समय पर पाकिस्तान घी डालता रहता है क्योंकि वह जानता है कि भारत के राजनीतिज्ञ कश्मीर मामले में शुतुरमुर्ग बने बैठे हैं।
 
पूर्वोत्तर में अलगाव : असम, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम व सिक्किम इन 8 राज्यों में उग्रवाद व अलगाववादी ताकतों ने अपना वजूद कायम कर लिया है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अलग स्वाधीनता और स्वायत्तता का जुनून छा रहा है। इन राज्यों में सीमा विवाद भी चरम पर है। हालांकि नगालैंड के मुइया गुट ने शांति की राह पकड़ी है जिसके चलते उम्मीद जागी है। यह समस्या पिछले 68 वर्षों से भी ज्यादा वर्षों से जारी है।
 
पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठ : दूसरी ओर भले ही बांग्लादेश से सीमा समझौता हो गया हो लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, तो चीन की अरुणाचल और सिक्किम पर गिद्धदृष्टि है। पूर्वोत्तर में सिक्किम ही इकलौता ऐसा राज्य है, जो तीन तरफा विदेशी सीमाओं से घिरा हुआ है। वोट की राजनीति के चलते उग्रवादी तत्वों को हवा मिल रही है। राज्य सरकारें केंद्र से आतंकवाद से जूझने के लिए मिलने वाली राशि के लालच में उग्रवादी तत्वों के साथ नूराकुश्ती खेल रही हैं। बांग्लादेशी घुसपैठ से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं है। कॉमरेडों ने वोट के लिए इस भूमि को बांग्लादेशियों से पाट दिया है। अब परिस्थितियां और विषम हो चली हैं जिसको सुधारने की क्षमता ममना बनर्जी नहीं रखती वह भी कॉमरेड की राह पर चल पड़ी है।
 
देश में फैलता नक्सलवाद : लोकतंत्र का दुरुपयोग करने वाले नेता, नौकरशाह, पूंजीपति और पुलिस तंत्र की मिली-जुली मनमानी और भ्रष्टाचार के मजबूत होते ऑक्टोपस का फैलाव, जमाखोरों, सूदखोरों, दलालों, भू-माफियाओं और जनसंख्या वृद्धि के कारण महंगाई, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता के चलते नक्सलवादी सोच का जन्म और विकास हुआ। आज पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और अन्य राज्यों के आदिवासी इलाकों में नक्सलवादियों का जाल फैल गया है। राज्य पुलिस इसके आगे बेबस नजर आती है। केंद्र भी कोई ठोस कार्रवाई के लिए कदम बढ़ाता नहीं दिखता। ईसाई मिशनरी और माओवादियों का यहां बोलबाला है।
 
इतिहास के प्रति उपेक्षा : गुलाम बनने के मुख्‍य कारणों में से एक यह है कि लोग अपने इतिहास और भूगोल के प्रति सजग नहीं रहते हैं। राजनीति और समाज की समझ का आधार इतिहास होता है। ज्यादातर ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्हें भारत के इति‍हास और भूगोल की कोई खास जानकारी नहीं है। कहते हैं कि जिस देश के लोगों को अपने इतिहास की जानकारी नहीं होती, वह देश धीरे-धीरे स्वयं की संस्कृति, धर्म, देश की सीमा और देशीपन को खो देता है।
 
इस देश के ज्यादातर लोगों को सिर्फ इतना-भर मालूम है कि हम कभी गुलाम थे इसीलिए आज आजादी का पर्व मनाया जाता है। हमें गुलामी से मुक्त कराने वाले कुछ खास नाम वे हैं जिनके पोस्टर हम शहरों या अखबारों में छपे हुए देख लेते हैं किंतु यह कतई नहीं मालूम कि यह आजादी किस तरह हासिल की गई और क्या था अंग्रेजों का काल और किस तरह हमें अंग्रेजों ने लूट खाया। यह नहीं मालूम तभी तो आज भी ज्यादातर भारतीय अंग्रेजों और अंग्रेजी के भक्त हैं। धन्य है मेरा देश जो इतिहास नहीं जानता।

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