विक्रम बत्रा अपनी बहादुरी, हंसमुख स्वभाव और चातुर्य के कारण जाने जाते थे। युद्ध के दिनों में हर ऑफिसर रैंक को एक कोडनेम दिया जाता है इसी कारण विक्रम बत्रा को शेरशाह कोडनेम दिया गया था। इसी नाम से वह बाद में पहचाने गए। उनके जीवन पर बनी फिल्म का नाम भी 'शेरशाह' है।
लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को उनकी यूनिट 13 जे एंड के राइफल के साथ पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का दायित्व दिया गया था। यह एक ऐसी चोटी थी जिसपर चढ़ना तो कठिन था ही पर यहां पाकिस्तानी घुसपैठियों ने अपना डिफेन्स बहुत जटिल कर रखा था। लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा के नेतृत्व में डेल्टा कंपनी और उनके साथी ले. संजीव जामवाल के नेतृत्व में ब्रावो कंपनी को रात के घने अँधेरे में हमला करने का आर्डर मिला था। जीतने के बाद बेस पर एक कोड मेसेज देना होता है, तो ले.बत्रा ने "यह दिल मांगे मोर" को चुना। रात भर लड़ने के बाद 20 जून 1999 को तडके 4:35 पर ले.बत्रा ने रेडियो पर मेसेज दिया था " चाणक्य...... इट्स शेरशाह रिपोर्टिंग....... वी हेव कैप्चर्ड द पोस्ट....... यह दिल मांगे मोर"। इस शौर्यपूर्ण कार्य के बाद उनकी पदोन्नति कर के उन्हें कैप्टन बना दिया गया था। वह इस विजय के बाद बेस से नीचे भी आए थे जहां उन्होंने टीवी इंटरव्यू भी दिया था।
इसी कड़ी में कैप्टेन बत्रा को अगला टास्क मिला पॉइंट 4875 को री-कैप्चर करने का मिला। यह कोई आसन काम न था। संकरा रास्ता और ऊपर से घुसपैठियों की ऐसी पोजीशन कि जिससे हमारी हर मूवमेंट पता चल जाती थी। ऐसे में टीम को लीड करते हुए और सभी को प्रोत्साहित करते हुए कैप्टेन बत्रा नेतृत्व करते हुए आगे बढे। बत्रा एक चीते के समान तेजी दिखाते हुए दुश्मनों पर टूट पड़े। उन्होंने उन पाकिस्तानी घुसपैठियों से दो-दो हाथ भी किए। इसी युद्ध में उन्होंने उनके सूबेदार को पीछे कर स्वयं दुश्मन की गोलियां खाई। उन्होंने उनसे कहा कि 'तुम बाल बच्चे वाले हो तुम पीछे हटो'। हमेशा युद्ध में आगे रहने वाले कैप्टेन विक्रम बत्रा के कारण भारत को महत्वपूर्ण पॉइंट 4875 तो मिल गया पर भारत भूमि को बचाने में वह स्वयं बलिदानी हो गए। उनके अंतिम शब्द थे, उनकी रेजिमेंट का नारा "दुर्गा माता की जय"। उनकी वीरता के कारण उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र मिला और साथ ही पॉइंट 4875 आज 'बत्रा टॉप' के नाम से जाना जाता है।