जब अहिल्याबाई ने अपनी रणनीति से बिना युद्ध लड़े ही बचा लिया था महेश्वर का किला

WD Feature Desk

बुधवार, 28 मई 2025 (14:45 IST)
rani ahilyabai holkar history in hindi: भारत का इतिहास अनेक वीर नारियों की गाथाओं से भरा हुआ है, लेकिन जब हम एक ऐसी स्त्री की बात करते हैं जिसने न केवल अपनों को खोने का असहनीय दर्द सहा, बल्कि राजनीतिक साजिशों और आंतरिक विद्रोहों के बीच अपने राज्य और जनता की रक्षा की, तब नाम आता है राजमाता अहिल्याबाई होलकर का। अहिल्याबाई होलकर जयंती 2025 के इस विशेष अवसर पर आइए जानते हैं एक ऐसी ऐतिहासिक घटना, जो अक्सर इतिहास की किताबों में गुम हो जाती है, लेकिन जो अहिल्याबाई की रणनीति, साहस और राजनैतिक चातुर्य का प्रमाण है।
 
अहिल्याबाई के जीवन का सबसे कठिन दौर तब आया जब उन्होंने अपने ससुर मल्हारराव होलकर, पति खांडेराव होलकर, और फिर अपने एकमात्र पुत्र मलेराव होलकर को खो दिया। तीन-तीन व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तंभों के एक साथ चले जाने के बाद, होलकर साम्राज्य की राजनीतिक नींव डगमगाने लगी थी। लेकिन इसी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश की गंगोबा तात्या नामक एक दरबारी ने।
 
 गंगोबा तात्या की साजिश
गंगोबा तात्या ने होलकर दरबार में बढ़ती अस्थिरता का लाभ उठाते हुए पेशवा माधवराव के चाचा रघुनाथ राव को आमंत्रित किया और उन्हें महेश्वर पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। योजना यह थी कि रघुनाथ राव, अहिल्याबाई को सत्ता से हटाकर गंगोबा को सत्ता सौंप दें। लेकिन वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि एक स्त्री जिसने अपने सबसे प्रिय जनों की मृत्यु सह ली हो, वह अपने राज्य की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
 
अहिल्याबाई की जबरदस्त कूटनीति और रणनीति
जैसे ही अहिल्याबाई को इस षड्यंत्र की भनक लगी, उन्होंने बिना किसी विलंब के होलकर वंश के निष्ठावान और प्रभावशाली नेताओं जैसे महादजी शिंदे और तुकोजी होलकर को पत्र भेजे। अपने अद्भुत नेतृत्व कौशल से उन्होंने उन्हें महेश्वर की रक्षा के लिए एकजुट कर लिया। महादजी शिंदे और तुकोजी होलकर ने बिना देर किए अपनी सेनाएं महेश्वर की ओर बढ़ा दीं।
 
लेकिन अहिल्याबाई यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने रघुनाथ राव को एक तीखा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने साफ तौर पर लिखा कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे अपने राज्य की महिलाओं से एक सेना बनाएंगी, ऐसी स्त्रियां जो अंतिम सांस तक लड़ने के लिए तैयार हैं। अहिल्याबाई ने लिखा कि एक स्त्री सेना से पराजित होना रघुनाथ राव के लिए सबसे बड़ा अपमान होगा।
 
क्षिप्रा नदी के तट पर थमा रघुनाथ राव का युद्ध
जब रघुनाथ राव क्षिप्रा नदी के किनारे पहुंचकर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें तुकोजी होलकर का पत्र मिला। उस पत्र में तुकोजी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि यदि वे महेश्वर पर आक्रमण करते हैं, तो इसके परिणाम उनके लिए घातक होंगे। महादजी शिंदे की भी सेना अब पास ही पहुंच चुकी थी। रघुनाथ राव को इस रणनीतिक घेरे का कोई अनुमान नहीं था। यह घटना उनके लिए अपमानजनक और चौंकाने वाली बन गई।
 
आखिरकार, रघुनाथ राव ने वापस लौटने का निर्णय लिया। अहिल्याबाई की दृढ़ इच्छाशक्ति, राजनीतिक दूरदृष्टि और राज्य के प्रति प्रेम ने एक बार फिर महेश्वर को युद्ध की विभीषिका से बचा लिया। आज भी महेश्वर की हवाओं में उनके साहस की गूंज सुनाई देती है। 


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