युद्ध के बाद जब सैनिक बंदी पोरस को सिकंदर के सामने लेकर गए तो सिकंदर ने पोरस से पूछा कि आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाए? जवाब में पोरस ने कहा था कि जैसा एक राजा दूसरे के साथ करता है... मगर अकबर ने बंदी बनाए गए हेमू का निर्ममतापूर्वक कत्ल कर दिया। पढ़िए अकबर महान की 'बहादुरी' की एक और कहानी....
पानीपत के मैदान में भीषण युद्ध हो रहा था। एक ओर थे पन्नी पठान शेरशाह सूरी के वंशज मोहम्मद आदिल शाह के सैनिक और राजपूत जो हेमचन्द्र भार्गव के नेतृत्व में भारत की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। दूसरी ओर थे विदेशी मुगल, ईरानी, तुर्क और मोहम्मद पैगम्बर के वंशज सैयद जो अकबर के सेनापति बैरमखां के नेतृत्व में भारत को गुलाम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। यह 5 नवंबर 1556 का दिन था।
इन दिनों भारत स्वतंत्र था। पन्नी पठान पूर्णत: स्वदेशी मुसलमान थे। इनके पुरखे बौद्ध थे और अफगानिस्तान के विदेशी हमलावर सुबुक्तगीन की अजमेर विजय के समय मुसलमान बन गए थे। शेरशाह सूरी इनका नेता था। इसने विदेशी अकबर के पिता हुमायूं को पराजित कर मार भगाया था और देश को स्वतंत्र किया था। आज भी सूरी हिन्दू और मुसलमान दोनों पाए जाते हैं। शेरशाह सूरी का वंशज मोहम्मद आदिल शाह उत्तर भारत में अकाल पड़ने के कारण पूर्व में चुनार चला गया था और हरियाणा के एक सुयोग्य सेनापति हेमचन्द्र को विदेशी मुगलों से मुकाबला करने के लिए छोड़ गया था।
सेनापति हेमचन्द्र ने 22 संग्रामों में विजय प्राप्त कर विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण की थी। इनके लिए एक दोहा प्रसिद्ध था-
'हेमू नृप भार्गव सरनामा।
जिन बीते बाइस संग्रामा।।'
हेमचन्द्र भार्गव ने ग्वालियर और आगरा होते हुए दिल्ली पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर ली थी। यहां मुगल सेनापति तर्दीबेग बुरी तरह परास्त हुआ था। मुगल 160 हाथी और 1000 अरबी घोड़े छोड़ भाग गए थे।
तर्दीबेग भागकर सरहिंद में अकबर के पास पहुंचा। यहां भगोड़े मुगलों को कोड़े लगाए गए और उनके सेनापति तर्दीबेग को कत्ल कर दिया गया।
इस प्रकार पानीपत का युद्ध शुद्ध रूप से देशभक्त भारतीयों और विदेशी हमलावर मुगलों के बीच लड़ा जा रहा था। यहां भी भारत के दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा। हेमचन्द्र भार्गव ने युद्ध पर रवाना होने से पूर्व ही तोपखाना आगे भेज दिया था, जो मुगलों के हाथ लग गया।
हेमू की हार का सबसे बड़ा कारण... पढ़ें अगले पेज पर....
दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा था। अकाल भी ऐसा कि भूखों मरते लोग मनुष्यों को मारकर खाने लगे। श्रेष्ठ सैनिक या तो अकाल की भेंट चढ़ गए थे या प्राण बचाने भारत के सुदूर प्रदेशों में निकल गए थे। जैसे-तैसे एक लाख सैनिक एकत्र हुए, वे भी अकाल से दुर्बल और अपने पीछे परिवार की चिंता संजोए लोग। इधर पंजाब में अकाल नहीं था और यह इलाका मुगलों के आधिपत्य में था। मुगलों को खाने की कमी नहीं थी। उनके घोड़े भारतीय किसानों के खेत में चरते थे और मुगल सैनिक हरियाणा की स्वस्थ गायें खाकर डकार ले रहे थे।
युद्ध स्थल पर मुगलों की गरजती तोपें भारतीयों पर कहर ढा रही थीं। वे बिना लड़े मर रहे थे। तब हेमू ने जूझ मरने का फैसला किया और मुगलों के दाएं-बाएं बाजू को झकझोरकर रख दिया। यहां के मुगल भाग खड़े हुए किंतु मुगलों की तोपें मध्य में लगातार आग उगल रही थीं। अब सेनापति हेमचन्द्र भार्गव ने अपने 1500 हाथियों के साथ मुगलों की तोपों पर धावा बोला। यहां घमासान लड़ाई होने लगी। तभी एक तीर हेमचन्द्र की आंख में लगा, जो भीतर मगज तक धंस गया। इस आघात से हेमचन्द्र मूर्छित हो हौदे से गिर पड़े। उनका महावत भी हाथी को लेकर जिसका नाम 'हवाई' था, जंगल में भाग गया।
हेमचन्द्र के मैदान से हटते ही भारतीय सेना में भगदड़ मच गई। वह सभी दिशाओं में भाग चली। पूरे दिन मुगलों ने पीछा कर भारतीयों का कत्ल किया। हेमचन्द्र के भागते हाथी का पीछा शाह कुली खां महरम नाम के एक मुगल सेनापति ने किया और हेमचन्द्र को पकड़ अकबर के सामने ले आया।
सारी युद्ध भूमि लाशों से पटी थी। मुगल सैनिक मृत और घायल भारतीय सैनिकों के सिर काट-काटकर ला रहे थे और उन पर गारा चढ़ा कटे सिरों की एक मीनार बनाई जा रही थी। घायल हेमचन्द्र भी होश में आ चुके थे। उन्हें चार मुगल सैनिक बाहों से पकड़े थे। अकबर के सामने लाए जाने पर बैरम खां, जो अकबर का सेनापति था, ने अकबर से कहा- 'हुजूर अपने हाथों से इस काफिर का सिर काट गाजी की उपाधि लीजिए।' हिन्दुओं को मारने वाले को इस्लामी रिवाज के अनुसार गाजी की उपाधि दी जाती है। अकबर ने अभी तक अपने हाथों किसी हिन्दू का कत्ल नहीं किया था।
मुगल सैनिकों ने दोनों हाथ मरोड़कर हेमचन्द्र के सिर को नीचे झुकाया और अकबर ने गर्दन पर तलवार चला दी। सिर कटकर अलग जा पड़ा और देह छटपटाने लगी। पास खड़े मुगल सैनिकों और बैरम खां ने छटपटाती हेमचन्द्र की देह पर वार किए।
हेमू के बूढ़े पिता को भी नहीं बख्शा मुगल सैनिकों ने... पढ़ें अगले पेज पर...
हेमचन्द्र का कटा सिर प्रदर्शन के लिए काबुल भेज दिया गया और देह दिल्ली की चहारदीवारी के एक द्वार पर लटका दी गई। हेमचन्द्र के गांव रेवाड़ी में एक मुगल सैनिक दस्ता भेजा गया। हेमचन्द्र की सारी संपत्ति लूट ली गई। परिवार कैद कर लिया गया। हेमचन्द्र के बूढ़े पिता मुसलमान न बनने पर कत्ल कर दिए गए। घर की युवा महिलाओं को अकबर ने अपने हरम में दाखिल कर लिया। बाकी बच्चे व बूढ़ी औरतों को गुलाम बनाकर बेच दिया गया। (विन्सेंट स्मिथ पृष्ठ 35)
कैसे कहें महान? : भारतीय परंपरा में कभी बंदी शत्रु को नहीं मारा जाता और घायल शत्रु को भी किसी भी नहीं मारते। अपराधियों को न्यायालय के सम्मुख उपस्थित कर दंड देने का विधान है। एक घायल देशभक्त क्रूरतापूर्वक अकबर के हाथों मारा गया। ऐसा क्रूर हत्यारे को हम महान कहेंगे? यह था भारत में अकबर के वीभत्स जीवन का प्रारंभ, जो उसकी मृत्युपर्यंत चलता रहा।
प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ कहता है कि अकबर के शरीर में एक बूंद रक्त भी भारतीय नहीं था। वह मध्य एशिया के हत्यारे, लुटेरे तैमूर लंगड़े की 7वीं पीढ़ी में पैदा हुआ था। अकबर की मां हमीदा बानो बेगम ईरान की थीं। अकबर हमेशा गर्व से स्वयं को तख्ते तैमूरिया का वारिस कहता था। दिल्ली में लाखों भारतीयों के कत्ल करने वाले दरिंदे तैमूर को गर्व से अपना पूर्वज कहने वाला कैसे महान हो सकता है? अकबर में यदि जरा भी महानता होती, तो तैमूर जैसे राक्षस पर वह कभी गर्व नहीं करता।
अकबर ने हिन्दुओं का जितना रक्त बहाया, उतना पूर्ववर्ती किसी मुसलमान सुल्तान ने या बाद में औरंगजेब ने भी नहीं बहाया। पानीपत, चित्तौड़, गढ़ा मंडला, मांडव की रानी रूपमती, असीरगढ़, बुरहानपुर के कत्लेआम चीख-चीखकर विश्व के इस क्रूरतम हत्यारे अकबर का नाम पुकार रहे हैं।