क्यों हुई थी पानीपत की लड़ाई, कैसे पानीपत ने बदला भारत का इतिहास...

अनिरुद्ध जोशी
मंगलवार, 5 नवंबर 2019 (14:06 IST)
भारत में वैसे तो कई लड़ाईयां हुई लेकिन पानीपत की लड़ाई का जिक्र इतिहास में बहुत तरीकों से किया जाता रहा है। पानीपत की लड़ाई ऐसी थी जिसने भारत के इतिहास को बदलकर रख दिया था। दिल्ली के तख्त के लिए हुई पानीपत की लड़ाई के बारे में ऐसा कहते हैं कि इस लड़ाई में भारतीय राजाओं की जीत होती तो भारत में विदेशियों की सत्ता स्थापित नहीं होती।
 
 
कहां हुई थी पानीपत की लड़ाई : यह सभी लोग जानते हैं कि महाभारत का युद्ध हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार, पानीपत महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित पांच शहरों में से एक था इसका ऐतिहासिक नाम पांडुप्रस्थ है। यही पांडुप्रस्थ आगे चलकर पानीपत हो गया जो हरियाणा में स्थित है। यहीं भारत की ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी जिसने भारत का इतिहास बदल कर रख दिया। पानीपत वो स्थान है जहां बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं। वर्तमान हरियाणा में स्थित पानीपत दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर है।
 
 
किसके बीच हुई थी पानीपत की तीन लड़ाइयां?
पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुई थी। बाबर एक तुर्क था जिसने मुगल साम्राज्य की नींव रखी थी। इस लड़ाई में इब्राहिम हार गया था। इस लड़ाई में इब्राहिम लोदी और उनके 15,000 सैनिक मारे गए। इस लड़ाई ने भारत में बहलुल लोदी द्वारा स्थापित लोदी वंश को समाप्त कर दिया था और बाबर का दिल्ली एवं आगरा में दखल हो चला था।

 
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच हुई। इस लड़ाई में हेमचन्द्र ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और वह जीत की ओर बढ़ रहे थे लेकिन लड़ाई में एक मौके ऐसा आया जब मुगलों की सेना ने हेमचंद्र ऊर्फ हेमू की आंख में एक तीर मारा और वह गिरकर बेहोश हो गया यह घटना युद्ध में जीत रहे हेमू के हार का कारण बन गई। अपने राजा को इस अवस्था में देखकर सेना में भगदड़ मच गई जिसका फायदा उठाकर मुगल सेना ने कत्लेआम करना शुरू कर दिया। इस दृश्य को देखकर हेमू की सेना भाग गई जिसके चलते अकबर या बैरमखां ने हेमचंद्र का सिर काट दिया। इसके बाद अकबर का दिल्ली और आगरा पर कब्जा हो गया।

कहते हैं कि हेमू का सिर काबुल भेज दिया गया और उसका धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया गया। दूसरी तरफ हेमू जहां मारा गया था वहां उसके समर्थकों ने एक स्मारक बनाया। आज भी उस जगह पर हेमू समाधि स्थल मौजूद है।

 
हेमचंद्र ने पंजाब से बंगाल तक (1553-1556) अफगान विद्रोहियों के खिलाफ 22 युद्धों को जीता था और 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली में पुराना किला में अपना राज्याभिषेक कराया था और उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई से पहले उत्तर भारत में विदेशियों के खिलाफ ‘हिन्दू राज’ की स्थापना की थी। हेमचंद्र ने लड़ाई से करीब एक महीने पहले अकबर के सेनापति तारदी बेग खान को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।

 
पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में सदाशिवराव भाऊ को हार का सामना करना पड़ा था। यह हार इतिहास मे मराठों की सबसे बुरी हार थी। 
 
पानीपत के पहले युद्ध ने एक ओर जहां मुगल साम्राज्य की नींव स्थापित की थी वहीं दूसरे युद्ध ने अकबर के करीब पांच दशक लंबे शासन की नींव रखी। जबकि पानीपत की तीसरी लड़ाई ने भारत में अग्रेजों की विजय के रास्ते खोल दिए थे। मतलब यह कि पानीपत में यदि हेमचंद्र के साथ दुर्घटना नहीं हुई होती तो देश में मुगल साम्राज्य नहीं होता और अहमद शाह अब्दाली से सदाशिवराव भाऊ पेशवा जीत जाते तो अंग्रेजों की देश में एंट्री नहीं होती फिर भी मराठा और राजपूतों ने देश के एक बहुत बड़े भूभाग पर तब तक अपना कब्जा बरकरार रखा जब तक की अंग्रेजों ने संपूर्ण भारत में अपना शासन नहीं कर लिया।

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