भारत पर खलीफाओं के आक्रमण का संक्षिप्त इतिहास

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शक, कुषाण और हूणों के पतन के बाद भारत का पश्‍चिमी छोर कमजोर पड़ गया, तब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ हिस्से फारस साम्राज्य के अधीन थे तो बाकी भारतीय राजाओं के, जबकि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र सत्ता थी। 7वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा।

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भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार 7वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकों द्वारा हुआ। लगभग 712 में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिन्ध के अभियान का सफल नेतृत्व किया।
 
इतिहासकारों अनुसार इस्लाम के प्रवेश के पहले अफगानिस्तान (कम्बोज और गांधार) में बौद्ध एवं हिन्दू धर्म यहां के राजधर्म थे। मोहम्मद बिन कासिम ने बलूचिस्तान को अपने अधीन लेने के बाद सिन्ध पर आक्रमण कर दिया। 'चचनामा' नामक ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार सिन्ध के राजा दाहिरसेन का बेरहमी से कत्ल कर उसकी पुत्रियों को बंधक बनाकर ईरान के खलीफाओं के लिए भेज दिया गया था। कासिम ने सिन्ध के बाद पंजाब और मुल्तान को भी अपने अधीन कर लिया।
 
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इस्लामिक खलीफाओं ने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। 10 हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।

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उस दौर में अफगानिस्तान में हिन्दू राजशाही के राजा अरब और ईरान के राजाओं से लड़ रहे थे। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। 6ठी सदी तक यह एक हिन्दू और बौद्ध बहुल क्षेत्र था। यहां के अलग-अलग क्षेत्रों में हिन्दू राजा राज करते थे। हिन्दू राजाओं को ‘काबुलशाह' या ‘महाराज धर्मपति' कहा जाता था। इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल, आनंदपाल, त्रिलोचनपाल, भीमपाल आदि उल्लेखनीय हैं।
 
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इन काबुलशाही राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिन्धु नदी पार करके भारत के मुख्‍य मैदान में नहीं घुसने दिया, लेकिन 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद यहां के हिन्दू और बौद्धों का जबरन धर्मांतरण अभियान शुरू हुआ। सैकड़ों सालों तक लड़ाइयां चलीं और अंत में 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया। 'काफिरिस्तान' को छोड़कर सारे अफगानी लोग मुसलमान बन गए।
 
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714 ईस्वी में हज्जाज की और 715 ई. में मुस्लिम खलीफा की मृत्यु के उपरांत मुहम्मद बिन कासिम को वापस बुला लिया गया। कासिम के जाने के बाद बहुत से क्षेत्रों पर फिर से भारतीय राजाओं ने अपना अधिकार जमा लिया, परंतु सिन्ध के राज्यपाल जुनैद ने सिन्ध और आसपास के क्षेत्रों में इस्लामिक शासन को जमाए रखा। जुनैद ने कई बार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण किए लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। नागभट्ट प्रथम, पुलकेशी प्रथम एवं यशोवर्मन (चालुक्य) ने इसे वापस खदेड़ दिया।
 
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कौन था मुहम्मद बिन क़ासिम?
मुहम्मद बिन कासिम इस्लाम के शुरुआती काल में उमय्यद खिलाफत का एक अरब सिपहसालार था। उसने 17 साल की उम्र में ही उसे भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला करने के लिए भेज दिया गया था। कासिम का जन्म सउदी अरब में स्थित ताइफ शहर में हुआ था। वह अल-सकीफ कबीले का सदस्य था। उसके पिता कासिम बिन युसुफ थे जिसनके देहांत के बाद उसके ताऊ हज्जाज बिन युसुफ ने उसे संभाला। उसने हज्जाज की बेटी जुबैदाह से शादी कर ली और फिर उसे सिंध पर मकरान तट के रास्ते से आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया गया। कासिम के अभियान को हज्जाज कूफा नामक शहर में बैठकर नियंत्रित कर रहा था।
 
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कासिम की मौत : कासिम की मौत कैसे हुई इस बारे में तो घटनाओं का वर्णन मिलता है। 'चचनामा' नामक ऐतिहासिक दस्तेवाज अनुसार कासिम ने जब राजा दाहिर सेन की बेटियों को तोहफा बनाकर खलीफा के लिए भेजा तो खलीफा ने इस अपना अपमान यह समझकर समझा कि कासिम पहले ही उनकी इज्जत लूट चूका है और अब खलीफा के पास भेजा है। ऐसे समझकर खलीफा ने मुहम्मद बिन कासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस दमिश्क मंगवाया और उसी चमड़ी में बंद होकर दम घुटने से वह मर गया। लेकिन बाद में खलिफा को पता चला कि दाहिरसेनी की बेटियों ने झूठ बोला तो उसने तीनों बेटियों को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया।
 
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दूसरी घटना में ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के अनुसार कहानी अलग थी। नया खलीफ़ा हज्जाज का दुश्मन था और उसने हज्जाज के सभी सगे-संबंधियों को सताया। बाद में उसने मुहम्मद बिन कासिम को वापस बुलवाकर इराक के मोसुल शहर में बंदी बनाया और वहीं उस पर कठोर व्यवहार और पिटाई की गई जीसके चलते उसने दम तोड़ दिया।

 

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