दक्षिण भारत के महान सम्राट पुलकेशिन द्वितीय की 5 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी
मध्यकालीन भारत की सीरिज में हमने जाना की पश्चिम में राजा दाहिर तो उत्तर भारत में जहां सम्राट हर्षवर्धन का साम्राज्य था वहीं दक्षिण भारत में चालुक्य वंश के पुलकेशिन द्वितीय का दबदबा था। परंतु पल्लवशंव के राजाओं से चालुक्यवंशी राजाओं की टक्कर होती रहती थी। आओ जानते हैं पुलकेशिन द्वितीय के बारे में 5 खास बातें।
 
 
1. पुलकेशिन द्वितीय चालुक्यवंश का राजा था। जिसका शासनकाल 609-642 ईस्वी के मध्य का माना जाता है। कहते हैं कि पुलकेशिन ने गृहयुद्ध में चाचा मंगलेश पर विजय प्राप्त कर सत्ता कर कब्जा किया था। उसने श्री पृथ्वीवल्लभ सत्याश्रय की उपाधि से अपने को विभूषित किया था।
 
2. पुलकेनिश ने कई राजाओं को परास्त कर उनकी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। जैसे राष्ट्रकूट राजा गोविन्द, लाट, मालवा व भृगुकच्छ के गुर्जरों को भी उसने हराया था। उसने कदम्बों को हराया, मैसूर के गंगों व केरल के अलूपों को भी पछाड़ दिया था। कोंकण की राजधानी पुरी पर भी कब्जा जमा लिया था। पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को पराजित कर कांची तक उसने अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। उससे भयभीत होकर चेर, चोल व पाण्ड्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। उसने नर्मदा से कावेरी के तट के सभी प्रदेशों पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया लिया था। इस प्रकार दक्षिण के एक बड़े भू-भाग पर उसका शासन था।
3. दक्षिण में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद उसने उत्तर की ओर आक्रामण करना प्रारंभ कर दिया था। पुलकेशिन द्वितीय का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सैन्य संघर्ष उत्तर भारत के सर्वशक्तिमान शासक हर्षवर्धन के विरुद्ध हुआ जिसमें राजा हर्षवर्धन को पीछे हटना पड़ा था। इस युद्ध के बाद पुलकेशिन द्वितीय ने परमेश्वर व दक्षिणापथेश्वर उपाधियां प्राप्त की।
 
4. पुलकेशिन का विदेशी शासकों से भी संबंध था। पुलकेशिन द्वितीय ने 615-26 ईस्वी के लगभग तत्कालीन पारसदेश के सम्राट् भुखरी द्वितीय के राजदरबार में अपना दूत भेजकर उपहार भेंट किए थे। इस सन्दर्भ में अजंता के एक भित्तिचित्र का उल्लेख किया जाता है। अजंता के मंदिरों का निर्माण चालुक्यवंश ने ही कराया था। कहते हैं कि चीनी यात्री ह्वेनसांग स्वयं पुलकेशिन के दरबार में उपस्थित हुआ था। ह्वेनसांग भी उसके विदेशी संबंधों की पुष्टि करता है। माना जाता है कि ईरानी शासक खुसरो द्वितीय उसका परम मित्र था।
 
5. चालुक्यों के लगातार आक्रमण के चलते पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने चालुक्यों को सबक सिखाने के लिए 642 ईस्वी में उसकी सेना ने आक्रमण कर दिया और चालुक्यों की राजधानी वातापी पर अपना परचम लहरा दिया। इसी युद्ध में पुलकेशिन की हार हुई और संभवत: मृत्यु भी हो गई थी।
 
राजा दाहिर, सम्राट हर्षवर्धन, पुलकेशिन द्वितीय और नरसिंहवर्मन प्रथम के जाने के बाद भारत में भारतीय शक्ति कमजोर पड़ने लगी और विदेशी ताकतें हावी होने लगी थी। 
 
विभिन्न स्रोत से संकलित

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