छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला लिया संताजी घोरपड़े ने इस तरह कि कांप गए मुगल

WD Feature Desk

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025 (12:50 IST)
Sambhaji and  Santaji Ghorpade history: छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में संताजी घोरपड़े एक प्रमुख सेनापति थे। संताजी घोरपड़े, मराठा साम्राज्य के वरिष्ठ घोरपड़े वंश के थे। संताजी और धनाजी जाधव ने मिलकर मुगलों के फिलाफ कई सफल अभियान चलाए थे। औरंगजेब ने जब धोखे से छत्रपति संभाजी महाराज को पकड़कर उनकी हत्या कर दी तो उस दौरान छत्रपति संभाजी के साथ लड़ते हुए माल्होजी घोरपड़े भी वीरगति को प्राप्त हो गए और माल्होजी घोरपड़े के पुत्र संताजी घोरपड़े थे। इस घटना से संपूर्ण मराठा साम्राज्य भड़क उठा और सभी एक हो गए। संभाजी महाराज के बाद उनके छोटे भाई को पद पर विभूषित किया गया।ALSO READ: Chhaava में संभाजी पर अत्‍याचार देख भावुक हुए विधायक रमेश मेंदोला, कई भाजपा कार्यकर्ताओं की आंखें नम
 
- औरंगजेब अपनी विराट सेना के साथ महाराष्ट्र के तुलापुर नाम की जगह पर अपना डेरा डाले बैठा हुआ था। तुलापुर में अचानक संताजी और धनाजी ने हमला कर दिया। गुरिल्ला युद्ध में पारंगत संताजी अपने मराठा वीरों के साथ औरंगजेब की सेना पर किसी घायल बाघ की तरह टूट पड़े। संताजी ने अपने साथियों के साथ गाजर मूली की तरह मुगलों को काटना शुरू कर दिया। तुलापुर में संताजी के मराठों के अचानक हमले से मुगल जोर-जोर से चिल्लाने लगे। एक तरफ पूरी मुगल सेना औरंगजेब की जान बचाने में लगी थी तो दूसरी ओर मराठे मुगलियों की लाशों के ढेर लगा रहे थे। मराठे मुगल छावनी के अंदर घुस गए। इतना कत्लेआम हुआ कि औरंगजेब जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर भागा। मराठे औरंगजेब की छावनी के ऊपर लगे 2 सोने के कलश काटकर सिंहगढ़ किले को लौट आए। 
 
अगले दिन जब सुबह हुई तो औरंगजेब मुगलों की मौत का मंजर देखकर हैरान रह गया। इस घटना के बाद मुगलों और उनकी सेना में दहशत फैल गई। मुगलिया इतिहासकार काफी खान के अनुसार खूंखार संताजी के सामने पड़ने वाला मुगलिया सैनिक या तो मार दिया जाता या कैद हो जाता। आखिर में हालत ये हो गए कि संताजी का नाम सुनते ही मुगल सेना में भगदड़ मच जाती थी।ALSO READ: कौन थे वीर मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज, जानिए क्यों कहलाते हैं 'छावा' और क्या है इस नाम का अर्थ
 
- इस घटना के मात्र दो दिन बाद ही संताजी ने रायगढ़ किले पर हमला बोल दिया। छत्रपति संभाजी की पत्नी येसुबाई को कैद करने वाले मुगल सरदार जुल्फिकार खान की सेना को काटकर रायगढ़ किले पर भी कत्लेआम मचा दिया और मुगलों का बेश कीमती खजाना घोड़े और पांच हाथी अपने साथ पकड़कर पन्हाला लेकर आए। 
 
- अब बारी मुकर्रम खान की थी। जिसने छत्रपति संभाजी महाराज को छल और धोखे से कैद कर लिया था। मुकर्रम खान को औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोकण प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया था। दिसंबर सन 1689 को मराठों ने मुकर्रम खान की विशाल सेना को घेरकर कत्लेआम को वहीं मंजर फिर से खड़ा कर दिया जो तुलजापुर में किया था। घनघोर युद्ध में संताजी घोरपड़े ने मुकर्रम खान को दौड़ा-दौड़ा कर मारा। खून से लथपथ पड़े मुकर्रम खान की ये दुर्दशा देखकर मुगल सेना उसे जंगलों में लेकर भाग गई लेकिन वहां तड़प-तड़प कर मुकर्रम खान की मौत हो गई। मुकर्रम खान को मारकर मराठों ने छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु का बदला लिया।
 
- संताजी घोरपड़े के साहस और शौर्य पर खुश होकर सन 1691 को छत्रपति राजाराम महाराज ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सरसेनापति घोषित किया। इसके बाद संताजी ने दोगुने साहस से 15 से 20 हजार का मराठा लश्कर लेकर चले कर्नाटक की ओर। कृष्णा नदी पार करने के बाद उन्होंने एक के बाद एक मुगल इलाकों में मराठा साम्राज्य के जीत का डंका बजाया और औरंगजेब की सेना को वहां से खदेड़ दिया। औरंगजेब मराठों के डर से सह्याद्री के पर्वतों में इधर से उधर भागता रहा। लगातार 27 साल मराठों ने औरंगजेब को इतना घुमाया इतना दौड़ाया कि उसका जीना मुश्किल हो गया अंत में मराठों के हाथों हो रही लगातार मुगलों की पराजय के बाद औरंगजेब निराश होकर अपने बिल में चला गया। संताजी घोरपड़े ने ही अपने युद्ध अभियानों से औरंगजेब की नाक काट डाली और औरंगजेब को इतिहास में भगोड़ा भी साबित कर दिया।ALSO READ: Chhaava movie review: पहाड़ी तूफान संभाजी और औरंगजेब की टक्कर, कैसी है छावा, चेक करें रिव्यू
 
कौन है संत घोरपड़े जी? 
संताजी घोरपड़े का जन्म 1660 में महलोजी घोरपड़े के घर में हुआ था। ये गुरिल्ला कावा (गुरिल्ला युद्ध) में कुशल थे। वह राजाराम भोसले के शासनकाल के दौरान छठे मराठा सेनापति थे। उन्होंने युद्ध में छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज का भी समर्थन किया था। वे जीवनभर मराठा साम्राज्य के प्रति वफादार रहे और अपनी मृत्यु तक स्वराज्य के लिए निस्वार्थ सेवा करते रहे।
 
चाहे यात्रा कितनी भी लंबी क्यों न हो, संताजी उसे कम से कम समय में पूरा कर लेते थे और ऐसा करते हुए वे सही मायनों में अपनी सेना का नेतृत्व भी करते थे। कठिन युद्धों में यह और भी अधिक सही एवं सटीक होता। इससे हम उनकी विशेषज्ञता का अनुमान लगा सकते हैं। 
 
राजाराम के शासनकाल के दौरान, संताजी घोरपड़े को "पंचहजारी अधिकारी" (5,000 सैनिकों का कमांडर) का पद प्राप्त हुआ।
 
संताजी ने धनाजी जाधव के साथ मिलकर कई युद्ध लड़े। 1689-1696 की अवधि के दौरान, संताजी और धनोजी दोनों ने लगातार मुगलों पर एक साथ हमला किया। इन दोनों का मिलन सचमुच शक्ति और बुद्धि का मिलन था। संताजी और धनाजी ने मिलकर औरंगजेब के सेनापति शेख निजाम पर हमला किया और उसकी सेना, हाथी और घोड़ों पर कब्जा कर लिया, क्योंकि उसकी नजर पन्हाला किले पर थी। संताजी ने औरंगजेब के कई सेनापतियों को हराया, कर्नाटक के डोडेरी, कासिम खान, अलीमर्दन खान, शेख निजाम और देसोर में मुगलों के खजाने, हथियार और पशुधन अपने अधिकार में ले लिया।
 
संताजी की राजनीतिक अक्षमता और उनके कठोर शब्दों के कारण उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिससे धनाजी और राजाराम से उनके संबंध टूट गए। एक बार जिंजी किले में राजाराम के साथ बातचीत करते समय, संताजी ने उनसे कठोर शब्दों में कहा कि "छत्रपतियों का अस्तित्व मेरे कारण है और मैं अपनी इच्छानुसार छत्रपतियों को बना या हटा सकता हूँ"। इस कारण वे वहां से चले गए और यहीं से मराठा साम्राज्य से विदा हो गए। 
इसके बाद धनजी को नया सेना प्रमुख बना दिया गया और यह जानकर संताजी और भी क्रोधित हो गए। 
 
राजाराम ने धनाजी को संताजी पर हमला करने का आदेश दिया। धनाजी युद्ध हार गये और भाग गये। इतना सब होने के बाद संताजी ने राजाराम को बंधक बना लिया और उससे कहा, "आज मैं आपका वफादार सिपाही हूं। मेरा गुस्सा बस इतना था कि आप धना (धनजी) को मेरे स्तर पर खड़ा कर रहे थे और उसकी मदद से जिंजी तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे। अब आप जो भी कहेंगे मैं वही करूंगा।" इसी कारण उन्होंने राजाराम को जाने दिया। 
 
संताजी घोरपड़े बहादुर, वफादार और सैन्य रणनीति से परिपूर्ण थे, लेकिन उनमें राजनीतिक रणनीति की समझ का अभाव था। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें "मामलकत मदार" की उपाधि से सम्मानित किया गया। मराठा साम्राज्य के वीर योद्धाओं में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया।

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